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मुख्य कहानी22 फ़रवरी, 2023

भारत की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को समावेशी बनाने की आवश्यकता

The World Bank

विश्व बैंक

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारतीय शहरों में सार्वजनिक परिवहनों का सबसे ज्यादा उपयोग महिलाएं करती हैं। महिलाओं का एक बड़ा वर्ग (84 प्रतिशत) काम के लिए यात्रा करते समय अधिकांशतः सार्वजनिक या सार्वजनिक सहयोग से चलने वाले परिवहन साधनों और गैर मोटर वाहनों का प्रयोग करता है।
  • हालांकि पारंपरिक सार्वजनिक परिवहन सेवाएं महिलाओं की सुरक्षा और उनकी विशिष्ट यात्रा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नहीं तैयार की गई हैं। जिसके कारण रोज़गार, शिक्षा और जीवन के दूसरे विकल्पों तक उनकी पहुंच गंभीर रूप से सीमित हो जाती है।
  • विश्व बैंक का जेंडर टूलकिट भारत और शेष विश्व से ली गईं 50 कहानियों की एक श्रृंखला के जरिए जेंडर से जुड़े महत्त्वपूर्ण अनुभवों साझा करता है, जहां हमें ये पता चलता है कि कौन सी पहलें सार्थक रही हैं।

"मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई छुड़वा दी, जब मैंने उनसे स्कूल जाते समय सड़क और बस में होने वाली छेड़छाड़ के बारे में शिकायत की। वे मुझे स्कूल ले जाने के लिए हर रोज़ किसी पुरुष सदस्य को नहीं भेज सकते थे।"

"रात में बस पकड़ना असुरक्षित है क्योंकि बस स्टॉप पर देर तक इंतज़ार करना पड़ता है। घर वापिस लौटते समय मुझे डर और ख़तरे का एहसास होता है क्योंकि सड़कों पर अंधेरा होता है और बहुत कम औरतें आती-जाती दिखाई पड़ती हैं।"

ये वाकए भारतीय महिलाओं के सार्वजनिक परिवहन या सार्वजनिक स्थलों से जुड़े अनुभवों को बयां करते हैं। ऐसे अनुभव महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार तक पहुंच को प्रभावित करते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि भारतीय महिलाओं की श्रम बाज़ार में भागीदारी बेहद कम है। 2020-21 के लिए ये आंकड़ा महज़ 26.2 प्रतिशत था।

भारत में महिलाओं द्वारा सार्वजनिक परिवहन के उपयोग का तरीका पुरुषों की तुलना में काफ़ी भिन्न है। यहां तक कि वे अलग-अलग कारणों से परिवहनों का इस्तेमाल करते हैं। सार्वजनिक स्थलों के उपयोग के दौरान महिलाओं के लिए सुरक्षा एक बेहद ज़रूरी मुद्दा होता है । वहीं पुरुषों के लिए ये उतना अहम मसला नहीं होता। इसके अलावा, महिलाएं दिन में ऐसे वक्त यात्रा करती हैं, जब सार्वजनिक परिवहनों में भीड़भाड़ कम होती है और वे बच्चों को लेकर सफ़र करती हैं। वे दिन में कई बार छोटी-छोटी यात्राएं करती हैं ताकि वे अपने घर से जुड़े काम या बच्चों को स्कूल से लाने की ज़िम्मेदारी पूरी कर सकें। जबकि, पुरुष अक्सर काम के सिलसिले में सार्वजनिक परिवहनों में यात्राएं करते हैं और सुबह और शाम के वक्त जब परिवहनों में भीड़भाड़ बहुत ज्यादा होती है, तब वे एक बार में लंबी दूरी की यात्राएं करते हैं।

शहरों को पुरुषों और महिलाओं द्वारा अलग तरह से अनुभव किया जाता है। शहरों को सुरक्षित बनाने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि महिलाओं और लड़कियों के पास विकल्प हैं - वे कार्यालय में लंबे समय तक रहने, बेहतर शैक्षणिक संस्थानों में जाने और यहां तक ​​कि उद्यमिता के व्यापक अवसरों के लिए चुन सकती हैं।
Fatimetou Mint Mohamed
अगस्टे तानो कौमे
भारत के लिए विश्व बैंक के देश निदेशक
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महिलाओं और पुरुषों की यात्राओं के बीच इन अंतरों को देखते हुए यह बेहद ज़रूरी हो गया है कि महिलाओं की यात्रा ज़रूरतों को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं तैयार की जाएं।

महिलाओं, पुरुषों, ट्रांस समुदाय एवं अन्य जेंडर के लोगों की परिवहन ज़रूरतों को समझने के लिए और उसी आधार पर सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं को तैयार करने के लिए लगातार आंकड़ों को जुटाना और उनका विश्लेषण करना इस दिशा में पहला कदम है। इसके अलावा, हमें ऐसे लोगों के बीच जाकर भी आंकड़ों को जुटाना होगा, जो सार्वजनिक परिवहनों का उपयोग नहीं करते हैं ताकि हम ये समझ सकें कि आखिर वे कौन से कारक हैं जो महिलाओं की यात्राओं में बाधा का काम करते हैं।

