मुख्य कहानी

भारत में अधोसंरचना पीपीपी परियोजनाओं को वित्तीय सहायताः 1.195 अरब डॉलर

22 सितंबर, 2009

कहानी की प्रमुख घटनाएं
  • अधोसंरचना पीपीपी परियोजनाओं के लिए अधिक दीर्घ-अवधि वित्तीय सहायता उपलब्ध होगी।
  • इस 1.195 अरब डॉलर के ऋण की सहायता से आईआईएफसीएल योग्य अधोसंरचना उप-परियोजनाओं को ऋण दे सकेगी।
  • सडक, बिजली और बंदरगाह क्षेत्र की उप-परियोजनाओं को आधार मिलेगा।

सितंबर 22, 2009: अधोसंरचना में निवेश को बढावा देना भारत के विकास के लिए और देश का गरीबी के खिलाफ संघर्ष जारी रखने के लिए महत्वपूर्ण है। अधोसंरचना निवेश को आधार देना इस समय खास महत्व रखता है, न केवल वैश्विक संकट के समय सकल घरेलू मांग को बनाए रखने के लिए, बल्कि भविष्य के अधिक मजबूत आर्थिक विकास की नींव रखने के लिए भी।

लेकिन, वर्ष 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट की शुरुआत से ही अधोसंरचना विकास के लिए दीर्घ-अवधि वित्तीय सहायता प्राप्त करना कठिन हो गया है। जहाँ 2007 में अधोसंरचना में निजी निवेश हेतु निम्न तथा मध्यम आय वाले देशों के लिए भारत एक प्रमुख ठिकाना था, वहीं हाल के सबूत संकेत देते हैं कि निजी वित्तीय सहायता - खास कर दीर्घ-अवधि निजी निवेश - प्राप्त करने में कठिनाई की वजह से नई परियोजनाओं में देरी हो रही है।

अधोसंरचना विकास भारत सरकार की 11वीं पंच-वर्षीय योजना (2007-12) की केन्द्रीय विषयवस्तु है। योजना का अनुमान है कि इस पाँच वर्ष की अवधि में सडक, रेल्वे, बंदरगाह, बिजली और पानी के क्षेत्रों में 492 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता है। इसके माने हैं अधोसंरचना पर होने वाले खर्च को वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद के 5 प्रतिशत से बढाकर लगभग दुगुना कर देना। निजी क्षेत्र को इसका 30 प्रतिशत से कुछ अधिक भाग - अथवा 160 अरब डॉलर - वहन करना होगा, जो उसके व्दारा पिछले पाँच वर्षों में किये गए खर्च से चार गुना अधिक है।

भारत के राष्ट्रीय निर्देशक रॉबर्ट झाग़ा इस परियोजना के फायदे समझाते हुए।

विश्व बैंक द्वारा आधार

भारत का विकास के पथ पर तेजी से बढना जारी रखने के लिए भारत सरकार ने अधोसंरचना में वित्तीय सहायता की कमी को पूरा करने के लिए विश्व बैंक से मदद मांगी है। भारत में अधोसंरचना निर्माण में विश्व बैंक का काफी समय से सहयोग रहा है - चाहे वह रेल्वे हो, राष्ट्रीय राजमार्ग हों, राज्यों के राजमार्ग हों या जल प्रणालियाँ हों - और उसने इन क्षेत्रों में काफी महारथ हासिल कर ली है।

वह भारत अधोसंरचना वित्त कंपनी लिमिटेड (आईआईएफसीएल) व्दारा योग्य अधोसंरचना उप-परियोजनाओं को ऋण दे सकने के लिए अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण तथा विकास बैंक (आईबीआरडी) के जरिये 1.195 अरब डॉलर की साख श्रृंखला (एलओसी) उपलब्ध कराएगी। आईआईएफसीएल सरकार के संपूर्ण स्वामित्व की एक वित्तीय संस्था है, जो अधोसंरचना की पीपीपी परियोजनाओं में दीर्घ-अवधि निजी वित्तीय सहायता जुटाने के लिए, और इस क्षेत्र में नए आविष्कारों के जतन हेतु 2006 में स्थापित की गई थी।

विश्व बैंक की मदद से भारत में अधोसंरचना पीपीपी परियोजनाओं के लिए अधिक दीर्घ-अवधि वित्तीय सहायता उपलब्ध होगी तथा आईआईएफसीएल को भारत में अधोसंरचना के लिए एक दीर्घ-कालीन स्थानीय मुद्रा ऋण वित्त बाज़ार के विकास में मदद मिलेगी। आईआईएफसीएल की संस्थागत क्षमता भी मजबूत होगी। इससे भारत में अधोसंरचना निर्माण के तरीके को बल मिलेगा और देश को विश्व के सर्वोत्तम मानक हासिल करने में मदद मिलेगी।

