मुख्य कहानी

भारत देश के लिए रणनीति 2009-12

6 अप्रैल, 2010


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अति आवश्यक अधोसंरचना के विकास में तेजी लाने के लिए और देश के सात सबसे गरीब राज्यों के लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए देश की मदद करना विश्व बैंक की भारत के लिए देशगत रणनीति (सीएएस) 2009-2012 का केन्द्रीय लक्ष्य है। यह रणनीति कुल 14 अरब अमरीकी डॉलर प्रस्तावित ऋण को परिलक्षित करती है, जिसमें से 9.6 अरब अमरीकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय पुनर्निमाण एवं विकास बैंक (आईबीआरडी) से और 4.4 अरब अमरीकी डॉलर (चालू विनिमय दर पर विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 2.982 अरब के समतुल्य) अंतरराष्ट्रीय विकास संस्था (आईडीए) से आएंगे।

यह रणनीति भारत सरकार की ग्यारहवीं पंच-वर्षीय योजना की विकास प्राथमिकताओं का अनुसरण करती है। इसे सरकार एवं सामाजिक संगठनों समेत लाभार्थियों के एक विस्तृत समूह से चर्चा के कई दौरों के बाद अंतिम रूप दिया गया था। रणनीति के तहत भारत को लक्ष्यप्राप्ती में मदद के तौर पर ऋण, चर्चा, विश्लेषण कार्य, निजी क्षेत्र से मिलाप तथा क्षमता निर्माण का इस्तेमाल किया जाएगा।

तेज एवं सम्मिलित विकास को बनाए रखना

अधोसंरचनाः भारत के तेज एवं निरंतर विकास के लिए विद्युत, परिवहन, जल तथा शहरी विकास में बडे निवेशों की आवश्यकता है। अपर्याप्त विद्युत आपूर्ति विकास के मार्ग में एक प्रमुख बाधा है; जहाँ पिछले पाँच वर्षों में जीडीपी की वार्षिक औसत वृद्धी दर 8% थी, वहीं विद्युत उत्पादन की वार्षिक औसत वृद्धी दर केवल 4.9% रही। राष्ट्रीय तथा राज्यों के राजमार्गों का संजाल परिवहन की मांग में भारी वृद्धी के साथ तालमेल बनाने में पिछड गया हैः राज्यों के राजमार्गों में से केवल करीब 30% ही दो-लेन के हैं और 50% से भी अधिक खराब हालत में हैं. अपर्याप्त शहरी अधोसंरचना विकास केन्द्रों के विस्तार में बाधा बन रही है। हालाँकि ग्यारहवीं योजना में पीपीपी के जरिये अधोसंरचना विकास में निजी क्षेत्र की बडे पैमाने पर भागीदारी की योजना है, परंतु वैश्विक आर्थिक संकट के पश्चात-परिणामों के चलते इसके उम्मीद के मुताबिक मूर्त रूप ले सकने की संभावना कम हो सकती है। भारत सरकार ने विश्व बैंक से अपनी रणनीति में अधोसंरचना निवेश पर विशेष ध्यान देने का अनुरोध किया है, जिसमें सरकारी संस्थाओं की संकल्पना क्षमता मज़बूत बनाना तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) का प्रबंधन करना शामिल है।

कुशलताः कुशलता का अभाव जनसंख्या के एक बडे हिस्से को भारत की विकास गाथा में भाग ले पाने से वंचित कर रहा है। भारत की श्रम शक्ती का करीब 44% हिस्सा निरक्षर है, केवल 17% ने माध्यमिक शिक्षा पाई है, और उच्चतर शिक्षा में भर्ती केवल 11% है। यह अन्यों की, उदाहरण के लिए चीन की, तुलना में काफी कम है, जहाँ माध्यमिक शिक्षा तकरीबन सार्वत्रिक है और उच्चतर शिक्षा में भर्ती 20% से अधिक है। इसके अलावा, अधिकांश भारतीय स्नातकों की गुणवत्ता कम दर्जे की होती है और नियोक्ता कुशलता बढाने के बहुत कम मौके देते हैं (16% भारतीय उत्पादक अपने कर्मचारियों को सेवाकाल-दौरान प्रशिक्षण उपलब्ध कराते हैं, जबकि चीन में यह संख्या 90% से अधिक है)। अनौपचारिक क्षेत्र 90% से अघिक श्रमशक्ती का इस्तेमाल करता है, परंतु अनौपचारिक कर्मचारियों तथा अभिकरणों के लिए औपचारिक ‘कुशलता’ हासिल करने के लिए बहुत ही कम निवेश अथवा मौके होते हैं।

