मुख्य कहानी

ईस्टर्न डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर परियोजना

31 मई, 2011


भारत अपने डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर कार्यक्रम (डीएफ़सी) के अंतर्गत देश में माल-ढुलाई की ऐसी व्यवस्था का गठन करने में सक्षम होगा, जो विश्व की इस प्रकार की विशालतम व्यवस्थाओं में से होगी। उक्त कॉरिडोर से 30 वर्ष की अवधि के दौरान ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन (इमिशन) में 2.25 गुना की कमी होगी। विश्व बैंक इस कार्यक्रम के पहले चरण में 97.5 करोड़ डॉलर की सहायता देगा।

31 मई, 2011: परिवहन की समस्त प्रणालियों से संबंधित इन्फ़्रॉस्ट्रक्चर (अवसंरचना) के क्षेत्र में निवेश में लंबे समय से चली आ रही कमी की वजह से भारत के परिवहन क्षेत्र में भीड़-भड़क्का काफी बढ़ गया है और सेवाओं का स्तर गिर गया है। लेकिन, 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध से सड़क परिवहन में निवेश में बढ़ोतरी होने से इस क्षेत्र में रेल से भी अधिक तेज़ी से वृद्धि हुई है। आज भारत में यात्रियों के 90 प्रतिशत आवागमन और 65 प्रतिशत माल की ढुलाई के लिए सड़क परिवहन का उपयोग किया जाता है। लंबी दूरी तय करने के लिए रेल परिवहन अधिक उपयुक्त है - इस तथ्य के बावजूद उक्त प्रतिशत में वृद्धि हो रही है। तेल की बढ़ती हुई क़ीमतों, इससे जुड़े ऊर्जा-सुरक्षा संबंधी मुद्दों तथा सड़क परिवहन से जुड़े ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन (इमिशन) के बारे में बढ़ती हुई चिंताओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार देश में रेल परिवहन की भागीदारी का अंश बढ़ाने के लिए वचनबद्ध है। इसके लिए रेल की प्रतिस्पर्द्धी क्षमता का पुनर्गठन करने की ज़रूरत है।

यही कारण है कि भारत के डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर (डीएफ़सी) कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय रेल द्वारा अपने इन्फ़्रॉस्ट्रक्चर के निर्माण और सेवाओं के परिचालन के क्षेत्र में अपनाए जाने वाले तरीकों में उल्लेखनीय बदलाव है, जिससे यह अपने ग्राहकों (कस्टमर बेस) और बाज़ार-अंश (मार्केट शेयर) का विस्तार करने में सक्षम हो सके। भारतीय रेल का रेल-नेटवर्क लगभग चीन जितना ही बड़ा है, लेकिन माल ढुलाई के क्षेत्र में यह अमेरिका, चीन, रूस और कनाडा के बाद विश्व में पांचवे स्थान पर है। भारतीय रेल के चार प्रमुख मार्ग, जो गोल्डन क्वाड्रिलेटरल के नाम से सुविदित हैं, दिल्ली, मुंबई, चेन्नै और कोलकाता जैसे महानगरों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं और इन मार्गों से होकर गुजरने वाला रेल-परिवहन देश में सबसे घना है। लेकिन, ये मार्ग अत्यंत व्यस्त हैं – हालांकि इन पर भारतीय रेल का मात्र 16 प्रतिशत ट्रैक स्थित है, लेकिन इसके जरिए 60 प्रतिशत से अधिक माल की ढुलाई की जाती है।

गोल्डन क्वाड्रिलेटरल के साथ-साथ गुजरने वाले डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर
यह ध्यान में रखते हुए कि भारत में मालवाही यातायात में प्रति वर्ष 7 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि होने का अनुमान है, भारत सरकार का यथाशीघ्र उक्त व्यस्त मार्गों के पास और अधिक मालवाही लाइनें (फ़्रेट लाइंस) बिछाने का इरादा है, जिनमें से अधिकांश मौजूदा गोल्डन क्वाड्रिलेटरल मार्ग के समानांतर होंगी। भारत को उच्च-क्षमता के गठन तथा गोल्डन क्वाड्रिलेटरल मार्ग के समानांतर तेज़-रफ़्तार डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर्स के निर्माण के जरिए अपनी रेल परिवहन क्षमता बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी।

