सारांश
कर्णाटक के तीन नगरों में विश्व बैंक की प्रायोगिक परियोजनाओं से पता चला है कि अच्छी तरह संचालित जल-आपूर्ति व्यवस्था वास्तव में चौबीसों घंटे और सप्ताह में सातों दिन भारत के नगरों में जल की आपूर्ति कर सकती है और इस तरह वहनीय और भरोसेमंद सेवाएं शहरी परिवारों तक पहुंचा सकती हैं। पहले के अनुमानों की तुलना में लगभग 10 प्रतिशत कम जल का इस्तेमाल हो रहा है। “पहले मैं पानी के लिए इंतज़ार किया करता था और काम पर नहीं जा पाता था। अब मैं काम पर जाता हूं और पानी मेरा इंतज़ार करता है।"
चुनौती
भारत के अधिकतर शहरी इलाकों की तरह कर्णाटक के तीन शहरों में जल-आपूर्ति व्यवस्था भरोसेमंद न थी और कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित थी। घरेलू कनेक्शनधारी (लगभग 50 प्रतिशत, वैध और अवैध कनेक्शन दोनों) दिन में केवल एक या दो घंटे तक ही पानी की ग़ैर-भरोसेमंद आपूर्ति के आदी हो चुके थे और कभी-कभी तो पानी 10 दिनों में एक बार ही मिल पाता था। सभी निवासियों को वाटर टैंकरों से महंगा पानी खरीदकर और उनकी ग़ैर-भरोसेमंद सेवाएं लेकर इस स्थिति से निपटना पड़ता था, या फिर 200 मीटर दूर जाकर स्टैंड पोस्ट्स से पानी खींचकर लाना पड़ता था। ऐसा कुछ भी नहीं लगता था कि वे ग्राहक हैं, जो भुगतान करते हैं और भरोसेमंद जल-आपूर्ति की अपेक्षा करते हैं।
दृष्टिकोण
कर्णाटक शहरी जल क्षेत्र सुधार परियोजना वर्ष 2005 में शुरू हुई थी। इसकी कल्पना प्रायोगिक (पायलट) परियोजना के रूप में की गई थी और वास्तव में इसके पहले चरण में ही पता चल गया था कि भारत के शहरी इलाकों में निरंतर, कारगर और स्थाई आधार पर जल आपूर्ति का लक्ष्य प्राप्त हो सकता था। डिमांस्ट्रेशन एरिया राज्य और शहरों की राजनीतिक अर्थव्यवस्था, तकनीकी व्यवहार्यता (फ़ीज़िबिलिटी) को ध्यान में रखकर चुने गए और इनमें निम्न आय वाले इलाकों को शामिल किया गया। सभी शहरों में सेवा में सुधार करने के लिए बड़ी मात्रा में जल आपूर्ति के लिए पूंजी निवेश के साथ-साथ डिमांस्ट्रेशन एरिया में सुनिश्चित आपूर्ति में मदद करने की ज़रूरत थी। परियोजना का लक्ष्य था - परियोजना के संपूर्ण डिज़ाइन, निर्माण और ऑपरेशनल चरणों में निर्णयकारी शक्ति के साथ शहरों को शामिल करते हुए विकेंद्रीकरण को सुदृढ़ करना।
कार्य प्रणाली का डिज़ाइन और संबधित अनुबंध तैयार करने के बाद इसे चलाने के लिए प्रतिस्पर्द्धात्मक कार्य-प्रक्रिया के जरिए दो वर्ष की अवधि के लिए एक अनुभवी निजी ऑपरेटर चुना गया। निवासियों को शत-प्रतिशत मीटर्ड कनेक्शन उपलब्ध कराना तथा चौबीसों घंटे और सातों दिन ग्राहक सेवा समेत बिल जारी करने की कमर्शियल प्रणाली का गठन करना ऑपरेटर के दायित्वों में से था। उक्त बातों का परिपालन सुनिश्चित करने में शहरों की मदद करने के लिए तीसरे पक्ष के एक तकनीकी परीक्षक की व्यवस्था की गई। साथ ही, संबधित स्टेकहोल्डर्स की मीटरिंग, जल की मात्रा और निजी ऑपरेटर के प्रति संदेह जैसी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए एक गहन सामाजिक परस्पर संपर्क और संचार अभियान चलाया गया और आम तौर पर लगातार जानकारी सुलभ कराई गई।
परिणाम
दो वर्षों से अधिक समय से उत्तरी कर्णाटक में बेलगाम, हुबली-धारवाड़, और गुलबर्गा के प्रायोगिक इलाकों को चौबीसों घंटे और सातों दिन जल की विश्वसनीय और निर्बाध आपूर्ति जारी है।
लगभग 25,000 परिवार (1,75,000 लोग या तीन नगरों की कुल आबादी का 10 प्रतिशत) “ग्राहकोन्मुखी दृष्टिकोण” की नई और ठोस व्यवस्था का लाभ उठा रहे हैं, जिसमें शत-प्रतिशत मीटर वाले कनेक्शन, खपत के आधार पर उचित दरों पर बिल के साथ-साथ चौबीसों घंटे और सातों दिन ग्राहक सेवा शामिल है, जो सुव्यवस्थित जल-सेवा की तरह काम कर रही है। पानी के बिलों के भुगतान की ऊंची दर (80 प्रतिशत और इसमें बढ़ोतरी हो रही है) से सेवा से लाभ उठाने वालों की संतुष्टि का पता चलता है। इसके पहले वस्तुतः भुगतान-संग्रहण नदारद था।
कुल मिलाकर परियोजना के पहले की अपेक्षा जल की खपत में 10 प्रतिशत की कमी आई है। ऐसा इंफ़्रास्ट्रक्चर में सुधार, बेहतर परिचालन और रखरखाव की वजह से पानी का रिसाव कम होने के साथ-साथ इस कारण संभव हुआ है कि परिवारों को जल की खपत के आधार पर भुगतान करना पड़ता है और इसलिए वे जल की बचत करते हैं, अब उन्हें पानी भरकर रखने की ज़रूरत नहीं है और वे इसे बर्बाद नहीं करते।
सेवा की विशेषताएं
- उत्तरी कर्णाटक के तीन शहरों के इलाकों में चौबीसों घंटे और सातों दिन जल की निरंतर आपूर्ति।
- जल आपूर्ति की नई “ग्राहकोन्मुखी दृष्टिकोण” वाली व्यवस्था से लगभग 25,000 परिवारों को लाभ हुआ है।
- शत-प्रतिशत परिवारों में मीटर कनेक्शन और तीनों प्रायोगिक नगरों के लाभान्वित परिवारों को मासिक बिल।
- पानी की खपत में अनुमान की तुलना में लगभग 10 प्रतिशत की कमी।
मत
दिन और रात में हर समय नल की टोंटी घुमाकर पानी उपलब्ध होने से परियोजना से लाभ उठाने वालों का तो जीवन ही बदल गया है। विशेष रूप से महिलाएं पानी भरकर रखने के रोज़मर्रा के जंजाल से बच गई हैं, जिसमें काफी समय लग जाता था। अब वे बाहर निकल सकती हैं और अपने परिवारों की आमदनी बढ़ाने के लिए काम कर सकती हैं। स्वास्थ्य-संबंधी आंकड़ों से पता चलता है कि गंदे पानी से होने वाली बीमारियों में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है और परियोजना की वजह से परिवारों के लाभ में वृद्धि हुई है।