मुख्य कहानी

विश्व बैंक अधिक पारदर्शिता की ओर अग्रसरः इसाबेल ग्वेरेरो नई सूचना तक पहुँच नीति पर चर्चा करते हुए

5 अप्रैल, 2010

सिविल सोसाइटी न्यूज, नई दिल्ली
(अप्रैल 2010। पुनःप्रकाशन की अनुमति)

1 जुलाई से प्रकटीकरण नीति के तहत परियोजनाओं के विवरण, बोर्ड की बैठकों के कार्यवृत्त और इसके अलावा भी काफी कुछ सार्वजनिक किया जाएगा।

भारत का सूचना का अधिकार कानून हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत है,” कहती हैं बैंक की दक्षिण एशिया के लिए उपाध्यक्ष एवं प्रकटीकरण नीति के रचयिताओं में से एक इसाबेल ग्वेरेरो।

नीति भले ही नई हो, लेकिन बैंक में समय की मांग के अनुसार पारदर्शिता लाने की ग्वेरेरो तथा उनके जैसे अन्य लोगों की पुरजोर आवाज़ के चलते बैंक के भीतर प्रक्रिया पहले ही शुरु हो चुकी थी। ग्वेरेरो का मानना है कि आंदोलनकारियों तथा बैंक की मदद प्राप्त परियोजनाओं से प्रभावित लोगों का बैंक के प्रति अविश्वास और शक इस खुलेपन से दूर हो सकेगा।

लेकिन कई मायनों में यह नीति सिर्फ एक शुरुआत है। बैंक के भीतर भी, कर्मचारियों को सवाल-जवाबों के प्रति और उत्तरदायिता के प्रति सहज होना पडेगा। इस बदलाव को प्रायोजित करने के लिए बैंक की “विचार-विमर्श प्रक्रिया” शुरु में प्रकटीकरण नीति के दायरे से बाहर रहेगी।

ग्वेरेरो इसे स्पष्ट करते हुए बताती हैं कि कठिन प्रश्नों से निपटने के लिए तथा बैंक में लोगों की मदद के लिए “समय तथा स्थान” का आपसी अंतर्क्रिया तथा स्पष्टता के एक नए स्तर पर विकसित होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ग्वेरेरो ने नई दिल्ली के वसंत विहार स्थित अपने निवास पर सिविल सोसाइटी से विस्तृत बातचीत की। इस बातचीत के अंशः

विश्व बैंक द्वारा खुलेपन और पारदर्शिता पर खास तौर से नई नीति निर्धारित किए जाने की क्या वजह है? क्या बैंक के किसी भीतरी रुझान के चलता ऐसा हुआ है?

इसकी जडें 1980 के दशक तक जाती हैं जब हमने प्रकटीकरण नीति की शुरुआत की। उससे पहले बैंक अपना काम गोपनीय रखती थी और सामाजिक संगठनों की ओर से खुलेपन के लिए काफी दबाव बनाया जा रहा था। जब हमने इस पर काफी समय गौर किया तो हमने पाया कि प्रकटीकरण नीति से बढकर सूचना तक पहुँच उपलब्ध कराना आवश्यक था। इस बीच कई देशों ने सूचना के अधिकार की नीतियाँ विकसित करना शुरू कर दिया था। भारत के पास सूचना के अधिकार का एक अच्छा कानून है। मेक्सिको एक उदाहरण है, यूएस ऐसे पहले देशों में से है। मैंने मेक्सिको में जो देखा है वह सचमुच परिवर्तनकारी सिद्ध हो सकता है। खुलापन किसी भी संस्था के लिए अच्छा ही होता है। इससे वह उत्तरदायी बनती है, और हमारी परियोजनाओं से प्रभावित लोगों समेत सभी लोगों को हमारी कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी मिलती है।

तो आप कहना चाहती हैं कि इसके लिए भीतर और बाहर दोनों ओर से प्रयास हो रहे थे?

दुनिया बदल रही है, है ना? मेरे खयाल से यह सबसे बेहतरीन सुधारों में से है। मैं बहुत खुश हूँ। आप जानते हैं कि बैंक के बोर्ड पर 185 देश हैं जिनमें से कुछ की राय में यह बहुत ज्यादा हो रहा होगा। सो बैंक की भीतरी राजनीति से भी निपटना होगा। लेकिन बैंक में एक बडा बहुमत इससे खुश है।

सरकारों की क्या प्रतिक्रिया रही है?

