प्रेस विज्ञप्ति

भारत वैश्विक आर्थिक वृद्धि से फायदा उठाने के लिए मजबूत स्थिति में : विश्व बैंक की नई रिपोर्ट

20 जून, 2014


नई दिल्ली, 20 जून, 2014 : अधिकतर विकासशील देशों के विपरीत भारत की हाल में आर्थिक वृद्धि उसकी क्षमता से बहुत कम रही है जो महंगाई को अधिक बढ़ाए बिना आर्थिक गतिविधि तेज करने का अवसर उपलब्ध कराती है।

आज नई दिल्ली में प्रस्तुत वैश्विक आर्थिक परिदृश्य 2014 में कहा गया है कि भारत में आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2014-15 में 5.5 प्रतिशत रहने की संभावना है। यह 2015-16 में बढ़कर 6.3 प्रतिशत और 2016-17 में 6.6 प्रतिशत हो सकती है। यह खबर ऐसे समय आई है जब अन्य बहुत से विकासशील देशों के लिए आर्थिक परिदृश्य मोटे तौर पर समतल नजर आता है क्योंकि वे अब संकट से उबर चुके हैं और रिपोर्ट के अनुसार अब वे अपनी क्षमता प्राप्त करने की ओर बढ़ रहे हैं।

कुल मिलाकर, जैसे-जैसे वर्ष गुजरेगा वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेज़ गति आने की संभावना है तथा इस वर्ष इसकी 2.8 प्रतिशत बढ़ने की आषा है जो 2015 में बढ़कर 3.4 एवं 2016 में 3.5 प्रतिशत होने की संभावना है। उच्च-आमदनी वाली अर्थव्यवस्थाएं 2015 और 2016 में वैश्विक वृद्धि का लगभग आधा यानी पचास प्रतिशत योगदान करेंगी जबकि इसकी तुलना में 2013 में यह 40 प्रतिशत से भी कम था।

विकसित देश अगले तीन वर्ष में वैश्विक मांग में अतिरिक्त 6.3 ट्रिलियन अमरीकी डाॅलर का योगदान कर सकते हैं जो पिछले तीन वर्षों के दौरान उनके योगदान की तुलना में 3.9 ट्रिलियन अमरीकी डाॅलर से अधिक की बढ़ोत्री महत्वपूर्ण है तथा विकासशील देशों से संभावित योगदान की तुलना में अधिक है। यह गति व्यापक रूप से अमरीका और यूरोप में अर्थव्यवस्था के फिर से पटरी पर आने के कारण होगी, भारत के मुख्य व्यापारिक भागीदार के रूप में वे देश के निर्यात के लिए बढ़ता बाजार उपलब्ध कराएंगे।

भारत में  विश्व बैंक के कंट्री निदेशक, ओन्नो रूह्ल ने कहा, “बढ़ती वैश्विक मांग के साथ, हमें घरेलू निवेश में फिर से तेजी आने की आषा है। उत्पादन गतिविधि में तेजी से भारत को 5 प्रतिशत से नीचे रही आर्थिक वृद्धि को अगले वर्ष 6 प्रतिशत करने में सहायता मिलेगी। ऊर्जा आपूर्ति में रुकावटों को दूर करना, कारोबार करने का माहौल सुधारना और रुकी हुई सरकारी-निजी भागीदारी परियोजनाओं को आगे बढ़ाना कुछ ऐसे प्रमुख उपाय हैं जिन्हें, भारत को फिर से उच्च आर्थिक वृद्धि के पथ पर लाने के लिए, लघु अवधि में संबोधित किए जाने की आवष्यकता हैं।”

रिपोर्ट जारी करने के अवसर पर रुह्ल ने सुझाव दिया कि लघु और मध्यम अवधि प्राथमिकताओं से भारत को आर्थिक वृद्धि दर फिर से तेज करने और गरीबी उन्मूलन में प्रगति करने में सहायता मिलेगी।

