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मुख्य कहानी11 अप्रैल, 2020

भारत में, महिला स्वयं सहायता समूह करता है कोविड-19 (कोरोना वायरस) महामारी का मुकाबला

The World Bank

एक स्वयं सहायता समूह की सदस्य सुश्री फरहत झारखंड के पलामू के कोयल अपैरल पार्क में कार्यरत हैं। कोविड-19 (कोरोना वायरस) के खिलाफ भारत की लड़ाई में महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) जमीनी योद्धाओं के रूप में सामने आए हैं। अब तक, भारत के 27 राज्यों में लगभग 20,000 स्वयं सहायता समूहों द्वारा 1.9 करोड़ से अधिक मास्क का उत्पादन किया गया है।

फोटो क्रेडिट : ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार

भारत में महिला स्वयं सहायता समूह कोविड-19 (कोरोना वायरस) महामारी की असाधारण चुनौती के लिए तैयार हो गए हैं। वे मास्क, सैनिटाइज़र और सुरक्षात्मक उपकरणों की कमी को पूरा कर रहे हैं, सामुदायिक रसोई चला रहे हैं, गलत सूचनाओं से लड़ रहे हैं और यहां तक कि दूर-दराज के समुदायों को बैंकिंग और वित्तीय समाधान भी उपलब्ध करा रहे हैं।

कोरोना वायरस को हराने के लिए 1.3 अरब भारतीयों के 40 दिनों के अभूतपूर्व लॉकडाउन में रहने के दौरान महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की सामूहिक ताकत सामने आई है।

भारत के 90 प्रतिशत से अधिक जिलों में, शहरों की रोशनी से दूर, एसएचजी महिलाएं फेसमास्क का उत्पादन कर रही हैं, सामुदायिक रसोई चला रही हैं, आवश्यक खाद्य आपूर्ति कर रही हैं, लोगों को स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जागरूक कर रही हैं और गलत सूचनाओं का मुकाबला कर रही हैं।

भारत के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के लिए विश्व बैंक के 75 करोड़ डॉलर के समर्थन का नेतृत्व करने वाली गायत्री आचार्य ने कहा, “लगभग 15 साल पहले एक संकल्प के रूप में शुरू हुआ महिलाओं का आंदोलन इस कठिन समय में एक अमूल्य संसाधन साबित हुआ है।“ उन्होंने कहा कि "ग्रामीण गरीबों के बीच सामाजिक पूंजी के निर्माण में भारत सरकार के साथ हमारी साझेदारी ने मूल्य चुकता किया है।" एनआरएलएम गरीब ग्रामीण महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों में लामबंद करके और गरीबों के सामुदायिक संस्थानों का निर्माण करके गरीबी कम करने का भारत का प्रमुख कार्यक्रम है।

बैंक के जुड़ाव के पिछले दो दशकों में, भारत का एसएचजी आंदोलन गरीब ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए छोटी बचत और ऋण समूहों को दुनिया के सबसे बड़े संस्थागत मंचों में से एक बनाने की दृष्टि से विकसित हुआ। आज, 6.7 करोड़ भारतीय महिलाएं 60 लाख एसएचजी की सदस्य हैं।          

विकास के केंद्र में महिलाओं की दक्षिण एशिया में एक महत्वपूर्ण कहानी रही है। इस असाधारण समय में, जब हम सब कोविड-19 वायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई में एकजुट हैं, ये महिला समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
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जुनैद अहमद
भारत में विश्व बैंक के निदेशक

मल्टीमीडिया

मास्क, सैनिटाइजर और सुरक्षात्मक उपकरणों की कमी को पूरा करना

अब, पहले से कहीं अधिक, ये महिलाएं - जिनमें से कई एसएचजी मार्ग के जरिए गरीबी से उबर गईं और जानती हैं कि बेसहारा और गरीब होना कैसा होता है - स्वयं सहायता और एकजुटता के अपने आदर्श वाक्य पर जी रही हैं।

मास्क और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) की कमी को पूरा करने के लिए देश भर के समूह आक्रामक रूप से काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, ओडिशा में, कभी स्कूल की वर्दी सिलने में जुटी गरीब ग्रामीण महिलाएं अब इसके बजाय मास्क सिल रही हैं। पिछले दो हफ़्तों में, इन महिलाओं ने 10 लाख से अधिक सूती मास्क का उत्पादन किया है, जिससे पुलिस कर्मियों और स्वास्थ्य कर्मियों को सुसज्जित करने और अपने लिए कुछ न कुछ कमाने में मदद मिली है।

कुल मिलाकर भारत के 27 राज्यों में लगभग 20,000 एसएचजी द्वारा 100,000 लीटर से अधिक सैनिटाइज़र और लगभग 50,000 लीटर हैंड वाश के उत्पादन के अलावा 1.9 करोड़ से अधिक मास्क का उत्पादन किया गया है। चूंकि उत्पादन विकेंद्रीकृत है, इसलिए ये वस्तुएं जटिल
संचालन
और परिवहन की आवश्यकता के बिना व्यापक रूप से फैली हुई आबादी तक पहुंच गई हैं।

सामुदायिक रसोई चलाना

तालाबंदी के दौरान बड़ी संख्या में अनौपचारिक श्रमिकों की आजीविका छूटने और कुछ क्षेत्रों में खाद्य आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने के मद्देनजर एसएचजी ने देश भर में फंसे श्रमिकों, गरीबों और कमजोरों को खिलाने के लिए 10,000 से अधिक सामुदायिक रसोई स्थापित किए हैं।

