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मुख्य कहानी13 दिसंबर, 2022

पशु सखियां: झारखंड का सामुदायिक पशु स्वास्थ्य-सेवा मॉडल

The World Bank

Photo Credit: World Bank

मुख्य बिंदु

  • पशु सखियां किसानों को सलाह देती हैं कि पशुओं की देखभाल कैसे करें, और उन्हें किसान समूहों और बाजारों से जोड़कर बिक्री के लिए पालने के फायदे।
  • विश्व बैंक समर्थित जौहर परियोजना लगभग 57,000 लाभार्थी किसानों की मदद कर रही है, जिनमें से 90 प्रतिशत महिलाएं हैं।
  • जौहर के तहत पशु सखी मॉडल को हाल ही में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा पशु सखी मॉडल को कृषक सेवा में विश्व के 8 बेहतरीन अभ्यासों में से एक घोषित किया है।

सितंबर महीने की एक सुबह भारत के मध्य-पूर्वी राज्य झारखंड के गुमला जिले के टेंगरिया गांव में पूरे एक हफ़्ते की बारिश के बाद आज धूप निकली है। बत्तीस वर्षीय सोमती ने अभी अपने घर की सफ़ाई का काम पूरा किया है, बच्चों को स्कूल भेजा है और सास-ससुर और पति को खाना बनाकर खिलाया है।   वह जल्दी से अपना यूनिफॉर्म पहनती हैं।   एक गाढ़े नीले रंग की साड़ी, उसी रंग का एप्रन और एक टोपी पहनकर वह जल्दी से बाहर जाती हैं।   वह अपने साथ अपना स्मार्टफोन और एक बक्सा लेकर गांव के पूर्वी इलाके की ओर जाती हैं, जहां वह अगले चार-पांच घंटे बिताने वाली हैं।

सोमती एक प्रशिक्षित पशु सखी हैं, जिसका सीधा सादा मतलब है "जानवरों की मित्र।" वह कम से कम 10 ऐसे घरों का दौरा करती हैं, जो पशुपालक हैं।   उनमें से ज्यादातर बकरियां पालते हैं।   वह उन परिवारों को उनके पालतू जानवरों के नियमित स्वास्थ्य परीक्षण जैसे टीकाकरण, डी-वर्मिंग (कृमिहरण) और प्राथमिक उपचार में मदद करती हैं।   वह उन्हें पालतू जानवरों की स्वच्छता, प्रजनन और उनके पोषण को लेकर सलाह देती हैं।   इसके अलावा उन्हें खेतों को साफ़ रखना और पशुओं के मल के उचित इस्तेमाल के तौर-तरीकों के बारे में जानकारी देती हैं।

मुझे खुशी होती है जब गाँव वाले मुझे 'बकरी डॉक्टर' (बकरियों का डॉक्टर) कहते हैं। मैं और भी कड़ी मेहनत करना चाहता हूं और आने वाले वर्षों में अपनी आय को दोगुना करना चाहता हूं।
सोमती उरांव
पशु सखी, तेंगरिया, गुमला जिला, झारखंड
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सोमती कहती हैं, "मैं और मेरे पति के पास चार बकरियां थीं।   हमें उनकी देखभाल, खानपान और प्रजनन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।   बकरियां हमारी आमदनी का बहुत छोटा जरिया थीं और हम अपने घर को चलाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत कर रहे थे।   अब, प्रशिक्षण लेने के बाद, न सिर्फ़ मैं अपने जानवरों का उचित देखभाल कर सकती हूं, बल्कि दूसरों की ज़रूरत में उनकी मदद भी कर सकती हूं।"

सोमती ने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की है, और 2018 में वह एक पशु सखी बनीं।   इसके लिए, उन्होंने विश्व बैंक द्वारा समर्थित सरकारी "जोहार (द झारखंड ऑपर्च्युनिटीज फॉर हार्नेसिंग रूरल ग्रोथ) परियोजना" के तहत आयोजित किए गए 30 दिन के प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।

इस पार्ट-टाइम (अंशकालिक) काम के ज़रिए सोमती अब हर महीने में लगभग 10,000-20,000 रुपए कमा रही हैं।  इससे पहले वह हर महीने 3000 - 5000 रुपए कमाती थी । सोमती गर्व महसूस करती हैं कि अपने पति के अलावा अब वह भी अपने घर के खर्चों में सहयोग कर सकती हैं।   उनके दो बच्चे अब प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं। वह बताती हैं, "मुझे बहुत खुशी होती है जब गांव वाले मुझे "बकरियों की डॉक्टर" कहते हैं।   मैं और कड़ी मेहनत करना चाहती हूं, ताकि आने वाले कुछ सालों में अपनी आमदनी को दोगुनी कर सकूं।"

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झारखंड में पशु-उत्पादकता की गिरती दर

झारखंड में पशुधन से जुड़ा ज्यादातर उत्पादन कार्य भूमिहीन और गरीब किसान करते हैं। इनमे महिलाओं का योगदान 70 प्रतिशत से अधिक है। पिछले एक दशक में, देश भर में मांस और अंडों की कीमतों में 70-100 प्रतिशत का उछाल आया है। लेकिन झारखंड जैसे निम्न आय वाले राज्य में पशुपालन में लगे हुए किसान इस मौके का फ़ायदा नहीं उठा सके। उनके पास जानवरों की देखभाल से जुड़ी जानकारियां अपर्याप्त थीं, और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और प्रजनन से जुड़ी सहायता सुविधाओं तक पहुंच बेहद सीमित थी। राज्य में पशु चिकित्सकों की कमी थी और साथ में सीमित संसाधनों और सुविधाओं से जुड़ी समस्याएं भी थीं।