आर्थिक वृद्धि की राह में तत्काल रुकावटों को दूर करना महत्वपूर्ण रहेगा। कंपनियों की विनियामक और अनुपालन लागत कम करने के द्वारा कारोबारी महौल सुधारने से इन कुछ रुकावटों को हटाने में सहायता मिलेगी। वितरण कंपनियों के प्रदर्शन में सुधार के द्वारा बिजली क्षेत्र के जीर्णोद्धार और यह सुनिश्चित करना कुछ और प्रमुख कदम हैं कि इस क्षेत्र में कंपनियां वित्तीय अनुुशासन का पालन करें। इसके अलावा बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश, सरकारी निजी भागीदारी अनुबंधों का पुनः मूल्य निर्धारण और समेकित तार्किक रणनीति के विकास से परिवहन प्रणाली में टूटी कड़ी को संबोधित किया जा सकता है।

जीइपी 2014 रिपोर्ट यह दिखाती है कि वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय समेकन में निरंतर प्रगति और गरीब समर्थक व्यय के लिए स्थान बनाने की आवश्यकता है। भारत का सामान्य सरकारी घाटा कम होने के बावजूद अब भी 2007 की तुलना में जीडीपी के 2 प्रतिशत अंकों से अधिक है जिससे संकेत मिलते हैं कि घटता हुआ वित्तीय बफर अभी पूरी तरह बहाल नहीं हुआ है।

रुह्ल ने कहा, “ ईंधन, भोजन और उर्वरक के लिए अनुदानों पर खर्च किए जा रहे संसाधनों के अधिक प्रभावषाली उपयोग के अतिरिक्त, भारत को राजस्व सृजन को बढ़ावा देने की आवष्यकता है। ”जीएसटी को लागू करने, अनुदानों को बेहतर ढंग से लक्ष्य बनाने और कर का आधार व्यापक करने से त्वरित विकास और गरीबी घटाने को समर्थन के लिए वित्तीय स्थान बनाने में सहायता मिलेगी।

रिपोर्ट के प्रमुख लेखक एंड्रयू बन्र्स ने कहा, ”निरंतर वित्तीय समेकन से निजी निवेश के लिए अतिरिक्त स्थान बनाने में सहायता  मिलेगी। व्यय में दक्षता मानव पूंजी और भौतिक बुनियादी ढांचे में सरकारी निवेश गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से पैसा सृजित करने का संभावित रास्ता है। ”

रुह्ल ने विकास के गहन निर्देशकों के समर्थन के महत्व पर बल दिया जैसे शहरी बुनियादी ढांचे का विकास और शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना तथा खाद्य वितरण अक्षमताओं को कम करके कृषि उत्पादकता बढ़ाना, कृषि व्यापार का सरलीकरण और विपणन तथा फसल जोखिमों से सुरक्षित होने में किसानों की सहायता  करना। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और कौशल एवं श्रमशक्ति प्रशिक्षण में अधिक निवेश भारत को वैश्विक अवसरों से पूरा लाभ उठाने की स्थिति में पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण होगा। 

निकट अवधि परिदृश्य में मुख्य जोखिम माॅनसून की वर्षा का कम होना है। रिपोर्ट के अनुसार शायद अल नीनो मौसम दषा के कारण ऐसा होएगा। औसत से कमजोर माॅनसून दक्षिण एशिया में जीडीपी वृद्धि आधा या उससे अधिक प्रतिशत अंक तक घटा सकता है जबकि मजबूत अल नीनो दशा के फलस्वरूप वर्षा में कमी या सूखे से और भी अधिक बुरे प्रभाव होने की आशंका है।

तनावग्रस्त बैंक ऋण (पुनः व्यवस्थित किए गए ऋण सहित) भारत में कुल ऋणों का 10 प्रतिशत से अधिक हो गया है जो एक और असुरक्षा का स्रोत है। रिपोर्ट के अनुसार यदि इस चुनौती से नहीं निपटा गया तो इसके फलस्वरूप भारत में निवेश चक्र को फिर शुरू करने के लिए पर्याप्त वित्त नहीं रहेगा।

जीइपी 2014 के बारे में अधिक जानकारी के लिए या रिपोर्ट डाउनलोड करने के लिए www.worldbank.org/globaloutlook देखें।

भारत में विश्व बैंक की गतिविधियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए www.worldbank.org.in देखें। 



मीडिया संपर्क
भारत में
नंदिता रॉय
टेलिफ़ोन: 91-11-41479220
nroy@worldbank.org
वाशिंगटन में
गैब्रिएला ऐगुइलर
gaguilar2@worldbank.org



प्रेस विज्ञप्ति नं:
06202014

Api
Api

Welcome