जागरूकता बढ़ाना
यह महत्वपूर्ण है कि स्वयं सहायता समूह अफवाह और गलत सूचना पर अंकुश लगाने में मदद कर रहे हैं। बैंक के सामाजिक विकास विशेषज्ञ वरुण सिंह ने बताया कि , और जरूरत की इस घड़ी में सरकार को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की जा सके। प्रवासी श्रमिकों पर हाल ही में दिखा विनाशकारी प्रभाव, जहां अचानक काम छूटने पर बड़ी संख्या में परिवारों ने अपने गांव वापस जाने के लिए सैकड़ों मील दूर से चलना शुरू कर दिया, यह दर्शाता है कि जमीनी स्तर पर प्रामाणिक जानकारी को छानना कितना महत्वपूर्ण है।”
संपर्क में बड़ी मुश्किल से आने वाली आबादी के बीच कोविड से संबंधित संदेशों का प्रसार भी महिला समूह कर रहे हैं। केरल में, कुदुम्बश्री नेटवर्क मोबाइल फोन, पोस्टर और साप्ताहिक बैठकों के जरिए हाथ की स्वच्छता और सामाजिक दूरी के बारे में जागरूकता बढ़ाकर सरकार के ब्रेक द चेन अभियान की अगुवाई कर रहा है। भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक, बिहार में राज्य का एसएचजी मंच जीविका पत्रक, गीत, वीडियो और फोन संदेशों के जरिए हाथ धोने, क्वारंटाइन और स्व-एकांतवास के बारे में प्रचार कर रहा है।
झारखंड में, जहां बड़ी संख्या में लोग काम करने के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं, वे प्रवासियों और अन्य कमजोर परिवारों को वापस लाने के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन चला रहे हैं।
बैंकिंग और पेंशन सेवाएं प्रदान करना
चूंकि लॉकडाउन के दौरान लोगों को खुद को बनाए रखने के लिए वित्त तक पहुंच प्राप्त करना महत्वपूर्ण है, इससे बैंकिंग संवाददाता के रूप में भी काम करने वाली एसएचजी महिलाएं एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में उभरी हैं। वित्त तक पहुंच को एक आवश्यक सेवा के रूप में मानते हुए इन बैंक सखियों ने पेंशन वितरित करना और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के जरिए सबसे जरूरतमंदों को अपने खातों से धन प्राप्त करने में सक्षम बनाने के अलावा, दूर-दराज के समुदायों को घर-घर बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना जारी रखा है। बैंकों ने इन महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण दिया है और उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया है ताकि वे लॉकडाउन के दौरान काम करना जारी रख सकें।
भारत में विश्व बैंक के डायरेक्टर जुनैद अहमद ने कहा कि “विकास के केंद्र में महिलाओं की दक्षिण एशिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन असाधारण समय में, जब हम सभी कोविड 19 वायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई में एकजुट हैं, तो ये महिला समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।”
भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय में एनआरएलएम का प्रबंधन करने वाली अतिरिक्त सचिव अलका उपाध्याय ने यह कहते हुए बात पूरी की कि “देश भर में, महिलाओं के स्वयं सहायता समूह इस असाधारण चुनौती के लिए अत्यधिक साहस और समर्पण के साथ आगे बढ़े हैं।"
खाद्य असुरक्षा और वस्तुओं एवं सेवाओं की कमी की स्थिति में उनकी त्वरित प्रतिक्रिया से पता चलता है कि संकट के समय में यह विकेन्द्रीकृत संरचना एक महत्वपूर्ण संसाधन कैसे हो सकती है। भारत की ग्रामीण महिलाओं की ताकत सबसे कठिन अवधि समाप्त होने के बाद आर्थिक गति को वापस बनाने के लिए आवश्यक बनी रहेगी।”
महिला स्वयं सहायता समूहों को भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) द्वारा समर्थित किया जा रहा है, जिसे विश्व बैंक द्वारा सह-वित्तपोषित किया गया है। एनआरएलएम ने देश के 28 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों में एसएचजी मॉडल को बढ़ाया है, जो 6.7 करोड़ से अधिक महिलाओं तक पहुंच गया है। महिलाओं ने 1.4 अरब डॉलर की बचत की है और वाणिज्यिक बैंकों से और 37 अरब डॉलर का लाभ उठाया है।