बैंक परियोजना की अवधि (2009-2015) में आईआईएफसीएल के आधार से कम से कम 150 नए पीपीपी का वित्तीय संपूर्णता तक पहुँचना, और निजी पूंजी की उपलब्धता में चार गुना वृद्धि होना अपेक्षित है। विश्व बैंक की वित्तीय सहायता इन प्रस्तावित परियोजनाओं की मदद करेगी, मुख्यतया सडक, बिजली एवं बंदरगाह क्षेत्रों में।

आईआईएफसीएल के अध्यक्ष तथा प्रबंध निर्देशक श्री एस. एस. कोहली पीपीपी के अधोसंरचना में विस्तार में ऋण की मदद का वर्णन करते हुए।

 

परियोजना पर प्रश्नोत्तरी

1.  विश्व बैंक व्दारा आईआईएफसीएल के ऋण की रकम कितनी है?

ऋण उपकरण एक वित्तीय माध्यम ऋण, या “एफआईएल”, है जो आईबीआरडी व्दारा 1.195 अरब डॉलर की साख श्रृंखला के जरिये दिया जाएगा। इसके पश्चात आईआईएफसीएल कुछ विशिष्ट अधोसंरचना उप-परियोजनाओं, जिनमें सडक, बंदरगाह और बिजली शामिल है, को इस साख श्रृंखला से ऋण देगी। यह भारतीय अधोसंरचना क्षेत्र में विश्व बैंक के सबसे बडे ऋणों में से है। इसकी पूर्णावधि 28 वर्ष की है, जिसमें 7.5 वर्ष की कृपा अवधि भी शामिल है। इसके साथ ही आईआईएफसीएल-कार्यान्वित 50 लाख डॉलर की एक अनुदान निधी भी है जो क्षमता निर्माण के लिए मुख्य ऋण के साथ ही दी जाएगी।

2.  बैंक व्दारा आईआईएफसीएल को सहायता का तार्किक आधार क्या है?

वर्तमान वैश्विक आर्थिक संकट की वजह से निजी दीर्घ-अवधि वित्तीय सहायता में भारी कमी आई है। देश के सतत विकास को बनाए रखने के लिए और गरीबी के विरुद्ध संघर्ष को जारी रखने के लिए विश्व बैंक, भारत सरकार के निवेदन पर, भारत अधोसंरचना वित्त कंपनी लिमिटेड (आईआईएफसीएल) - एक वित्तीय मध्यस्थ - व्दारा विशिष्ट अधोसंरचना उप-परियोजनाओं को ऋण उपलब्ध करा सकने हेतु धन उपलब्ध कराएगी। आईआईएफसीएल सरकार के संपूर्ण स्वामित्व की एक वित्तीय संस्था है, जो अधोसंरचना की पीपीपी परियोजनाओं में दीर्घ-अवधि निजी वित्तीय सहायता जुटाने के लिए 2006 में स्थापित की गई थी।

3.  विश्व बैंक की वित्तीय सहायता किन क्षेत्रों तक पहुँचेगी?

विश्व बैंक की वित्तीय सहायता, आईआईएफसीएल के जरिये सडक (राष्ट्रीय तथा राज्य राजमार्ग), विद्युत उत्पादन एवं प्रसारण, और बंदरगाह जैसे केन्द्रीय क्षेत्रों की उप-परियोजनाओं में मदद देगी।

4.  क्या विश्व बैंक सभी आईआईएफसीएल परियोजनाओं में मदद देगी?

नहीं, विश्व बैंक आईआईएफसीएल की सभी अधोसंरचना उप-परियोजनाओं में मदद नहीं करेगी। आईआईएफसीएल-समर्थित उप-परियोजनाओं की बडी संख्या में से केवल कुछ को ही विश्व बैंक की मदद मिलेगी। इन उप-परियोजनाओं को विश्व बैंक के पात्रता मानदंडों पर खरा उतरना होगा। इन मानदंडों में विश्व बैंक के वातावरणीय तथा सामाजिक सुरक्षा उपाय, उसकी खरीद नीतियाँ और उसके लेखा तथा लेखा-परिक्षण के मानक शामिल हैं। उप-परियोजनाओं को कम से कम 12 प्रतिशत आर्थिक तथा वित्तीय मुनाफा भी दिखाना होगा।

5.  बैंक की वातावरणीय तथा सामाजिक सुरक्षा उपाय नीतियाँ क्या हैं?