इसका नतीजा ये हुआ कि पशुओं की मृत्यु दर बहुत ज्यादा थी।   बकरियों के लिए ये दर 30 प्रतिशत से अधिक, सुअरों और मुर्गियों के लिए लगभग 80 प्रतिशत थी।   इसके कारण अंडे और मांस का उत्पादन भी बहुत कम था। परिणामस्वरूप, किसानों की आमदनी पर प्रतिकूल प्रभाव पडी।  उनकी आय करीब 800 रुपए प्रति माह जितने कम स्तर पर थी।

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किसानों की पशुपालन में मदद

कृषक समुदाय की महिलाएं आमतौर पर अपने घरों में ही पशुओं की देखभाल और उनके प्रजनन से जुड़े काम करती हैं। इसलिए, स्थानीय औरतों को "पशु सखि" के रूप में प्रशिक्षित करना पशु-उत्पादन, व्यापार और किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में सबसे ज्यादा उपयुक्त लगा ।

जोहार परियोजना के तहत, समुदाय के पशु स्वास्थ्य-सेवा कर्मियों  को मुर्गी, बत्तख, बकरी और सुअर जैसे जानवरों की देखभाल के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के बाद, पशु सखी न केवल जानवरों की देखभाल को लेकर सलाह देने का काम करती हैं, बल्कि वे किसानों को व्यावसायिक पशुपालन से जुड़े आर्थिक लाभों के बारे में भी समझाती हैं। वे  उत्पादकों और व्यापारियों से संपर्क जोड़ने में भी उनकी सहायता करती हैं, ताकि उनकी बाज़ार तक पहुंच आसान हो सके और वे आसानी से अपने उत्पादों की बिक्री कर सकें।  

परियोजना के तहत अब तक 1000 से अधिक पशु सखियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। उनमें से 70 फीसदी महिलाओं को एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) द्वारा प्रमाणित किया गया है, जिससे ये सुनिश्चित होता है कि वे उच्च मानक की सेवा सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम हैं। 

पशु सखियां समय-समय पर किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन भी करती हैं। चितामी गांव की मंजू पिछले दो सालों से मुर्गी पालन कर रही हैं। अपने गांव की एक पशु सखी से तीन दिनों तक प्रशिक्षण लेने के बाद, मंजू अब अपने मुर्गी पालन केंद्र को बेहतर ढंग से संभाल पा रही हैं।   वह कहती हैं, "मुर्गियों के लिए सही आहार क्या है, या बीमारी फैलने पर क्या करना चाहिए, इसके बारे में हमें पहले कोई जानकारी नहीं थी। अब मैं छोटे छोटे काम खुद ही कर सकती हूं, और ज़रूरत पड़ने पर किसी आकस्मिक सहायता के लिए फ़ोन करके पशु सखी को बुला सकती हूं।"

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पशु सखियां उद्यमी बन कर भी अपनी आमदनी बढ़ा रही हैं।   रांची जिले के खांबिता गांव में रहने वाली 30 वर्षीय हसीबा खातून किसानों को मुर्गियां बेचती हैं। मुर्गी प्रजनन के द्वारा उनके पास 3000-4000 मुर्गियों का स्टॉक है, जिसे बेचकर उन्होंने लगभग एक लाख रुपए का मुनाफा कमाया है।   उन्होंने पशुधन सञ्चालन में 45 दिनों का अतिरिक्त प्रशिक्षण भी लिया है, और स्वयं एक मास्टर ट्रेनर हैं। उन्हें अक्सर राज्य के अन्य जिलों के दौरे पर भी जाना पड़ता है। वह कहती हैं, "मैं खुशकिस्मत हूं कि इस दौरान मेरे पति ने, पहले पशु सखी और बाद में एक मास्टर ट्रेनर के रूप में, मेरा साथ दिया है। मेरे प्रशिक्षण ने मुझे अपनी आय को तेजी से बढ़ाने में मदद की है।"

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झारखंड में जोहार परियोजना में ASCI द्वारा प्रमाणित ऐसे 29 मास्टर ट्रेनर मौजूद हैं।

विश्व बैंक द्वारा समर्थित जोहार परियोजना से लगभग 57,000 किसानों को लाभ मिला है,  जिनमें से 90 प्रतिशत महिलाएं हैं।

यूके के ऑक्सफ़ोर्ड समूह ने कार्यक्रम की निगरानी और मूल्यांकन से जुड़े अपने स्वतंत्र अध्ययन में पाया कि किसान अपने घरों से पशु-उत्पादन के काम से प्रति माह 45,000 रुपए से ज्यादा कमा रहे हैं।   यह जोहार परियोजना के शुरू होने से पहले की उनकी औसत कमाई से 55 से 125 गुना ज्यादा है।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान ने जोहार परियोजना के तहत पशु सखी मॉडल को कृषक सेवा में विश्व के 8 बेहतरीन अभ्यासों में से एक घोषित किया है।

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