इस परियोजना से बिहार के छह ज़िलों में 1,300 ग्राम पंचायतों में पंचायती राज
संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण होगा
नई दिल्ली, 27 जून, 2013 – भारत सरकार तथा विश्व बैंक ने गांव-स्तर पर स्थानीय शासन को सुदृढ़ करने के बिहार सरकार के प्रयासों में मदद करने के लिए आज 8.4 करोड़ डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए।
इस परियोजना से राज्य सरकार की विकेन्द्रीकरण की कार्यसूची और ग्राम पंचायतों की विकास-नीतियां बनाने तथा इन पर अमल करने की क्षमताओं में सुधार-संबंधी कार्यों के लिए वित्त मुहैया कराया जाएगा। इस परियोजना की मदद से पंचायतों की प्रशासन, नियोजन और वित्तीय-प्रबंधन संबंधी क्षमताओं का गठन होगा; पंचायती राज्य संस्थाओँ के संदर्भ में अपने अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के बारे में लोगों की जानकारी बढ़ाने के लिए समुदायों को संगठित करने में मदद मिलेगी; स्थानीय नेताओं और समुदायों के बीच स्थानीय कार्यों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी, जिनसे स्वास्थ्य और आजीविका-संबंधी परिणामों में सुधार हो सकता है; और समुदायों की प्राथमिकताओं के लिए वित्त जुटाने के लिए सरकार के कार्यक्रम-संबंधी संसाधनों तक पहुंच भी सुलभ होगी। इस परियोजना द्वारा लगभग 300 पंचायत सरकार भवनों के निर्माण के लिए भी धन मुहैया कराया जाएगा।
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग में संयुक्त सचिव निलय मिताश ने कहा, "भारत और बिहार में कानूनी ढांचा नागरिकों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय शासन में भाग लेने तथा जवाबदेही की मांग करने के लिए अनेक अवसर मुहैया कराता है। इस परियोजना से विकास योजनाएं बनाने और इन्हें क्रियान्वित करने के साथ-साथ सामुदायिक जीवन को बढ़ावा देने और रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिए पंचायत राज संस्थाओं को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी।"
बिहार पंचायत सुदृढ़ीकरण परियोजना के लिए ऋण समझौते पर भारत सरकार की ओर से वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग में संयुक्त सचिव निलय मिताश; परियोजना की ओर से परियोजना निदेशक और बिहार ग्राम स्वराज योजना सोसाइटी के् मुख्य कार्यकारी अधिकारी के.बी.एन. सिंह; बिहार सरकार के पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव अमिताभ वर्मा; और विश्व बैंक की ओर से भारत में इसके परिचालन सलाहकार (ऑपरेशंस एडवाइज़र) माइकेल हैने ने हस्ताक्षर किए।
बिहार सरकार के पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव अमिताभ वर्मा ने कहा, "हमें आशा है कि इस परियोजना से पंचायती ढांचे का सृजन करने, ग्राम पंचायत-स्तरीय संस्थाओं को मजबूत करने और समुदायों तथा बुनियादी स्तर पर नेताओं को शासन-संबंधी कार्य में भाग लेने, मुहैया कराई जाने वाली सेवाओं की डिलीवरी पर नज़र रखने और पहले से अधिक जवाबदेही की मांग करने के लिए संगठित करने के बिहार सरकार के दूरदर्शिता को और अधिक सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी।"
बिहार सरकार ने पंचायत-स्तर पर महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अत्यंत पिछड़ी जातियों की महिलाओं को राजनीति में शामिल करने की रणनीति को इंस्टिट्यूशनलाइज़ (संस्थाबद्ध) कर दिया है। इन प्रावधानों की वजह से 2006 और 2011 में संपन्न पंचायतों के चुनावों से स्थानीय शासन में आबादी के अधिकारहीन (मार्जिनलाइज़्ड) वर्गों के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित हुई – आज बिहार में पंचायतों के निर्वाचित सदस्यों में 55% महिलाएं हैं, जिनमें से 14% अनुसूचित जातियों की और 0.66% अनुसूचित जनजातियों की हैं। आरक्षण की इस नीति से निर्धन लोगों को अपने विचार व्यक्त करने का अभूतपूर्व अवसर मिला है।
आज हस्ताक्षरित बिहार पंचायत सुदृढ़ीकरण परियोजना इसमें शामिल बिहार के गांवों में, विशेषकर ग्रामीण स्वच्छता, पेय जल की क्वालिटी, पोषण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्रों में स्पष्ट दिखलाई पड़ने वाला बदलाव लाने पर ध्यान देगी। यह बुनियादी तौर पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी अधिनियम (मन्रेगा), संपू्र्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी), राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी), समेकित बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) जैसी सरकार की चंद एक बड़ी योजनाओं द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले धन और 13वें वित्त आयोग तथा पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष से मिलने वाले विवेकाधीन अनुदानों तक पहुंच बनाने और इनके कारगर ढंग से इस्तेमाल में ग्राम पंचायतों की मदद करेगी। छह ज़िलों (पटना, नालंदा, भोजपुर, सहरसा, सुपॉल और माधेपुरा) के 1,304 गांव इस परियोजना के अंतर्गत होंगे।
भारत में विश्व बैंक के परिचालन सलाहकार माइकेल हैने ने कहा, "पंचायती राज संस्थाओं के अपने स्वयं के विकास की प्राथमिकताओं की पहचान करने और इन पर ध्यान देने में सक्षम सशक्त नेटवर्क से विकास में भारी अंशदान हो सकता है। हमें आशा है कि इस परियोजना से बिहार सरकार के सर्वांगीण, प्रतिक्रियाशील (रेस्पांसिव) और जवाबदेह स्थानीय शासन के दीर्घकालिक दृष्टि को समर्थन मिलेगा।"
हाल ही में हुए व्यापक प्रशासनिक सुधारों की वजह से बिहार में शासन द्वारा नागरिकों पर पहले से अधिक ध्यान दिया गया है, सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन बेहतर हुआ है और विकास-संबंधी सूचकांकों में सुधार हुआ है। लेकिन, शिक्षा के निम्न स्तरों, सीमित मानव-संसाधनों, बुनियादी अवसंरचना के अभाव तथा सामाजिक विषमताओं की वजह से राज्य में पंचायत की गतिविधियों में सभी सामाजिक समूहों की भागीदारी का अंश सीमित हो जाता है।
इस परियोजना से पंचायत-स्तर पर सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणालियां भी मजबूत होंगी और परियोजना के सभी ज़िलों में कम्प्यूटरीकृत पंचायत लेखा प्रणाली – प्रियासॉफ़्ट – लागू की जाएगी, जिसकी शुरूआत पटना और नालंदा जिलों से होगी।
इस परियोजना का वित्त-पोषण इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए) से मिलने वाले ऋण से किया जाएगा। यह विश्व बैंक की ऋण देने वाली सहयोगी संस्था है, जो ब्याज-मुक्त ऋण मुहैया कराती है, जिसकी परिपक्वता अवधि 25 वर्ष है और जिसका भुगतान पांच वर्ष बाद शुरू होता है।