सरकार के डीएफ़सी कार्यक्रम को चरणबद्ध रूप से पूरा करने का प्रस्ताव है, जिसके तहत वेस्टर्न कॉरिडोर (दिल्ली-मुंबई) और ईस्टर्न कॉरिडोर (लुधियाना-दिल्ली-कोलकाता) को सबसे पहले विकसित किया जाएगा। इन कॉरिडोर्स के बन जाने पर कच्चे माल की औद्योगिक केन्द्रों तक और तैयार माल की बंदरगाहों तक कहीं अधिक तेज़ी से तथा कुशलतापूर्वक और कम लागत पर ढुलाई के जरिए भारत की औद्योगिक उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। इनसे विशेषकर ऐसे स्थानों पर, जहां तेज़-रफ़्तार यात्री गाड़ियों और धीमी रफ़्तार से चलने वाली मालगाड़ियों के मिले-जुले यातायात की वजह से सेवाएं प्रभावित होती हैं, यात्री-सेवाओं का स्तर बेहतर होगा। ईस्टर्न कॉरिडोर से भी प्रस्तावित ट्रांस-एशियाई रेल मार्ग के विकास में मदद मिलेगी, जिसमें भारत, बंगलादेश तथा पूरब में अन्य देशों में इन्फ़्रॉस्ट्रक्चर में निवेश किया जाएगा।

पर्यावरण के अनुकूल परियोजना
डीएफ़सी कार्यक्रम पर्यावरण के अनुकूल भी है, क्योंकि सड़क तथा परंपरागत रेल मार्गों को ऊर्जा की खपत के लिहाज़ से मितव्ययी डीएफ़सी रेल मार्गों में बदल देने से भारत के परिवहन क्षेत्र में ऊर्जा की खपत कम होगी। इसके अलावा मौजूदा रेल नेटवर्क से भिन्न, जिस पर डीज़ल और बिजली-चालित इंजनों का इस्तेमाल किया जाता है, कॉरिडोर पर केवल बिजली-चालित इंजनों का इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे कार्बन के उत्सर्जन (इमिशन) में भी काफी कमी होगी। वास्तव में भारतीय रेल द्वारा किए गए कॉर्बन फ़ुटप्रिंट के विश्लेषण से पता चला है कि तीस वर्ष की अवधि में डीएफ़सी पर होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन सामान्य कारोबार की तुलना में 2.5 गुना कम होगा।

विश्व बैंक की सहायता
विश्व बैंक 1,800 किमी. लंबे ईस्टर्न डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर (लुधियाना-दिल्ली-मुगलसराय) के लगभग 1,100 किमी. के लिए तीन चरणों में वित्त मुहैया कराएगा। यह डीएफ़सी के इन्फ़्रॉस्ट्रक्चर नेटवर्क के निर्माण और रखरखाव के लिए डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर कार्पोरेशन (डीएफ़सीसीआईएल) की संस्थागत क्षमता के विकास में भी मदद करेगा।

ईस्टर्न कॉरिडोर (दिल्ली-कोलकाता) से निचले गंगा बेसिन में यात्री सेवाओं में सुधार होगा, जो देश के अत्यंत घनी आबादी वाले इलाकों में से है, जहां बड़ी संख्या में निर्धन भी निवास करते हैं और जो सस्ती यात्रा के लिए रेल पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। इससे कॉरिडोर के उत्तरी सिरे पर स्थित पंजाब और हरियाणा के अंदरूनी औद्योगिक इलाकों के विकास के रास्ते में मौजूदा रुकावटें भी दूर हो जाएंगी।

सहायता के पहले चरण में विश्व बैंक की ईस्टर्न डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर परियोजना-1 के तहत 343 किमी. लंबे खुर्जा-कानपुर सेक्शन के लिए 97.5 करोड़ डॉलर की धनराशि मुहैया कराई जाएगी। इस परियोजना से एक्सिल लोड की सीमा को 22.9 टन से बढ़ाकर 25 टन कर देने और 100 किमी. प्रति घंटे तक की रफ़्तार की अनुमति दे देने से इन डेडिकेटेड मालवाही लाइनों की क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

डीएफ़सी कार्यक्रम से भारत को विश्व की एक विशालतम माल ढुलाई व्यवस्था का सृजन करने का अवसर मिलेगा, जिसमें आजमाई हुई अंतराष्ट्रीय प्रौद्योगिकियों और दृष्टिकोणों को अपनाया जाएगा, जिनका धीरे-धीरे नेटवर्क के अन्य महत्त्वपूर्ण मालवाही मार्गों तक विस्तार किया जा सकता है। इससे भारतीय रेल को अपना वह मार्केट शेयर पुनः हासिल करने में भी मदद मिलेगी, जो अत्यंत प्रतिस्पर्धी ट्रक सेक्टर के हाथों में पहुंच चुका है, जिसके माल ढुलाई किराए विश्व में काफी कम हैं।

 

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