विभिन्न सरकारों ने इसे विभिन्न रूप में लिया है। जानते हैं, पहले परियोजना का मूल्यांकन भाग, सबसे प्रसिद्ध भाग, बोर्ड के सामने आता था, चर्चा होती थी, फिर उसके अंतिम चरण में आ जाने तक, उसके पूरे हो जाने तक हमें कोई जानकारी नहीं मिलती थी।

अब सब कुछ - सारे स्मरणक, परियोजना की पुनर्रचना, उसका कार्यान्वयन - सार्वजनिक होता है। कुछ देशों को यह अनावश्यक लग सकता है, क्योंकि सारे देश दूसरों की तरह खुले नहीं होते। लेकिन मैं इतना कह सकती हूँ कि बोर्ड की बैठक में इस पर आम सहमति बनी थी। अन्य चीज़ों के साथ बोर्ड की चर्चा के कार्यवृत्त के प्रकटीकरण को भी मंजूरी दी गई थी। जुलाई के बाद पता लग सकेगा कि किस सरकार को किस पर आपत्ति थी।

क्या बोर्ड की बैठकों के कार्यवृत्त वेबसाइट पर उपलब्ध होंगे?

हाँ।

आप अब कौनसी सूचनाएं प्रकट करेंगे?

इस वक्त हमारे पास प्रकटीकरण की सकारात्मक सूची है। 1 जुलाई से हमारे पास केवल प्रकट न की जाने वाली सूचनाओं की फेहरिस्त होगी। इस प्रकार कुछ गोपनीय सूचनाओं के अलावा सब कुछ प्रकट किया जाएगा। करीब 5 या 10 साल की अवधि के बाद, अमरीका की तरह, वह भी उपलब्ध कर दिया जाएगा।

ऐसे अपवादों की सूची असल में कितनी बडी है

मुझे अपवादों से कोई शिकायत नहीं। वे कर्मचारियों की निजी ई-मेल, परियोजन की रचना संबंधी बैंक की आंतरिक चर्चा, जिस पर निर्णय नहीं हो सका है, आदि के बारे में हैं। अपवादों की सूची में भ्रष्टाचार की चल रही जाँचें भी शामिल है जोकि सही है, क्योंकि जाँच पूरी होने से पहले लोगों को भ्रष्ट नहीं कहा जा सकता। साथ ही बैंक के आंतरिक वित्तीय मामले हैं जो गोपनीय रखे जाएंगे। यही तीन श्रेणियाँ हैं।

आप विचार-विमर्श प्रक्रिया का समाधान किस प्रकार खोजेंगे?

ओह, यह तो आप हमें बताइये! आपने इसे कार्यान्वित किया है, हमने नहीं। सो हमें यह सीखना पडेगा। अभी हमने सारे मुद्दे हल नहीं किये हैं और हमने 23 देशों में बातचीत की है। हम सीख रहे हैँ और सीखना जारी रखेंगे। शुरुआत करने की तारीख है 1 जुलाई, लेकिन सीखना बंद करने की नहीं। जहाँ तक विचार-विमर्श प्रक्रिया का सवाल है, उसके गोपनीय रखे जाने से मैं इसलिए संतुष्ट हूँ क्योंकि बैंक में हमें एक ईमानदारी भरा वातावरण बनाने की ज़रूरत है, लेकिन हमेशा ऐसा हो नहीं पाता। लोगों को लगता है कि परियाजना का काम हो गया। मुझे नहीं लगता कि बैंक के लिए ऐसी संस्कृति उचित है। हमें ज़ोखिमों के बारे में अधिक स्पष्टवादी होना होगा और इन ज़ोखिमों का हमेशा ही प्रबंधन नहीं हो पाता। मैं अपने क्षेत्र में असल खुली चर्चा को बढावा दूंगी।

लेकिन विकास एक अव्यवस्थित, जटिल प्रक्रिया है, कई चीज़ें गडबडा जाती हैं और मुझे लगता है कि कठिन प्रश्नों के लिए हमें समय और स्थान मिलने चाहिए।

विचार-विमर्श प्रक्रिया से जुडी किसी खास बात का ज़िक्र करना चाहेंगीं जो बैंक के भीतर चर्चा में आई हो लेकिन उसे कुछ समय के लिए एक ओर रख दिया गया हो?

हाँ, हमारी ऊर्जा नीति ऐसा मुद्दा है जिस पर अक्सर चर्चा होती है। क्या हमें कोयले में निवेश करना चाहिए? क्या हमें अपने अनुभव के आधार पर पनबिजली की बडी परियोजनाओं को मदद देनी चाहिए? ये सारे जटिल प्रश्न हैं जिनके उत्तर अभी हमारे पास नहीं हैं। साथ ही कई राजनैतिक समूह हैं जिनके अपने विचार हैं और वे चाहते हैं कि हम उनके अनुसार चलें। मेरे विचार से हमें सही काम करने लायक आजादी चाहिए। और ऐसा करने के लिए पहले काफी चर्चा/विचार-विमर्श ज़रूरी है। हम ऐसा खुले में नहीं कर सकते क्योंकि कई स्वार्थी निगाहें इस पर लगी रहती हैं।

