प्रेस विज्ञप्ति

विश्व बैंक बोर्ड द्वारा भारत में बच्चों के बीच पोषण की स्थिति में सुधार लाने के लिए 10.6 करोड़ अमरीकी डॉलर की धनराशि स्वीकृत

6 सितंबर, 2012




यह परियोजना 8 राज्यों में, विशेषकर कुपोषण के अत्यधिक भार से ग्रस्त 162 ज़िलों में क्रियान्वित की जाएगी 

वाशिंगटन, 6 सितम्बर, 2012: आज विश्व बैंक ने भारत सरकार के 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों में पोषण की स्थिति में सुधार लाने के प्रयासों को समर्थन देने के लिए दो चरणों वाले ऋण के पहले अंश के तौर पर 10.6 करोड़ अमरीकी डॉलर के क्रेडिट को स्वीकृति प्रदान की। 0-3 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा।

विश्व बैंक द्वारा आज स्वीकृत की गई आईसीडीएस सिस्टम्स स्ट्रैंग्थेनिंग एंड न्यूट्रिशन इम्प्रूवमेंट परियोजना (आईएसएसएनआईपी) में गर्भवती/स्तन-पान कराने वाली महिलाओं के साथ-साथ 0-3 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को मुहैया कराई जाने वाली सेवाओं में सुधार करने पर ध्यान दिया जाएगा। परियोजना का पहला चरण अगले तीन वर्षों में और चार-वर्षीय दूसरा चरण इसके परिणामों को सफलतापूर्वक अर्जित करने के बाद क्रियान्वित किया जाएगा। नीतिगत और संस्थागत सुधारों के साथ-साथ नई प्रायोगिक योजनाओं व कार्यक्रमों को कुपोषण के अत्यधिक भार से ग्रस्त आठ राज्यों[1] में परखा जाएगा, जिसके दौरान इन राज्यों में कुपोषण के अत्यधिक भार से ग्रस्त 162 ज़िलों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा।

                आज, भारत उन देशों में से है, जिनमें कुपोषण का स्तर विश्व में सर्वाधिक है। पैदा होने वाले एक-तिहाई बच्चों का वज़न कम होता है, पांच वर्ष से छोटे 43 प्रतिशत बच्चों का वज़न कम होता है, 48 प्रतिशत बच्चे क़द में छोटे रह जाते हैं, 20 प्रतिशत कमज़ोर होते हैं, 70 प्रतिशत अनीमिया (अरक्तता) का शिकार होते हैं और 57 प्रतिशत में विटामिन ए की कमी होती है।

हालांकि भारत में कुपोषण ग़रीबों तक ही सीमित नहीं है, पोषण-संबंधी सूचकांकों में उल्लेखनीय क्षेत्रीय विषमताएं हैं। कुपोषण का 60 प्रतिशत भार कम आय वाले राज्यों (बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) में तथा 8 से 10 प्रतिशत अतिरिक्त भार आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों के विशिष्ट भौगोलिक इलाकों में संकेन्द्रित है।

एक विस्तृत और दूरगामी संरचना के जरिए मार्गदर्शन के बावजूद गत वर्षों में भारत के कुपोषण-संबंधी अग्रणी कार्यक्रम इंटेग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज़ (आईसीडीएस) में अधिकतर भोजन से संबंधित कार्यों और 3 से 6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों पर ही ध्यान दिया गया है। लेकिन, शोध से पता चलता है कि बार-बार संक्रमण (इंफ़ेक्शन) का शिकार होना, स्वास्थ्य सेवाओं का अपर्याप्त इस्तेमाल, सफ़ाई की कमी और विशेषकर गर्भावस्था के दौरान तथा जीवन के आरंभिक दो वर्षों में बच्चों को दूध पिलाने और उनकी देखभाल करने में रह जाने वाली कमियां कुपोषण में बढ़ोतरी करने वाले प्रमुख कारक हैं। सरकार आईसीडीएस कार्यक्रम की विस्तृत समीक्षा कर रही है और गर्भवती/स्तनपान करने वाली माताओं तथा तीन वर्ष से छोटे बच्चों पर पहले से अधिक ध्यान देने के लिए नए-नए दृष्टिकोण अपना रही है। संसाधन उन क्षेत्रों पर लक्षित किए जाएंगे, जिनमें कुपोषण का भार बहुत अधिक है।

