प्रेस विज्ञप्ति

विश्व बैंक द्वारा जल-क्षेत्र प्रबंधन तथा औद्योगिक प्रदूषण कम करने में भारत की मदद

3 जून, 2010




वाशिंगटन, डी.सी., 3 जून 2010 – ‌विश्व बैंक ने आज यहां 51.5 करोड़ अमरीकी डॉलर की लागत की दो परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान की, जिसमें आंध्र प्रदेश जल-क्षेत्र सुधार परियोजना के लिए 45 करोड़ 6 लाख अमरीकी डॉलर का लोन (ऋण) और औद्योगिक प्रदूषण-प्रबंधन परियोजना के लिए क्षमता का गठन करने के लिए 6 करोड़ 41 लाख 50 हज़ार अमरीकी डॉलर लोन/क्रेडिट शामिल है।

आंध्र प्रदेश जल-क्षेत्र सुधार परियोजना का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में नियोजन के लिए राज्य की संस्थागत क्षमता का सुदृढ़ीकरण तथा इसके जल-संसाधनों का विकास और प्रबंध करना है। इसमें नागार्जुन सागर योजना (एनएसएस) में ‌सिंचित कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए मुहैया कराई जाने वाली सिंचाई सेवाओं में स्थाई आधार पर सुधार करना शामिल है। नागार्जुन सागर योजना एक विशाल बहुउद्देशीय जल परियोजना है, जो पन-बिजली (हाइड्रो-पॉवर) पैदा करती है, उद्योगों को जल, ग्रामीण और शहरी इलाकों को पेय जल तथा लगभग 0.9 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के लिए जल मुहैया कराती है। पिछले 40 वर्षों में समुचित रखरखाव और सिंचाई-प्रबंधन के अभाव में व्यवस्था बिगड़ चुकी है और अंतिम सिरों पर बसे इलाकों तक जल पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाता।

विश्व बैंक के वरिष्ठ सिंचाई इंजीनियर तथा परियोजना के टीम लीडर आर.एस. पाठक ने कहा, ‘‘कृषि आंध्र प्रदेश का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें अधिकांश ग्रामीण आबादी काम करती है, और जो इसके सकल घरेलू उत्पादन में लगभग 29 प्रतिशत का अंशदान करता है। इस परियोजना से नागार्जुन सागर योजना के पुनर्गठन और आधुनिकीकरण तथा आंध्र प्रदेश में जल-क्षेत्रीय संस्थाओं के पुनर्गठन में मदद मिलेगी, ताकि इनके जल-संसाधनों का कुशलतापूर्वक प्रबंध करने और समुचित सिंचाई सेवाएं मुहैया कराने की इनकी क्षमता में सुधार हो सके। कृषि के क्षेत्र में मुहैया कराई जाने वाली समर्थनकारी सेवाओं के सुदृढ़ीकरण तथा पहले से बेहतर मार्केटिंग व्यवस्था के साथ-साथ उक्त कार्यों से परियोजना के क्षेत्र में जल की उत्पादकता में वृद्धि करने की किसान की कुशलता में बढ़ोतरी होगी।’’

औद्योगिक प्रदूषण-प्रबंधन परियोजना के लिए क्षमता का गठन करने की परियोजना पूरे भारत में प्रदूषित इलाकों की बहुतायत को ध्यान में रखकर बनाई गई है।  भारत सरकार की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 36,000 उद्योग हैं, जिनसे प्रति वर्ष लगभग 62 लाख टन ख़तरनाक अपशिष्ट पदार्थ पैदा होता है। अनेक स्थानों पर औद्योगिक कीचड़ और कारखानों से निकलने वाला ख़तरनाक स्राव, जिसमें भारी धातु मिली होती है, बड़ी मात्रा में खुले इलाकों और नदियों में डाल दिए जाते हैं, रिहाइशी इलाकों के समीप और खेती की ज़मीन पर यों ही छोड़ दिए जाते हैं। कूड़े के इन ज़हरीले ढेरों से मिट्टी और भौम-जल दूषित हो चुका है और इनका स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य को बुरा असर पड़ रहा है।

परियोजना का उद्देश्य यों ही छोड़ दिए गए इन स्थानों पर ध्यान देने के उद्देश्य से संदूषित स्थानों के पुनर्गठन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (नेशनल प्रोग्राम फ़ॉर रिहैबिलिटेशन ऑफ़ पल्यूटेड साइट्स) शुरू करने के लिए नीति-संबंधी, संस्थागत और कार्यप्रणाली-संबंधी ढांचे के विकास में मदद करना है।

सामाजिक, पर्यावरण और जल-संसाधनों के लिए विश्व बैंक के कंट्री सेक्टर कोऑर्डिनेटर और परियोजना के टीम लीडर चार्ल्स कोर्मिएर ने कहा, ‘‘परियोजना के दृष्टिकोण में निहित तर्क है - संस्थागत क्षमता का विकास करना, नियमन-संबंधी कमियों को दूर करना, सफ़ाई करने वाली समुचित पद्धतियों का प्रदर्शन करना। इसी बात को ध्यान में रखते हुए परियोजना उन सभी तत्त्वों को स्थापित करेगी, जिससे यों ही छोड़ दिए गए स्थानों की पहचान तथा इनकी सफ़ाई करने से संबंधित प्रयासों का विस्तार हो सके।’’

इंटरनेशनल बैंक फ़ॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (आईबीआरडी) द्वारा आंध्र प्रदेश जल-क्षेत्र सुधार परियोजना के लिए मुहैया कराया जाने वाला 45 करोड़ 6 लाख अमरीकी डॉलर का ऋण 30 वर्षों में देय है, जिसमें 5 वर्ष की ग्रेस अवधि भी शामिल है।

परियोजना के लिए इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन द्वारा मुहैया कराए जाने वाले 3 करोड़ 89 लाख 40 हज़ार अमरीकी डॉलर के क्रेडिट पर 0.75 प्रतिशत का सेवा शुल्क देय है, इसके लिए ग्रेस की अवधि 10 वर्ष है और इसकी मैच्योरिटी अवधि 35 वर्ष है।

औद्योगिक प्रदूषण-प्रबंधन परियोजना के लिए क्षमता का गठन करने वाली परियोजना के लिए 2 करोड़ 52 लाख 10 हज़ार अमरीकी डॉलर का ऋण 30 वर्ष में देय है, जिसमें 5 वर्ष की ग्रेस अवधि शामिल है।

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