सार्वजनिक की जाने वाली सूचना में परियोजना की रचना, परियोजना मूल्यांकन दस्तावेज, बोर्ड की चर्चाएं, मध्य-परियोजना परिवीक्षण समीक्षा आदि शामिल हैं। प्रबंधन के समक्ष रखे जाने वाली परिवीक्षण समीक्षा को इससे बाहर रखा जाएगा क्योंकि इसमें ऐसी अनुशंसाएं हैं जिनका प्रबंधन द्वारा स्वीकार किया जाना निश्चित नहीं है।

यद्यपि सारी विचार-विमर्श प्रक्रिया इस समय खुली नहीं होगी, हम परियोजना के विभिन्न चरणों पर अधिक से अधिक दस्तावेज उपलब्ध कराने की कोशिश में हैं (कार्यान्वयन, मूल्यांकन, परियोजना अभिकल्पना, रचना भी सार्वजनिक किये जाएंगे)। इस प्रक्रिया में रस लेने वालों के लिए अधिक दस्तावेज उपलब्ध होंगे, जिससे वे समझ सकें कि परियोजना कैसे विभिन्न चरणों से होकर गुज़रती है। भले ही इसमें सबका नज़रिया शामिल न हो, लेकिन एक दस्तावेज से दूसरे की ओर प्रगति सार्वजनिक होगी।

लोग इस सूचना तक कैसे पहुँच पाएंगे?

सबसे महत्वपूर्ण होता है वितरण; मैं यह साक्षात्कार इसीलिए दे रही हूँ ताकि लोगों को यह पता चल सके कि यह सब 1 जुलाई से उपलब्ध होगा। हम यह सूचना जून से प्रसारित करना शुरु कर देंगे। हमारे सूचना केन्द्र उपलब्ध रहेंगे और हम देश भर में पुस्तकालयों की मदद करेंगे। मैं सारे दक्षिण एशिया में साक्षात्कार दे रही हूँ।

किसी आम आदमी को यह जानना हो कि यह सूचना कैसे मिलेगी, तो?

यह वेबसाइट के ज़रिये या नई दिल्ली स्थित सार्वजनिक सूचना केन्द्र के ज़रिये किया जा सकता है। मेक्सिको में आरटीआई कानून लागू किये जाने के दौरान मैं वहीं थी। उसे कार्यान्वित करने वाले आयुक्तों को हम मदद करते हैं और हमने उन्हें तकनीकी सहायता दी जो आरटीआई की सफलता में महत्वपूर्ण सिद्ध हुई। हमें यह भी करना होता है।

किंतु आपके अनेक हितग्राही हैं... इतनी भाषाएं, इतने स्तर, आप सचमुच सबसे निचले स्तर के, गरीब व्यक्ति तक पहुँचने का प्रयास कर रही हैं... आप यह कैसे कर लेती हैं?

भारत बहुत बडा है और यहाँ सब तक पहुँच पाना एक चुनौती है। मुझे लगता है, सबसे पहले हमें यहाँ के आरटीआई के अनुभव से सीखना चाहिए।

यहाँ के आरटीआई ने उस समस्या से कैसे निपटा है जिसका आपने ज़िक्र किया?

अनुवाद के बारे में, हमारे सामने यह बडी चुनौती है कि हम अनुवाद का मसला कैसे हल करें। अभी हमारे पास कोई जवाब नहीं है, पर हम इसका कोई रास्ता निकाल ही लेंगे। यहाँ कामों के बीच समय का अंतर है। जैसे, संवाद समूह के सदस्यों को प्रशिक्षित करना ताकि वे बाहर जा सकें, इसमें समय का अंतर आता है। इसलिए मैं यह नहीं जताना चाहती कि हमने सारे सवाल हल कर लिये हैं। हमने नहीं किये हैं, लेकिन मुझे भरोसा है कि समय के साथ हम सब सुलझा लेंगे।

क्या आप ऐसा करने के लिए सामाजिक संगठनों की मदद लेंगे?

हाँ, हमने उनसे चर्चा शुरु कर दी है।

क्या आपको लगता है कि कार्यभार अत्यधिक हो जाएगा?

मुझे नहीं लगता लोग हममें इतनी दिलचस्पी दिखाएंगे। मुझे चिंता इस बात की है कि कर्मचारी आवेदनों से निपटने में सक्षम हों। लोग परियोजनाओं में इतने व्यस्त होते हैं कि वे ठीक समय में जवाब नहीं दे पाते। इसीलिए तत्काल उत्तर देने के मानक स्थापित करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है, जिससे लोग एक नियत समय में जवाब दें।

यदि कोई दी गई जानकारी से संतुष्ट नहीं हो, तो क्या आपके पास शिकायत निवारण प्रणाली है?

हमारी दो चरणों की अपील प्रक्रिया है। एक आंतरिक है, और शिकायतकर्ता फिर भी असंतुष्ट हो तो दुसरे चरण में एक पेनल है जिसमें लोकपाल की तरह तीन बाह्य सदस्य होते हैं।

 

 


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