भारत में विश्व बैंक के कंट्री डाइरेक्टर ओन्नो रुह्ल ने कहा है,“बच्चे के जीवन के आरंभिक वर्षों के दौरान कुपोषण के दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं। कुपोषित बच्चों की मृत्यु दर अधिक और ज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) क्षमता कम होती है; उनके पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने की काफी संभावना रहती है और वे जीवन में आगे अधिक काम नहीं कर पाते। कुपोषण बच्चे के पैदा होने से पहले भी शुरू हो सकता है और यह जटिल स्थिति उसके दो वर्ष का होने तक बनी रह सकती है।” उन्होंने आगे कहा, “इस परियोजना से गर्भवती माताओं और उनके बच्चों के पोषण में सुधार करने के लिए आवश्यक संस्थागत क्षमता और कार्यप्रणालियों का गठन करने की दिशा में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों को मदद मिलेगी।”

यही वजह है कि परियोजना आईसीडीएस के अंतर्गत कार्यप्रणालियों को सुदृढ़ करते हुए और स्वास्थ्य-संबंधी अन्य कार्यक्रमों के साथ बहुक्षेत्रीय तालमेल बिठलाते हुए स्वस्थ गर्भावस्था; समय पर और केवल स्तन-पान कराने; समुचित आहार और देखभाल; निजी, विशेषकर 0-3 वर्ष के आयु वर्ग की स्वच्छता; आदतों में बदलाव लाने; समुदायों को बेहतर क्वालिटी की बाल विकास और पोषण सेवाओं की मांग करने की अधिकारिता देने; और सार्वजनिक संसाधनों की तकनीकी क्षमता जैसे क्षेत्रों में सरकार के कामकाज में सुधार करने के उद्देश्य से बनाई गई है।

विश्व बैंक के अग्रणी स्वास्थ्य विशेषज्ञ और परियोजना के टॉस्क टीम लीडर रमेश गोविंदराज ने कहा है, “हमें आशा है कि इंटेग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज़ (आईसीडीएस) कार्यक्रम के अंतर्गत परियोजना से मानव संसाधन-नीतियों , इनकी प्रबंधन सूचना प्रणाली, इसकी क्षमता-निर्माण नीति को सुदृढ़ करने, आदतों में बदलाव लाने के प्रति दृष्टिकोण और समुदायों के साथ मिलकर काम करने के सरकार के प्रयासों को मदद मिलेगी।” उन्होंने आगे कहा, “हमें यह भी आशा है कि इस परियोजना से ज़िला-स्तर पर पोषण-संबंधी परिणामों में सुधार को लक्षित बहुक्षेत्रीय सहयोग को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी।”

उक्त परियोजना का वित्त-पोषण इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए) द्वारा किया जाएगा। विश्व बैंक का ऋण देने वाला यह निकाय ब्याज-मुक्त ऋण मुहैया कराता है, जो 25 वर्ष में देय होता है और जिसका पुनर्भुगतान पांच वर्ष बाद शुरू होता है।

भारत के समक्ष पोषण-संबंधी चुनौतियां,

नवम्बर 2010:

प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय पोषण परिषद्

·         आईसीडीएस का सुदृढ़ीकरण और पुनर्गठन, जिसमें गर्भवती/स्तन-पान कराने वाली महिलाओं के साथ-साथ 0-3 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा।

·         स्थानीय गतिविधि के प्रति नमनीयता और विशेषकर ज़िला और गांव स्तर पर दूसरे राष्ट्रीय कार्यक्रमों के साथ संस्थागत सहयोग का सुदृढ़ीकरण।

·         कुपोषण का अत्यधिक भार वाले 200 ज़िलों में बहुक्षेत्रीय योजना तैयार करना, और

·         कुपोषण के ख़िलाफ़ देशव्यापी सूचना, शिक्षा और संपर्क अभियान चलाना।


[1]  आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश।

 

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में भारत
नंदिता रॉय
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में वाशिंगटन
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प्रेस विज्ञप्ति नं:
2013/050/SAR

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