कृषि विकासः घटती कृषि उत्पादकता की वजह से भारत की लगभग 60 फीसदी आबादी पिछड रही है। आधारभूत ग्रामीण अधोसंरचना के अभाव - सडकों से बिजली तक - कृषितर गतिविधियों में बाधा बन रहे हैं। बेशक, अच्छी वर्षा, ऊँची कीमत वाले फलों, सब्ज़ियों तथा डेयरी पदार्थों का अधिक उत्पादन, अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धी और कृषि उत्पादों की वैश्विक कीमतों में अचानक वृद्धी के चलते पिछले पाँच वर्षों में कृषि की विकास दर तेज (4.7%) रही है। लेकिन, कई प्रकार के बंधन, रियायतें, समर्थन मूल्य, क्षेत्रीय प्रशासनिक मुद्दे, साथ ही खेतों का छोटा आकार तथा वर्षों से चला आ रहा क्षमता से कम निवेश आदि मुद्दों समेत कई नीतिगत तथा संरचनागत बंधनों का समाधान किए बग़ैर कार्यप्रदर्शन के इस स्तर को दीर्घकाल टिका पाना मुश्किल होगा। भारत सरकार ने विश्व बैंक से कहा है कि वह अपनी नई रणनीति में कृषि विकास पर खास जोर दे।

विकास को टिकाऊ बनाना
अधिकांश वातावरणीय संकेतक बताते हैं कि देश के प्राकृतिक संसाधनों - जल, भूमी, वन, मिट्टी और जैव-विविधता - से विकास अपनी कीमत वसूल कर रहा है और पहले से अधिक बडे प्रदूषण के निशान छोड रहा है। भारत को मौसम के बदलावों से बडा खतरा है; चक्रवात, बाढ और सूखे का चक्र अधिक तेज हो चला है, और भारत की बडी नदियों को पानी प्रदान करने वाले हिमालय के ग्लेशियर पीछे हटने के स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। निश्चय ही, मौसम के बदलाव का सर्वप्रथम प्रभाव भारत के जल संसाधनों पर ही पडेगा। बढता तापमान भी कृषि उत्पन्न, वन तथा समुद्री एवं तटीय जैव-विविधता पर असर डालेगा। भारत को इन संसाधनों (विशेषतः जल) का बेहतर प्रबंधन कर वातावरण अवनति का अपने लोगों पर, खास कर सर्वाधिक खतरे में पडे समूहों पर पडता बोझ कम करना होगा।

सेवा प्रदाय को अधिक कारगर बनाना
जहाँ प्राथमिक विद्यालयों में भर्ती प्रक्रिया में अच्छी प्रगति हुई है, वहीं अन्य क्षेत्रों में, खास कर स्वास्थ्य में अब भी सुधार की गुंजाइश है। हालाँकि क्षयरोग से मृत्यु की दर में कमी आई है और 2008 में पोलियो की घटनाओं में बडी गिरावट आई, लेकिन अत्यधिक खर्चे के बावजूद शिशु कुपोषण का स्तर सहारा रेगिस्तान के भीतरी इलाकों से भी बदतर बना हुआ है। भारत के किसी भी शहर में 24 घंटे पानी की आपूर्ती नहीं की जाती, केवल आधी आबादी को सुरक्षित पेयजल मिलता है, और केवल एक तिहाई लोगों को स्वच्छता के साधन उपलब्ध हैं। सार्वजनिक सेवाएँ नाकाम हैं, मुख्यतः इसलिए कि उनकी अंतिम उपयोगकर्ता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती, और पुरानी पड चुकी प्रबंधन प्रणाली निर्णय लेने के लिए आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने में अक्षम है। इन मुद्दों की तीव्रता केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं में अधिक है, जिनके लिए केन्द्र सरकार द्वारा अभिकल्पना एवं धन मुहैया कराया जाता है, किंतु कार्यान्वयन राज्य सरकार द्वारा और शासन के निचले स्तरों द्वारा किया जाता है। इन योजनाओं के महत्व को देखते हुए सार्वजनिक खर्चे से बेहतर परिणाम मिलने के लिए अभिकल्पना एवं प्रशासन में प्रणालीगत सुधार लाना अत्यंत आवश्यक है। भारत सरकार ने विश्व बैंक से अपनी नई रणनीति में सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) प्राप्त करने के उद्देश्य से बनाई गई केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं पर खास जोर देने का अनुरोध किया है।

