मुख्य कहानी

2 अरब डॉलर का बैंकिंग क्षेत्र आधार ऋण

22 सितंबर, 2009

कहानी की प्रमुख घटनाएं
  • ऋण भारत सरकार के लिए बजट संबंधी आधार बढाएगा।
  • यह भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को साख विस्तार में मदद करेगा
  • अधोसंरचना, लघु तथा मध्यम उद्योग और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फायदा होगा।

सितंबर 22, 2009: भारत के बैंकों ने, खास कर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) ने, देश के हाल के आर्थिक प्रदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने भारत के तथा विश्व के निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में साख में वृद्धि, साख का अच्छा दर्जा और लाभप्रदता के उच्च स्तर बनाए रखे हैं। उन्होंने वित्तीय समावेश को बढावा भी दिया है और भारतीय अर्थव्यवस्था के उत्पादन तथा व्यापार क्षेत्र के निम्न सेवा-प्राप्त विभागों को महत्वपूर्ण वित्तीय मदद एवं सलाहकार सेवाएं भी दी हैं।

किंतु, वैश्विक आर्थिक संकट की शुरुआत से ही विश्व भर में साख की उपलब्धता घटी है, और निजी तथा विदेशी बैंकों ने अपने ऋणों की वृद्धि में कटौती कर दी है। भारत की अर्थव्यवस्था पर पूंजी की कमी का प्रभाव टालने हेतु साख का विस्तार करने के लिए पीएसबी ने कदम उठाए हैं। इससे भारत पर वैश्विक संकट का असर कम हुआ है, यह रोजगार और राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता का नुकसान टाल रहा है और देश को गरीबी के खिलाफ संघर्ष जारी रखने में मदद कर रहा है।

भारत के राष्ट्रीय निर्देशक रॉबर्ट झाग़ा इस ऋण का महत्व समझाते हुए।

भारत सरकार ने वैश्विक आर्थिक वातावरण के असर से निपटने के लिए आर्थिक प्रेरणात्मक उपायों की एक विस्तृत श्रृंखला के ज़रिये त्वरित कदम उठाए हैं। पूंजी की कमी से ऋणों में बाधा न आने के लिए (जैसा कि कई अन्य विकसित तथा उभरते वित्तीय बाज़ारों में हुआ है) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आधार देना इस कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत सरकार का अनुमान है कि मध्यम अवधि में साख विस्तार को जारी रखने के लिए देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 2009-2011 के दौरान 4.8 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी। लेकिन वित्तीय बाज़ार और आर्थिक विकास की दर में परिवर्तन के चलते यह आँकड़े बदल सकते हैं।

विश्व बैंक द्वारा आधार

भारत सरकार के निवेदन पर विश्व बैंक देश को 2 अरब डॉलर का बैंकिंग क्षेत्र आधार ऋण दे रही है। यह ऋण भारत सरकार को बजट संबंधी सहायता देगा, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों की पूंजी बढाकर देश के विस्तृत आर्थिक प्रेरणात्मक कार्यक्रम को जारी रखने में मदद मिलेगी। इससे पीएसबी को चालू वर्ष में न केवल साख विस्तार में मदद मिलेगी, बल्कि आने वाले आर्थिक मंदी से वापसी के चरण के लिए भी मजबूती मिलेगी।

यह रकम एक विकास नीति ऋण (डीपीएल) के जरिये दी जाएगी। 2 अरब का यह डीपीएल वित्त वर्ष 2009-10 के सरकारी बजट में मददगार होगा। करीब 1 अरब डॉलर का दूसरा डीपीएल जून 2010 तक दिये जाने की संभावना है। यह ऋण पीएसबी को निम्नानुसार मदद देंगेः

  • अधोसंरचना के विस्तार में
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था के निम्न सेवा-प्राप्त विभागों की आवश्यकताएं पूरी करने में
  • कंपनियों की, विशेषकर लघु तथा मध्यम उद्योगों की कार्य-पूंजी की आवश्यकताएं पूरी करने में
  • विदेशी तथा निजी बैंकों तथा कंपनियों के कुछ ऐसे बडे विश्वसनीय कारपोरेट ग्राहकों को ऋण देने में, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाज़ार से पूंजी हासिल की थी, परंतु अब जिन्हें इन स्त्रोतों से धन मिलने में कठिनाई महसूस हो रही है।

 

 

बैंकिंग परियोजना पर प्रश्नोत्तरी

1.  भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को दिये जाने वाले इस ऋण का किस प्रकार इस्तेमाल किया जाएगा?

