Skip to Main Navigation
BRIEF 23 फ़रवरी, 2023

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 - सामने से नेतृत्व करने वाली महिलाएं

Image

महिलाएं भारत की जनसंख्या का क़रीब आधा हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें अपेक्षाकृत देश की आर्थिक संपन्नता का कम लाभ मिला है। अधिकांश महिलाओं के अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत होने के कारण उन पर महामारी का प्रभाव ज्यादा देखने को मिला। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी है। देश भर से ऐसी कई मजबूत औरतों की कहानियां सामने आईं, जिन्होंने अपने घरों से बाहर निकालकर साहस और हिम्मत दिखाते हुए अपने समुदाय की सहायता की। उन्होंने अपनी लगन से महामारी के अनुभव को एक सकारात्मक अनुभव में परिवर्तित करते हुए, बदलती हुई दुनिया के अनुसार अपने कौशल क्षमता में विस्तार किया। ये कहानियां दूसरों को आगे बढ़ने के लिए उम्मीद और प्रोत्साहन देती हैं | 


मल्टीमीडिया

Image
click

सामुदायिक कार्यकर्ता

झारखंड जैसे निम्न आय वाले एक भारतीय राज्य के गिरिध जिले में एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाली अनीता देवी उन लाखों महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने कोरोना महामारी के खिलाफ़ एकजुट होकर मुकाबला किया। आमतौर पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं कुपोषण जैसी bimari को दूर करने के लिए जमीनी स्तर पर काम करती हैं, लेकिन महामारी के दौरान इन महिलाओं ने अन्य ग्रामीण महिला स्वास्थ्यकर्मियों के साथ घर-घर जाकर लोगों की यात्राओं का विवरण लिया, उनके भीतर बीमारी के लक्षणों की जांच की और ज़रूरत पड़ने पर, उन्होंने संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आये लोगों  का पता लगाने में सहायता की।

उन्होंने एक ऐसे कार्यदल की तरह काम किया, जो परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने में सक्षम होने के साथ-साथ नेतृत्वकर्ता के रूप में काम के लिए आगे आयीं। ये पूछे जाने पर कि क्या महामारी के दौरान वह खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थीं, इसके जवाब में अनीता देवी का कहना था, "जब डॉक्टर और नर्स अपने परिवारों को छोड़कर दिन-रात काम कर सकते हैं, तो उसी तरह से हम क्यों अपने स्तर पर छोटा सा योगदान नहीं दे सकते?"

दूसरी ओर औरतों के स्वयं-सहायता समूह (एसएचजी) ने भी इस दौरान अपने लक्ष्यों को पुनर्निर्देशित किया। ग्रामीण भारत में कमज़ोर आर्थिक वर्ग की महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करने वाले स्वयं सहायता समूह वर्तमान में निम्न वर्गीय लोगों के लिए सबसे बड़े सांस्थानिक मंचों मैं एक है, जो छोटी बचतों को प्रोत्साहित करते हुए ऋण की सुविधा प्रदान करता है। पूरे भारत में 7 करोड़ से भी ज्यादा महिलाएं 69 लाख से भी ज्यादा स्वयं सहायता समूहों की सदस्य हैं।

स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने फेसमास्क बनाए, सामुदायिक रसोई चलाई, लोगों तक आवश्यक खाद्य सामग्रियां पहुंचाई, और आम जनता के बीच स्वास्थ्य और साफ़-सफ़ाई के मुद्दे पर जागरूकता अभियान चलाया और गलत सूचनाओं के प्रसार को रोकने का काम किया।

 

महिला व्यापारी

मुस्कानबेन वोहारा गुजरात के आणंद जिले में महिला बुनकरों के एक समूह का हिस्सा हैं, जिन्हें स्वरोजगार महिला संघ (सेल्फ एंप्लॉयड वूमेंस एसोसिएशन, सेवा) द्वारा इंटरनेट आधारित कौशल में प्रशिक्षित किया गया है। महामारी के दौरान, इन महिलाओं ने अपने नए डिजिटल कौशल की सहायता से अपने उत्पादों की तस्वीरें ऑनलाइन डालने, ग्राहकों के व्हाट्सएप समूह बनाने और खरीदारी के लिए डिजिटल भुगतान के विकल्प तैयार करने जैसे आधुनिक व्यापारिक मॉडल को अपनाने में महारत हासिल की। इनमें से कई औरतें लोगों से सीधा भुगतान लेने और संक्रमण का ख़तरा उठाने की बजाय पेटीएम, भीम ऐप और गूगल पे जैसे प्लेटफॉर्मों के ज़रिए भुगतान लेने में सक्षम रहीं।

मुस्कानबेन गर्व से कहती हैं, "[महामारी के दौरान] हम बिना बाधाओं के काम करने में सक्षम रहे और हम घरेलू सजावट का अपना सारा माल बेचने में भी सफ़ल रहे।"

सेवा अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहीं औरतों, जिसमें दर्जी, कारीगर, विक्रेता, और छोटे और सीमांत किसान शामिल हैं, की सहायता करता है।


वह जो बाधाओं को तोड़कर आगे बढ़ीं

बत्तीस वर्षीय कौसर जहां तीन बच्चों की मां हैं, जो परिवार के नौ और सदस्यों के साथ पूर्वी हैदराबाद में रहती हैं। कौसर महज़ 17 साल की थी, जब उनकी शादी हुई और उसके कारण उनकी पढ़ाई छूट गई। भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे नई मंज़िल कार्यक्रम ने उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने और रोजगार के अनुकूल नए कौशल सीखने का मौका दिया।