पेड काटना, वनभूमि का अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल, समुदाय तथा सांस्कृतिक संसाधनों पर प्रभाव, बडी मात्रा में जमीन का अधिग्रहण, लोगों का अनचाहा पुनर्वास, आदिवासियों पर प्रभाव (कुछ घटनाओं में), समुदाय का तथा धार्मिक स्थलों का पुनर्वास, तथा निर्माण कार्य का वातावरण पर प्रभाव आदि के जरिये बडी अधोसंरचना परियोजनाएं बडे वातावरणीय और सामाजिक प्रभाव छोड सकती हैं।

अपनी वित्तीय सहायता की वजह से लोगों तथा वातावरण का नुकसान न होने देने के लिए बैंक प्रतिबद्ध है। इसलिए विश्व बैंक से सहयता प्राप्त सभी परियोजनाएं वातावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपाय तथा संचालन नीतियों का पालन करती हैं जिनमें इन प्रभावों से संबंधित उपाय होते हैं। ये सुरक्षा उपाय तथा नीतियोँ वैकल्पिक पर्याय खोज कर प्रभावों को यथासंभव टालने अथवा कम करने का प्रयास करते हैं। जहाँ प्रभाव टालना संभव न हो वहाँ प्रभावित लोगों से चर्चा व्दारा, परियोजना प्रभावित लोगों को विस्थापन काल में मदद के जरिये और खोई संपत्ति की विस्थापन मूल्य पर क्षतिपूर्ति के व्दारा प्रभावों का हलका किया जाता है। वातावरणीय प्रभावों को हलका करने के उपाय भी कार्यान्वयन योजना में शामिल होते हैं। विश्व बैंक अपनी मदद प्राप्त सभी परियोजनाओं में वातावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपायों को मजबूत बनाने में मदद करती रहेगी। Bank Safeguards Policies

6.  क्या सभी आईआईएफसीएल परियोजनाओं में विश्व बैंक की आवश्यकताएं पूरी करने वाले वातावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपाय नहीं होंगे?

बैंक के वातावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपाय उन परियोजनाओं पर लागू नहीं होते जिन्हें विश्व बैंक की सहायता प्राप्त नहीं है। आईआईएफसीएल अपने स्वयं के सुरक्षा उपाय बना रही है। एक सलाह का मसौदा उसकी वेबसाइट पर उपलब्ध है। बैंक के वातावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपाय तथा मानक शामिल किये हुए एक विस्तृत ईएसएस ढाँचा बनाकर, अपना कर उसे वेबसाइट पर प्रदर्शित करने के लिए आईआईएफसीएल प्रतिबद्ध है। इस ढाँचे का इस्तेमाल आईआईएफसीएल व्दारा केवल बैंक-सहायता प्राप्त उप-परियोजनाओं के लिए किया जाएगा। आईआईएफसीएल इस ढाँचे को कार्यान्वित करने की अपनी क्षमता को बढाने के लिए भी प्रतिबद्ध है, जिसमें उसे परियोजना से तकनीकी मदद मिलेगी। IIFCL website

7.  विश्व बैंक की सहायता से आईआईएफसीएल को क्या फायदा मिलेगा?

विश्व बैंक की सहायता से आईआईएफसीएल को निम्नानुसार फायदा होगाः

  • अधोसंरचना उप-परियोजनाओं को ऋण देने के लिए दीर्घ-अवधि, स्थिर-ब्याज तक पहुँच, जो बाज़ार में सहज उपलब्ध नहीं
  • दीर्घ-कालीन स्थानीय मुद्रा ऋण वित्त बाज़ार के विकास को प्रेरित कर उसका भारत में अधोसंरचना के लिए तथा बाद में अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजारों में इस्तेमाल
  • जोखिम प्रबंधन, आंतरिक नियंत्रण, वित्तीय रिपोर्टिंग तथा वित्तीय उत्पाद विकास में आईआईएफसीएल की संस्थागत क्षमता में मजबूती, जो उसके व्दारा अधोसंरचना वित्तीय सहायता में नए आविष्कारों की शुरुआत होने पर काम आएगी।
  • आईआईएफसीएल को ठोस नीति तथा प्रक्रियाएं अपनाने, सुरक्षा उपायों में, खरीद में, वित्तीय प्रबंधन (एफएम) और रिपोर्टिंग में तथा देखरेख और मूल्यांकन व्यवस्था में वृद्धि करने; साथ ही आईआईएफसीएल के अपने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय विकास भागीदारों के साथ लेनदेन लागत में कमी लाने में मदद।

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