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मुख्य कहानी 22 जुलाई, 2020

भारत के गांव में ज़रूरी बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराती स्वयंसेवी समूह की महिलाएं

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बैंक प्रतिनिधियों को ग्रामीण भारत में मूलभूत बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराने के लिए प्रशिक्षित किया गया है.

बैंक सखी


बैंक संवाददाताओं के रूप में काम करने वाली महिला एसएचजी सदस्य ग्रामीण भारत में कोविड-19 के दौरान बैंकिंग सेवाओं को दरवाजे तक ला रही हैं और साथ ही आपातकालीन वित्तपोषण में सहायता कर रही हैं।

बिहार के औरंगाबाद के दूर दराज़ स्थित इस गांव की बंधिनी कुमारी पहले कभी इतना व्यस्त नहीं रहीं.  सुबह से बंधिनी के सड़क किनारे स्थित छोटे से स्टॉल पर गांव की महिलाओं की कतार लग जाती है। कोविड संकट के समय में सरकार इन लोगों के बैंकों में जो मदद भेज रही है वही पैसा ये महिलाएं अपने बैंक एकाउंट से निकालना चाहती हैं।

एक बैंक सखी के तौर पर बंधिनी पिछले दो सालों से अपने गांव में लोगों को मूलभूत बैंकिंग सुविधा उपलब्ध करा रही है।   लेकिन इससे पहले उन्होंने लोगों की इतनी भीड़ नहीं देखी थी।   बंधिनी ने बताया, “जिन लोगों ने कभी अपने बैंक खाते को नहीं देखा वे लोग भी पैसे निकालने के लिए आ रहा है।   रोज़ाना 50 से लेकर 80 लोगों को संभालना पड़ता है।

अभूतपूर्व संकट के इस दौर में बंधिनी जैसी महिलाएं आम लोगों के लिए बहुत बड़ी मदद बनी हुई हैं।   कोविड संकट के समय में सरकार ग्रामीण महिलों को 500 रुपये प्रति माह की सहायता उपलब्ध करा रही है।   बंधिनी जैसी बैंक सखियों के नहीं होने से ग़रीब ग्रामीण महिलाओं के लिए सरकारी मदद को निकाल पाना बहुत मुश्किल होता।   सरकार के लिए भी देश के दूरस्थ इलाकों बसे 20।  6 करोड़ महिलाएं, जो इस योजना की लाभार्थी हैं, उन तक राहत पहुंचा पाना मुश्किल होता है।   

कोविड महामारी के शुरू होने के बाद से, बंधिनी हर दिन सुबह साढ़े चार बजे उठती हैं ताकि महिलाओं की मदद करने से पहले वह अपने घरेलू काम निपटा लें।   अपने स्टॉल के सामने वह चॉक से छह फ़ीट की दूरी पर घेरा बनाती हैं ताकि महिलाएं सोशल डिस्टेंसिंग के साथ खड़ी हो सकें।   इसके बाद वह मास्क और ग्लव्स पहनने के साथ साथ अपने उपकरण, माइक्रो एटीएम मशीन, लैपटॉप और स्कैनर को सैनिटाइज़ करती हैं।     

बंधिनी की तरह ही देश भर में हज़ारों बैंक सखी आम ग्रामीण महिलाओं की मदद कर रही हैं, इनकी सेवा का अंदाज़ा इस बात से हो रहा है कि ग्रामीण महिलाओं के बैंक खाते के इस्तेमाल की संख्या लगातार बढ़ रही है।   हालांकि निकासी के औसत मूल्य में इन दिनों कमी देखने को मिली है- अर्थव्यस्था की धीमी रफ़्तार के चलते- लेकिन फरवरी, 2020 में देश के 12 राज्यों में मौजूद 6,000 बैंक सखियों ने क़रीब 7,50,000 बार निकासी करते हुए 40 मिलियन डॉलर (क़रीब 260 करोड़ रुपये) निकाले।   यह जनवरी महीने की तुलना में 70,000 रुपये ज़्यादा थे।   

भारत सरकार की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) में वर्ल्ड बैंक की सहायता कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहीं गायत्री आचार्य ने कहा, “जब हमने ग्रामीण भारत में स्थानीय महिलाओं को बैंकिंग एजेंट बनाने के कांसेप्ट पर काम किया था, तब हमने कभी नहीं सोचा था कि ऐसे मुश्किल समय में वे इतने मूल्यवान साबित होंगे।  ”

बैंकिंग – एक ज़रूरी सेवा

भारत में बैंकिंग एजेंट या एक हद तक कह सकते हैं नंगे पांवों वाले बैंकर का विचार पहली बार 2006 में आया था जब भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को दूर दराज के ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने के लिए बैंकिंग एजेंट नियुक्त करने की अनुमति दी थी।   

2014 में, केद्र सरकार ने ग़रीब और उपेक्षित लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने के लिए देश व्यापी स्तर पर प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाय) शुरू की।   आम लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने की इस मुहिम के तहत मई, 2020 तक देश भर में कुल 40 करोड़ जन धन खाते खुल चुके थे।   