महामारी के दौरान, नई मंज़िल कार्यक्रम से मिले प्रशिक्षण के बल पर कौसर एक सरकारी अस्पताल में बेड साइड सहायक की नौकरी हासिल करने में सफ़ल रहीं, जहां उन्हें मरीजों की देखभाल का काम करना था।

नई मंजिल कार्यक्रम की आधे से अधिक लाभार्थी महिलाएं हैं, जिसमें मुस्लिम औरतों की संख्या सर्वाधिक है। अभी तक, इस कार्यक्रम के तहत 50,700 अल्पसंख्यक औरतों को शिक्षा और कौशल विकास का लाभ मिला है।

महिलाओं का एक और समूह, बैंक सखी, विशेष रूप से महामारी के दौरान काफ़ी सक्रिय रहा है। विश्व बैंक द्वारा समर्थित इस समूह की स्थापना 2016-17 के दौरान राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत की गई थी। इन मुश्किल परिस्थितियों में इन महिलाओं ने अपनी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जहां उन्होंने सरकार द्वारा लोगों के बैंक खाते में डाले गए पैसे को निकालने में आम लोगों की सहायता की ताकि वे कोरोना संकट से जूझने में उनकी मदद कर सकें।

बिहार के औरंगाबाद जिले के एक door गांव में, बंधिनी कुमारी पिछले दो वर्षों से बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्रदान कर रही हैं। लेकिन पिछले साल की तुलना में वह पहले कभी इतनी व्यस्त नहीं रहीं। वह बताती हैं, "मैं हर रोज़ 50 से 80 लोगों से मिलती हूं। जिन लोगों ने पहले कभी अपने खाते का इस्तेमाल नहीं किया था, वे भी इस नकद सहायता के पैसे निकालने आ रहे हैं।"

विश्व बैंक ने ऐसे कई कार्यक्रमों का समर्थन किया है, जिसके द्वारा औरतों ने घरों से बाहर निकल कर ऐसे क्षेत्रों में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाई है, जिसे परंपरागत रूप से पुरुषों का कार्यक्षेत्र माना जाता रहा है।

उदाहरण के लिए, केरल में सिंचाई विभाग की महिला इंजीनियर बांधों के प्रबंधन, नहरों के निर्माण और उनके रखरखाव की जिम्मेदारियां संभालती हैं। यह भारत का एक ऐसा राज्य है जिसकी साक्षरता दर देश भर में सबसे ज्यादा है, जहां सरकारी कॉलेजों के सिविल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए लड़कियां भी समान रूप से लड़कों की तरह कठिन प्रवेश परीक्षा में हिस्सा लेती हैं।

एस. मंजू, जो बांध सुरक्षा विभाग में  काम करती हैं, अक्सर वरिष्ठ महिला इंजीनियरों के साथ राज्य भर के बांध स्थलों की निगरानी के लिए दौरे पर जाती रहती हैं। वह अन्य महिला सहयोगियों के साथ काम करके बेहद गर्व महसूस करती हैं। "हमें इस बात का गर्व है कि हमारा काम प्रदेश में रहने वाले लोगों के जीवन को प्रभावित करता है।"

 

 

 



मल्टीमीडिया

Image
click
वीडियो

भारत की महिला बांध इंजीनियर्स


मल्टीमीडिया

Image
click
वीडियो

जीविका नई आजीविका के माध्यम से ग्रामीण बिहार में महिलाओं को सशक्त बनाती है



मल्टीमीडिया

Image
click
वीडियो

सड़कें भारतीय गांवों में महिलाओं को सशक्त बनाती हैं





मल्टीमीडिया

भारत में कोविड महामारी के दौरान ग्रामीण महिलाएं हो रहीं हैं डिजिटल

मुस्कानबेन और उनके समूह को हाल ही में स्व-नियोजित महिला संघ (SEWA) द्वारा डिजिटल कौशल में प्रशिक्षित किया गया था, जो एक सदस्यता-आधारित संगठन है जो भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के जीवन और आजीविका में सुधार करना चाहता है।

नई मंज़िल: महामारी के बीच अल्पसंख्यक महिलाओं के संघर्ष की उम्मीद भरी कहानियां

आज, जबकि महामारी से लाखों लोगों का जीवन और आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है, भारत भर में अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाएं नई मंजिल कौशल कार्यक्रम की बदौलत खुद का समर्थन कर रही हैं।

अवसरों के लिए महिलाओं की पहुंच को आकार देना: मुंबई में लैंगिक, यातायात-साधन (प...

परिवहन और गतिशीलता तक पहुंच की कमी महिलाओं की सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच को आकार देती है - विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए।

सड़क दुर्घटनाओं का प्रभाव महिलाओं और पुरुषों पर अलग-अलग तरह से पड़ता है: जानिए...

जब पीड़ितों के भौगोलिक वितरण, उनकी सामाजिक आर्थिक प्रोफ़ाइल, और शायद अधिक आश्चर्यजनक रूप से उनके लिंग की बात आती है, तो सड़क सुरक्षा पर वैश्विक आंकड़े कई असमानताओं को छिपाते हैं।

महिला सशक्तिकरण में नकद हस्तांतरण जैसी सामाजिक नीतियों की भूमिका

महिलाओं को सामाजिक सहायता भुगतान निर्देशित करना - उन्हें प्राप्तकर्ताओं के रूप में प्राथमिकता देना - उन्हें धन तक सुरक्षित पहुंच और अधिक नियंत्रण प्रदान कर सकता है।

विशेष

ब्लॉग