इन रसोइयों को चलाने के लिए केरल में, कुदुम्बश्री,  सरकार की स्वाभाविक पसंद थी। कुदुम्बश्री देश के सबसे शुरुआती सामुदायिक मंचों में से एक है, जिसमें 44 लाख सदस्य हैं और उन्हें कई वर्षों का खानपान की व्यवस्था का अनुभव है। चुनौती की विशाल प्रकृति को देखते हुए, इन समूहों ने आश्चर्यजनक रूप से अपने प्रयासों को तेज कर दिया है और अब राज्य भर में 1,300 रसोई चला रहे हैं, साथ ही क्वारंटाइन और बिस्तर पर पड़े लोगों को भोजन भी उपलब्ध करा रहे हैं।

झारखंड में, जहां गरीबी अधिक है, सबसे जमीनी आधार होने के कारण एसएचजी जिला प्रशासन को भूख और भुखमरी की पहचान करने में मदद कर रहे हैं ताकि उन्हें सुधारने के प्रयास किए जा सकें।

जागरूकता बढ़ाना

यह महत्वपूर्ण है कि स्वयं सहायता समूह अफवाह और गलत सूचना पर अंकुश लगाने में मदद कर रहे हैं। बैंक के सामाजिक विकास विशेषज्ञ वरुण सिंह ने बताया कि “महिलाएं अपने व्हाट्सऐप समूहों के विशाल नेटवर्क का व्यवस्थित रूप से उपयोग कर रही हैं ताकि अराजकता और भ्रम से बचा जा सके, और जरूरत की इस घड़ी में सरकार को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की जा सके। प्रवासी श्रमिकों पर हाल ही में दिखा विनाशकारी प्रभाव, जहां अचानक काम छूटने पर बड़ी संख्या में परिवारों ने अपने गांव वापस जाने के लिए सैकड़ों मील दूर से चलना शुरू कर दिया, यह दर्शाता है कि जमीनी स्तर पर प्रामाणिक जानकारी को छानना कितना महत्वपूर्ण है।”

संपर्क में बड़ी मुश्किल से आने वाली आबादी के बीच कोविड से संबंधित संदेशों का प्रसार भी महिला समूह कर रहे हैं। केरल में, कुदुम्बश्री नेटवर्क मोबाइल फोन, पोस्टर और साप्ताहिक बैठकों के जरिए हाथ की स्वच्छता और सामाजिक दूरी के बारे में जागरूकता बढ़ाकर सरकार के ब्रेक द चेन अभियान की अगुवाई कर रहा है। भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक, बिहार में राज्य का एसएचजी मंच जीविका पत्रक, गीत, वीडियो और फोन संदेशों के जरिए हाथ धोने, क्वारंटाइन और स्व-एकांतवास के बारे में प्रचार कर रहा है।

महिलाएं हेल्प डेस्क भी चला रही हैं, और बुजुर्गों और क्वारंटाइन किए गए लोगों को आवश्यक खाद्य की आपूर्ति कर रही हैं। झारखंड में, जहां बड़ी संख्या में लोग काम करने के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं, वे प्रवासियों और अन्य कमजोर परिवारों को वापस लाने के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन चला रहे हैं।

बैंकिंग और पेंशन सेवाएं प्रदान करना

चूंकि लॉकडाउन के दौरान लोगों को खुद को बनाए रखने के लिए वित्त तक पहुंच प्राप्त करना महत्वपूर्ण है, इससे बैंकिंग संवाददाता के रूप में भी काम करने वाली एसएचजी महिलाएं एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में उभरी हैं। वित्त तक पहुंच को एक आवश्यक सेवा के रूप में मानते हुए इन बैंक सखियों ने पेंशन वितरित करना और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के जरिए सबसे जरूरतमंदों को अपने खातों से धन प्राप्त करने में सक्षम बनाने के अलावा, दूर-दराज के समुदायों को घर-घर बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना जारी रखा है। बैंकों ने इन महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण दिया है और उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया है ताकि वे लॉकडाउन के दौरान काम करना जारी रख सकें।

भारत में विश्व बैंक के डायरेक्टर जुनैद अहमद ने कहा कि “विकास के केंद्र में महिलाओं की दक्षिण एशिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन असाधारण समय में, जब हम सभी कोविड 19 वायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई में एकजुट हैं, तो ये महिला समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।”

भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय में एनआरएलएम का प्रबंधन करने वाली अतिरिक्त सचिव अलका उपाध्याय ने यह कहते हुए बात पूरी की कि “देश भर में, महिलाओं के स्वयं सहायता समूह इस असाधारण चुनौती के लिए अत्यधिक साहस और समर्पण के साथ आगे बढ़े हैं।"

खाद्य असुरक्षा और वस्तुओं एवं सेवाओं की कमी की स्थिति में उनकी त्वरित प्रतिक्रिया से पता चलता है कि संकट के समय में यह विकेन्द्रीकृत संरचना एक महत्वपूर्ण संसाधन कैसे हो सकती है। भारत की ग्रामीण महिलाओं की ताकत सबसे कठिन अवधि समाप्त होने के बाद आर्थिक गति को वापस बनाने के लिए आवश्यक बनी रहेगी।”

महिला स्वयं सहायता समूहों को भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) द्वारा समर्थित किया जा रहा है, जिसे विश्व बैंक द्वारा सह-वित्तपोषित किया गया है। एनआरएलएम ने देश के 28 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों में एसएचजी मॉडल को बढ़ाया है, जो 6.7 करोड़ से अधिक महिलाओं तक पहुंच गया है। महिलाओं ने 1.4 अरब डॉलर की बचत की है और वाणिज्यिक बैंकों से और 37 अरब डॉलर का लाभ उठाया है।

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