शुरुआत में, इनमें से ज़्यादातर बैंक खाते निष्क्रिय थे।   भारत के कुल साढ़े छह लाख गांवों में दस प्रतिशत से भी कम गांवों में किसी बैंक की शाखा मौजूद हैं।   ऐसी स्थिति में अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है कि इन बैंक खातों से लेन देन करने के लिए खाताधारकों को काफी लंबी दूरी तक आना जाना करना होता और नज़दीकी बैंक खाते तक पहुंचने के लिए आने जाने का ख़र्च उठाना पड़ता।   इसके अलावा इन खाता धारकों में कुछ निरक्षर भी हैं, जबकि कुछ अपना नाम लिख पाने जितने साक्षर हैं और इन लोगों के लिए बैंकिंग व्यव्स्था के काग़ज़ी कामों को पूरा करना बेहद चुनौतीपूर्ण था।   इसके अलावा गांवों में पहुंचने वाले ज़्यादातर बैंकिंग प्रतिनिधि पुरुष ही थे जिनसे ग्रामीण महिलाएं बात करने से झिझकती थीं।   इसके अलावा इस काम को छोड़ देने का चलन भी पुरुष प्रतिनिधियों में ज़्यादा देखा जा रहा था।

2015-16 में, भारत की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) ने वर्ल्ड बैंक की मदद से इस समस्या के निदान के लिए गांवों में स्वयं सेवी समूहों की महिलाओं को बैंकिंग प्रतिनिधि के तौर महिलाओं के नेतृत्व वाले मॉडल की शुरुआत की।   यह अभियान देश भर में मौजूद 70 लाख महिला स्वयंसेवी समूहों की कामयाबी और ज़मीनी स्तर पर ग़रीब लोगों के लिए संस्थानिक व्यवस्था के तौर पर उभरने के चलते हुआ है।    

ग्रामीण स्तर के लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने की इस मुहिम को बायोमैट्रिक पहचान संख्या यानी आधार से बहुत मदद मिली। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत सरकार की स्वयंसेवी समूहों में से बैंकिंग प्रतिनिधि तैयार करने के कार्यक्रम पर वित्तीय समावेशन के राष्ट्रीय मिशन प्रबंधक त्रिविक्रम ने बताया, “प्रधानमंत्री जन धन खातों को आधार से जोड़ना बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया। अब उपभोक्ता देश के किसी भी कोने में बैंकिंग प्रतिनिधि की मदद से अपने खाते से निकासी कर सकता है।”

इतना ही नहीं, सरकार ने अब आम लोगों को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं को सीधे बैंक खातों से जोड़ दिया है, मसलन विधवा पेंशन, छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति, रोजगार योजना के तहत मिलने वाले भुगतान, आदि सब सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में पहुंचने लगे हैं।   


"बाहरी दुनिया के एक्सपोज़र से मुझे इतना आत्मविश्वास मिला है। अब इससे पीछे नहीं मुड़ना है। "
बंधिनी
बैंक सखी

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स्थानीय स्वयंसेवी समूह की सदस्य होने के नाते बैंक सखी को अपने समुदाय का भरोसा हासिल होता है।   वे महिला उपभोक्ताओं के घर के अंदर जा सकती हैं और यह कोई पुरुष कभी नहीं कर सकता।

रोहित जैन


सबका फ़ायदा

वर्ल्ड बैंक की डेटा एनालिटिक्स की लीड अलरीना पिंटो ने बताया, “बैंक सखी अच्छे से काम करती हैं क्योंकि वे जहां काम करती हैं, उसी गांव की होती हैं।   स्थानीय स्वयंसेवी समूह की सदस्य होने के नाते बैंक सखी को अपने समुदाय का भरोसा हासिल होता है।   वे महिला उपभोक्ताओं के घर के अंदर जा सकती हैं और यह कोई पुरुष कभी नहीं कर सकता।  ”  

झारखंड के गुमला ज़िले की बैंक सखी निशा देवी ने कहा, “चूंकि हमलोग गांव में रहते हैं, हमारे उपभोक्ता त्योहार और अवकाश के दिनों में भी अपने पैसे निकाल सकते हैं।   पैसे जमा करने में भी उनको आसानी होती है, उन्हें बहुत दूर नहीं जाना होता है।  ”

इसमें कोई अचरज नहीं है कि कई जगहों पर पुरुष प्रतिनिधियों की तुलना में महिला बैंक सखी बेहतर काम कर रही हैं।   

इस व्यवस्था ने स्थानीय महिलाओं के लिए आमदनी के नए अवसर खोले हैं।   वहीं दूसरी बैंक बेहद कम ख़र्चे में अपने उपभोक्ताओं को बढ़ाते जा रहे हैं।

महिला बैंक प्रतिनिधियों के तौर पर ग्रामीण महिलाओं को रोज़गार मिलने का सामाजिक प्रभाव भी पड़ा है।   बैंक सखियों को अपने घर और समुदाय में जो पहचान और सम्मान मिलता है, उससे पितृसत्तात्मक सोच और जातिगत व्यवस्था की जकड़न टूट रही है और महिलाओं में सशक्तिकरण का भाव उत्पन्न हो रहा है।   

स्थानीय लड़कियों के लिए रोल मॉडल बन चुकीं बंधिनी ने बताया, “बाहरी दुनिया के एक्सपोज़र से मुझे इतना आत्मविश्वास मिला है।   अब इससे पीछे नहीं मुड़ना है।”

इससे ग्रामीण बैंकिंग व्यस्था में डिजिटल लेन देन तो बढ़ेगा ही साथ में ग्रामीण इलाकों में महिला उद्यमियों को भी तैयार करने में मदद मिलेगी।   




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