विश्व बैंक का जेंडर टूलकिट शहरों के लिए एक ऐसी दिशानिर्देश पुस्तिका की तरह है, जिसकी मदद से वे अपनी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था और सेवाओं को महिलाओं के लिए सुरक्षित और समावेशी बना सकते हैं।

इसमें दिए गए सुझावों में कुछ बेहद साधारण लेकिन महत्त्वपूर्ण समाधानों को शामिल किया है, जैसे कि सड़क के अंधेरे कोनों में स्ट्रीटलाइटों की ज़रूरत। इससे महिलाओं और अल्पसंख्यक जेंडर के लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है।

पैदल और साइकिल यात्रियों के लिए तैयार किए गए रास्तों में सुधार से विशेष रूप से महिलाओं को लाभ होता है, क्योंकि वे बड़े पैमाने पर गैर-मोटर चालित परिवहन का उपयोग करती हैं। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को इस तरह से डिजाइन करने की ज़रूरत है कि उपयोगकर्ता बेहद आसानी से परिवहन साधनों की अदला बदली कर सकें, उदाहरण के लिए बस की सवारी के बाद मेट्रो पकड़ने की सुविधा। इससे महिलाओं को यात्रा करने में मदद मिलेगी क्योंकि वे अक्सर साधनों की अदला बदली करती हैं।

बसों में हैंडल की ऊंचाई को कम करके, सीटों के बीच के गलियारे को चौड़ा करके, स्ट्रॉलर, रैंप और सामानों के लिए जगह बनाकर और आपातकालीन सुविधाओं के लिए ज़रूरी स्विचबोर्ड और सीसीटीवी (क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन कैमरा) लगाकर बसों की डिजाइन को और बेहतर बनाया जा सकता है।

महिलाओं की यात्रा पैटर्न के अनुसार ख़ास यातायात स्थलों के बीच या कम भीड़भाड़ वाले समय में परिवहन सुविधाओं को बढ़ाया जा सकता है। महिलाओं की सुविधा के मुताबिक परिवहन साधनों को पकड़ने या छोड़ने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई में, बृहन्मुंबई विद्युत आपूर्ति और परिवहन (बेस्ट) ने "लेडीज फर्स्ट" नामक एक नई बस सेवा शुरू की है, जहां सवारी के लिए महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है।

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बस स्टॉप के अलावा महिलाओं की इच्छा के अनुसार अन्य स्थानों पर भी बस से उतरने की सुविधा शुरू की जा सकती है। उदाहरण के लिए, तेलंगाना में महिलाएं शाम साढ़े सात बजे के बाद ग्रेटर हैदराबाद जोन के भीतर कहीं भी बसों से उतर सकती हैं।

स्टेशनों, टर्मिनलों, डिपो और विश्राम स्थलों पर महिलाओं के लिए अलग से शौचालय, दूध पिलाने के लिए कमरे और बैठने के लिए जगहें बनाई जा सकती हैं। लैंगिक रूप से समावेशी प्रतीकों के इस्तेमाल के ज़रिए भी समावेशिता को बढ़ाया जा सकता है, जहां पैदल चलने वालों के लिए हरे और लाल रंग की बत्ती के प्रयोग से हम महिलाओं की मौजूदगी को दर्शा सकते हैं। मुंबई, मेलबर्न, जेनेवा जैसे दुनिया भर के शहरों ने ऐसे सुविधाओं को लागू करके उदाहरण पेश किया है।

इसके अतिरिक्त, महिलाओं और अन्य जेंडर के लोगों को यात्रा के लिए प्रोत्साहन देने या उनकी सवारी को बढ़ावा देने के लिए यात्रा शुल्क की नीतियों  में परिवर्तन करना होगा। एक मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करने से यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर भी नज़र रखने में मदद मिल सकती है।

महिलाओं के लिए अनुकूल और सुरक्षित परिवहन प्रणाली की स्थापना के लिए आवश्यक नीतियां बनाने के लिए नगर अधिकारियों की क्षमता का निर्माण महत्त्वपूर्ण है। ठीक उसी समय, व्यक्ति और समुदाय के स्तर पर मानसिकता में बदलाव जैसे दीर्घकालिक लक्ष्य के लिए काम करना भी ज़रूरी है ताकि चेतन और अचेतन, दोनों स्तरों पर मौजूद लैंगिक पूर्वाग्रहों को मिटाया जा सके।

विश्व बैंक का जेंडर टूलकिट भारत और शेष विश्व से ली गईं 50 कहानियों की एक श्रृंखला के जरिए जेंडर से जुड़े महत्त्वपूर्ण अनुभवों को साझा करता है, जहां हमें ये पता चलता है कि कौन सी पहलें सार्थक रही हैं।

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