प्रेस विज्ञप्ति

भारत: मौजूदा मंदी से संवृद्धि को गतिशील बनाने के लिए सुधारों को आगे बढ़ाने का अवसर मिलेगा

16 अक्तूबर, 2013



2014 में संवृद्धि के बढ़कर 4.7% और 2015 में 6.2% रहने की आशा;
विशेष रूप से कम आमदनी वाले राज्यों में ग़रीबी कम करने की रफ़्तार अधिक तेज़ रहेगी

नई दिल्ली, 16 अक्टूबर, 2013: विश्व के बाज़ारों में हाल की उथल-पुथल का भारत पर बुरा असर पड़ने की संभावना नहीं है तथा इसके बजाय सुधारों के क्षेत्र में और अधिक प्रगति के ज़रिये संवृद्धि की रफ़्तार को बढ़ाने का अवसर मिल सकता है। उक्त बात विश्व बैंक के नवीनतम भारत विकास अद्यतन (इंडिया डेवलपमेंट अपडेट): अक्टूबर 2013 में कही गई है।

अद्यतन के अनुसार, जो भारतीय अर्थव्यवस्था और इसकी संभावनाओं के बारे में विश्व बैंक द्वारा वर्ष में दो बार जारी की जाने वाली रिपोर्ट है, वैश्विक निवेशकर्ताओं ने उभरती हुई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर अधिक गहराई के साथ ध्यान केन्द्रित किया है, जिनके चालू खाते के और वित्तीय घाटे कहीं अधिक हैं। उन्होंने इस उम्मीद के साथ विकासशील बाज़ारों से अपना धन निकाल लिया है कि जोखिम से भरे मौजूदा माहौल में अमेरिका के फ़ेडरल रिज़र्व का क्वांटिटेटिव ईज़िंग प्रोग्रैम जल्दी ही ख़त्म हो जाएगा। भारत के दोहरे घाटों के साथ-साथ संवृद्धि की घटती हुई रफ़्तार से भी निवेशकर्ताओं का डर और बढ़ गया है।

विश्व बैंक में दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए मुख्य अर्थशास्त्री मार्टिन रामा ने कहा है, वर्ष 2030 तक घोर ग़रीबी दूर करने के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत में संवृद्धि की अधिक ऊंची दरें अर्जित करना महत्त्वपूर्ण है। जहां पिछले कुछ महीनों में आर्थिक सुधारों की रफ़्तार में तेज़ी आई है, मौजूदा स्थिति से कारोबारी माहौल को और सुदृढ़ करने तथा वित्तीय स्पेस बढ़ाने का अवसर मिलता है।

रिपोर्ट में संवृद्धि के वित्तीय वर्ष 2015 में बढ़कर 6.2% होने से पहले इस वित्तीय वर्ष (2014) में बढ़कर 4.7% हो जाने की आशा व्यक्त की गई है। हालांकि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उत्पादन में वृद्धि घटकर 4.4% पर आ गई, बुनियादी घाटे में कमी आने, कृषि क्षेत्र में अच्छी फ़सल होने की आशा (जिसमें बुआई के क्षेत्र में 5% की वृद्धि होने से कृषि-संवृद्धि में 3.4% की वृद्धि होने की आशा है, जो एक वर्ष पहले 1.9% थी), और रुपये के मूल्य में गिरावट से निर्यात में उल्लेखनीय लाभ होने से वित्त वर्ष 2014 की दूसरी छमाही में संवृद्धि में तेज़ी से वृद्धि होने की आशा है। संवृद्धि में मध्यावधि में और अधिक सुधार होने की आशा है, क्योंकि निर्यात में मजबूती आ जाने से औद्योगिक प्रतिलाभ को भी समर्थन मिलेगा तथा नई निवेश परियोजनाएं शुरू हो जाएंगी।

रिपोर्ट के अनुमानों के अनुसार वैश्विक बृहत्-आर्थिक (ग्लोबल मैक्रोइकोनॉमिक) माहौल में सुधार होगा और वैश्विक संवृद्धि वर्ष 2013 में लगभग 2% से बढ़कर 2014 में 3% से अधिक हो जाएगी। हाल ही में रुपये की स्थिति में गिरावट से भारत को विश्व में आर्थिक प्रतिलाभ से लाभ उठाने का अवसर मिलेगा। लेकिन उक्त अवसरों का लाभ उठाने के लिए बुनयादी ढांचे की कमी को घटाने, पूंजीकरण के माध्यम से वित्तीय क्षेत्र पुश्ता, बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में व्यापक सुधारों तथा प्रतिबंधी नियामक परिवेश (रेस्ट्रिक्टिव रेग्यूलेटरी इन्वाइरनमेंट) के ज़रिये वित्तीय क्षेत्र को समर्थन देने के लिए नीतिगत प्रयास करने की ज़रूरत पड़ेगी। उक्त परिवेश से भारतीय फ़र्मों को छोटा रहने तथा सुदृढ़ वित्तीय संतुलन बनाए रखने के लिए सशक्त प्रोत्साहन मिलते हैं।

भारत में विश्व बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री डेनिस मेद्वेदेव ने कहा, भारत में संवृद्धि की संभावनाएं काफी अधिक हैं, लेकिन इसकी बृहत्-आर्थिक कमज़ोरियों (वल्नरेबिलिटीज़)बहुत अधिक मुद्रास्फ़ीति, चालू खाते में अधिक घाटा और रुपये के मूल्य में गिरावट आने से वित्तीय संतुलन पर बढ़ता हुआ दबावका आर्थिक प्रतिलाभ की रफ़्तार पर असर पड़ सकता है। हालांकि पिछले कुछ सप्ताहों में बाज़ार के रुख (सेंटिमेंट्स) में सुधार हुआ है, अंतर्निहित चुनौतियां मौजूद हैं, जिनसे दूरदर्शी बृहत्-आर्थिक नीतियों तथा सुधारों में सतत प्रगति के महत्त्व का पता चलता है, ताकि भविष्य में गतिशील संवृद्धि के लिए सुदृढ़ आधार तैयार हो सके।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जहां एक ओर ग़रीबी कम हो रही है, कमज़ोरियां मौजूद हैं। वर्ष 2005 से 2012 के बीच भारत ने 13.7 करोड़ लोगों को ग़रीबी के चंगुल से निकाला और ग़रीबी की दर घटकर 22% रह गई। भारत ने साझा समृद्धि के क्षेत्र में भी अपना कार्य-प्रदर्शन सुधारा है और वर्ष 2005 के बाद से खपत में भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ोतरी हुई है। लेकिन साथ ही भारत की आधे से अधिक आबादी आघात योग्य (वल्नरेबिल) है–यह ग़रीबी की पहली और दूसरी रेखाओं के बीच में रह रही है–तथा संवृद्धि औसत संवृद्धि से थोड़ी पिछड़ी हुई है। मेद्वेदेव ने आगे कहा, "भारत में ग़रीबी दूर करने की रफ़्तार में वर्षों के दौरान तेज़ी आई है और ग़रीबी में यह कमी अधिकतर कम आमदनी वाले राज्यों में हो रही है।

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भारत
सुदीप मोज़ुम्दर
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वाशिंगटन
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प्रेस विज्ञप्ति नं:
10/16/2013/SAR

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