राज्यों के लिए रणनीति
भारत की विशालता और विविधता को देखते हुए बैंक राज्यों की आवश्यकताओं, विकास के स्तर और परियोजना कार्यान्वयन की क्षमता के अनुसार विभिन्न रणनीतियाँ अपनाएगी. उत्तर-पूर्व तथा हिमालयीन राज्यों के लिए विशेष रणनीतियों का इस्तेमाल भी किया जाएगा।

निम्न आय वाले राज्य
भारत के सात सबसे कम आय वाले राज्यों - बिहार, छत्तीसगढ, झारखंड, मध्य प्रदेश, उडीसा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश - के लिए, जहाँ भारत की आधी आबादी बसती है, नई रणनीति में अधिक संसाधन मुहैया कराए गए हैं। यहाँ बैंक गरीबी उन्मूलन और सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) प्राप्त करने पर ध्यान केन्द्रित करेगी। प्रशासनिक क्षमता विकसित करने हेतु इन राज्यों को व्यापक तकनीकी मदद दी जाएगी। इन राज्यों को बैंक ऋण प्रमुखतः आईडीए की निम्न-ब्याज साख एवं तकनीकी तथा सलाहकार सेवा के रूप में दिए जाएंगे।

मध्यम आय वाले राज्य
भारत के सबसे अमीर राज्यों की आय पहले से ही निम्न-मध्यम आय वाले देशों के समतुल्य है, जो गरीब राज्यों के निवासियों की तुलना में पाँच गुना अधिक है। यह अंतर अधिकांश लोकतांत्रिक समुदायों से अधिक है। इन राज्यों में बैंक दो मोर्चों पर मदद देगीः उनके पिछडे क्षेत्रों में गरीबी हटाने के लिए, और तेज विकास की वजह से उभरती जटिल समस्याओं के समाधान के लिए. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक संस्थाएं स्थापित करने में मदद दी जाएगी। फिलहाल कोई स्पष्ट समाधान नजर न आने वाली जटिल समस्याओं के लिए अद्यतन विश्लेषण कार्य एवं सर्वोत्तम अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की मदद ली जाएगी। इन राज्यों को ऋण प्रमुखतः आईबीआरडी के प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों के ऋण के रूप में दिए जाएंगे, साथ ही निजी क्षेत्र के ग्राहकों को अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) - बैंक के निजी क्षेत्र विभाग - से मदद मिलेगी।

केन्द्र का सहभाग
विश्व बैंक केन्द्र सरकार को नीतिगत तथा संस्थागत सुधारों को सहारा देने के लिए तथा केन्द्र सरकार की परियोजनाओं के सही क्रियान्वयन में सुधार लाने के लिए व्यापक विश्लेषणात्मक कार्य के रूप में मदद करती रहेगी। उदाहरण के तौर पर सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए), जहाँ अब विद्यालयों तक पहुँच बढ गई है और लिंग समानता प्राप्त की जा चुकी है, वहाँ अब दी जाने वाली शिक्षा का दर्जा सुधारने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। विद्युत के क्षेत्र में, बैंक द्वारा भारत की राष्ट्रीय विद्युत वितरण संस्था पॉवरग्रिड, जिसे उसने विश्व-स्तरीय संस्था बनने में मदद की है, को आधार दिया जाता रहेगा।

महत्वपूर्ण अभ्यास
नीति-निर्माताओं के सम्मुख उपस्थित गरीबी तथा बहिष्कार, कौशल तथा नौकरी निर्माण, निम्न-कार्बन विकास, तेजी से होते शहरीकरण की समस्याएं तथा जल संसाधनों का प्रबंधन एवं विकास आदि सहित अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर कुछ प्रमुख दीर्घावधी, बहुक्षेत्रीय अभ्यासों को भी विश्व बैंक मदद देगी।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) में उभरते मुद्दों से निपटने के लिए भारत को उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप आधुनिकतम विशेषज्ञ ज्ञान उपलब्ध कराने के लिए विश्व बैंक तथा आईएफसी आपस में सहयोग कर रहे हैं। जहाँ अब तक यह कार्य अधोसंरचना क्षेत्र - विद्युत वितरण, सडकें, सिंचाई और ग्रामीण अधोसंरचना, एवं शहरी विकास - में प्रमुखता से किया जा रहा था, अब यह कृषिव्यापार, स्वास्थ्य, शिक्षा और नवीनीकरण-योग्य ऊर्जा तक बढाया जाएगा। बैंक और आईएफसी दीर्घकालीन वित्त व्यवस्था पर भी साथ-साथ काम कर रहे हैः प्रस्तावित भारत अधोसंरचना वित्त कं. लि. (आईआईएफसीएल) परियोजना के जरिये।


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