विश्व बैंक का नया राष्ट्रीय स्तर का 2 अरब डॉलर का बैंकिंग क्षेत्र आधार ऋण (साथ ही करीब 1 अरब डॉलर का अगले साल दिया जा सकने वाला संभावित ऋण) भारत सरकार को अपने बजट के लिए, तथा विस्तृत आर्थिक प्रेरणात्मक कार्यक्रम के लिए दिया जाएगा। इस कार्यक्रम के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में, प्रमुख शेयरधारक होने के नाते, सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों को वर्तमान स्तर के समान ऋण देते रहने के लिए, खास कर देश में 2010 और 2011 के मध्य आर्थिक मंदी से वापसी के शुरुआती दौर में, पूंजी उपलब्ध कराने का विचार कर रही है।

अर्थव्यवस्था में साख का विस्तार होने से आर्थिक प्रेरणात्मक कार्यक्रम को बढावा मिलेगा। सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंक अब अर्थव्यवस्था के निम्न सेवा-प्राप्त विभागों समेत अपने अन्य ग्राहकों की मांग के अनुसार उच्च स्तरीय ऋण दे सकने में समर्थ होंगे। अन्यों को विवेकपूर्ण ऋण को आधार देने हेतु अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता होगी, जो उन्हें भिन्न परिस्थितियों में खुद की कमाई, अपने शेयरधारक तथा पूंजी बाज़ार से मिलाकर हासिल हो सकती थी। दुर्भाग्यवश, पूंजी बाज़ार वैश्विक आर्थिक संकट में फंसा है; इसके अलावा, कई बैंक 51 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व की आवश्यकता के नज़दीक हैं, इसलिए पूंजी बाज़ार में धन उपलब्ध होने पर भी वे उस तक पहुँच पाने में असमर्थ ही रहते और उन्हें धन आपूर्ति के लिए सरकार पर ही निर्भर रहना पडता।

2.  क्या यह ऋण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर कोई शर्तें लादते हैं? क्या इससे इन बैंकों को अपनी संरचना तथा निधी-योजना बदलनी पडेगी?

सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों पर कोई शर्त नहीं लादी गई है। यह ऋण बैंकों के पुनः-पूंजीकरण के लिए नहीं है; यह सरकार को बजट संबंधी आधार देता है। सभी विकास नीति ऋणों (डीपीएल) में ऋण लेने वाले (इस मामले में भारत सरकार) को मिलने वाले आधार की भविष्यवाणी एक सुयोग्य बृहत्-आर्थिक ढाँचे को बनाए रखने, एवं आर्थिक विकास तथा गरीबी घटाने की मध्यम अवधि रणनीति के आधार पर की जाती है। इसके अलावा, यह संक्रिया सरकारी बजट को आधार देने वाली होने की वजह से भविष्यवाणी सार्वजनिक वित्त प्रबंधन के संतोषजनक कार्यप्रदर्शन को बनाए रखने के आधार पर भी की जाती है। यह अन्य देशों के डीपीएल की पूर्व-आवश्यकताओं से अलग नहीं है।

भारत सरकार ने संकेत दिये हैं कि विकास को आधार देने और वित्तीय समावेश के लिए साख विस्तार क्षमता हेतु वह सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराएगी। यह कार्य भारत की मध्यम अवधि बैंकिंग रणनीति तथा वैश्विक वित्तीय संकट के भारत पर प्रभावों से निपटने के लिए पिछले साल से उठाए जा रहे कुछ कदमों का हिस्सा है। विश्व बैंक का मानना है कि ये कदम वर्तमान परिस्थितियों के लिए योग्य हैं, और देश के आर्थिक लक्ष्यों को प्रभावी रूप से आधार देने के लिए बैंकों के लिए एक सुयोग्य मंच उपलब्ध कराते हैं।

3.  राष्ट्रीय डीपीएल क्या होता है, और यह परियोजना डीपीएल के स्वरूप में क्यों है?

डीपीएल बजट संबंधी आधार देता है और यह त्वरित-वितरण प्रकार का होता है, जो किसी देश के पूर्ववर्ती अथवा प्रस्तावित आर्थिक उपायों को आधार प्रदान करता है। यह राष्ट्रव्यापी आधार भी दे सकता है और किसी विशिष्ट क्षेत्र (जैसे, व्यावसायिक शिक्षा) या विशिष्ट राज्य (जैसे, बिहार) को भी। सरकार के आर्थिक प्रेरणात्मक कार्यक्रम तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराना इसी श्रेणी में आते हैं।

4.  इस परियोजना के तहत किन बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराई जाएगी?

सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए कम से कम 12 प्रतिशत पूंजी पर्याप्तता अनुपात का (जो प्राधिकरणों व्दारा अपनाए गए अनिवार्य बेसल 2 दिशानिर्देशों से 3 पॉइन्ट अधिक है), साथ ही 2009-2010 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के कुल बैंकों से साख में करीब 20 प्रतिशत कुल लक्ष्यित वृद्धि का निर्धारण किया है।

हरेक बैंक के लिए उसकी सुरक्षित आय, इक्विटी बाज़ार से निधी एकत्र करने की क्षमता, विकास योजनाएं, पूंजी के अन्य स्त्रोतों की गुंजाइश, और कम से कम 51 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व की आवश्यकता से नज़दीकी इस बात का निर्धारण करेंगे कि सरकारी बजट से उन्हें कब और कितनी पूंजी मिले। इसके चलते पूंजी आधार की आवश्यकता वाली बैंकों की सूची सक्रिय आंतरिक तथा बाह्य कारकों पर निर्भर होकर समय के साथ बदलती रहेगी।


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