Skip to Main Navigation
मुख्य कहानी6 मई, 2025

पर्यावरण की पुनर्स्थापना से मेघालय के समुदायों की मदद

The World Bank

World Bank

मुख्य बिंदु

  • जंगलों की देखरेख और उसके संसाधनों के सही इस्तेमाल के एक नए नज़रिए से मेघालय के जनजाति समुदायों को बहुत मदद मिल रही है । जंगल प्रबंधन के इस नए नज़रिए से गुणवत्ता गंवा चुकी पहाड़ियों पर वनीकरण, घटते झरनों को पुनर्जीवित करना, हरित अर्थव्यवस्था को बनाने और पर्यावरण पर आधारित आजीविका को बनाने में मदद मिल रही है ।
  • विश्व बैंक समर्थित मेघालय सामुदायिक नेतृत्व वाली लैंडस्केप मैनेजमेंट परियोजना ने भूदृश्य प्रबंधन के प्रति एक समग्र नज़रिया अपनाया जिसमें पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक समाधान के साथ जोड़ा गया ।
  • इसने 400 ग्रामीण समुदायों को सामर्थ्य दिया कि वे अपनी ज़मीन, पानी और जंगलों को दोबारा इस्तेमाल के लायक बना सकें । इससे उनमें सामूहिक मिलकियत और ज़िम्मेदारी की भावना भी पनपी।

पर्यावरण को पहले जैसे बनाना और मेघालय के समुदायों को मदद

जंगलों  की देखरेख और उनके संसाधनों के सही इस्तेमाल के एक नए नज़रिए से मेघालय के जनजाति समुदायों को बहुत मदद मिल रही है । जंगल प्रबंधन के इस नए नज़रिए से गुणवत्ता गंवा चुकी पहाड़ियों पर दोबारा वनीकरण,  घटते झरनों को पुनर्जीवित कर, हरित अर्थव्यवस्था को बनाने और पर्यावरण पर आधारित आजीविका को बनाने में मदद मिल रही है।

जब हम युवा थे तब हमारे जंगल हरे थे और वहाँ बहुत सारे पेड़ थे । लेकिन अब हमारे अधिकतर पेड़ ख़त्म हो चुके हैं और पानी की उपलब्धता घट चुकी है।
बालालुपा मॉलॉंग
The World Bank

World Bank

भारत के पूर्वोत्तरी राज्य मेघायलय में, श्रीमति बालालुपा मॉलॉंग उदासी से बीते हुए समय को याद करती हैं जब उनके पहाड़ दूर दूर तक जंगलों से भरे हुए थे और घाटियों से झरनों की झालरें गिरती थीं ।

वो याद करती हैं, ‘’जब हम युवा थे तब हमारे जंगल हरे थे और वहाँ बहुत सारे पेड़ थे । लेकिन अब  हमारे अधिकतर पेड़ ख़त्म हो चुके हैं और पानी की उपलब्धता घट चुकी है।‘’

मेघालय में पूरे देश में सबसे भीषण बारिश गिरती है ।   लेकिन राज्य के चारों ओर दिखने वाले अधिकतर जंगल, धीरे धीरे लगभग खत्म हो गए हैं । दस्तावेज़ों में दर्ज  55 हज़ार  झरनों में से आधे से ज़्यादा या तो सूख गए हैं या फिर उनके पानी के बहाव में भारी कमी दिखी है ।

श्रीमति मॉलॉंग मानती हैं कि मानवीय गतिविधियों का इस बर्बादी में बहुत योगदान है । बहुत सारे पेड़ घरेलु ईंधन  के लिए काटे गए हैं या फिर  लकड़ी के रूप में बेच दिए गए हैं ।  बदल-बदल कर खेती करने के पारंपरिक तरीके ‘’झूमिंग’’ के कारण भी नुकसान हुआ है । जंगल ख़त्म होने का नुकसान केवल ज़मीन और पानी के स्रोत की गुणवत्ता में कमी नहीं है बल्कि इससे मेघालय के लोगों पर भी असर पड़ा है ।  इनमें से अधिकतर अपनी आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं । यह इस क्षेत्र के लिए इसलिए भी तबाह  कर देने जैसा  नुकसान है क्योंकि ये दुनिया में जैव विविधता के 36 ठिकानों में से एक है और यहाँ जो अनोखी प्रजातियां पाई जाती हैं वो पृथ्वी ग्रह पर और कहीं नहीं पाई जाती हैं।

The World Bank

World Bank

भूदृश्य प्रबंधन का एक समग्र नज़रिया

वन प्रबंधन के पारंपरिक तरीके इस बर्बादी को उलटने में असफल रहे,  इसलिए मेघालय सरकार ने 2018 में विश्व बैंक की मदद से मेघालय सामुदायिक नेतृत्व वाले भूदृश्य प्रबंधन परियोजना के ज़रिए भूदृश्य प्रबंधन का एक समग्र नज़रिया अपनाया।

विश्व बैंक की ओर से इस परियोजना का नेतृत्व करने वाले पीयूष डोगरा ने याद किया, " मेघालय पर्यावरण की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा था, जैसे जंगलों की कटाई, जल संसाधनों का लगातार घटना और जैव विविधता को नुकसान । हमने आजीविका और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध बनाकर भूमि की ज़रूरतों और लोगों की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाया।"

The World Bank

World Bank

परियोजना शुरू होने के छह साल के बाद, इसका प्रभाव स्पष्ट  दिखाई दे रहा है।  श्रीमती मॉलॉंग अपने गांव की उस ग्रामीण पर्यावरण समिति की अध्यक्षा हैं । वो गर्व से पानी से पूरी तरह भरे एक तालाब की ओर इशारा करती हैं और कहती हैं, “यह जलाशय जिसे हमने दोबारा सही  किया है, न केवल हमें पूरे वर्ष पीने का पानी देता है, बल्कि वनस्पति को पोषण भी देता है और हमारे घटते औषधीय पौधों को भी पुनर्जीवित करता है।”

वो आत्मविश्वास से आगे कहती हैं, “अब हमने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कड़े कदम उठाने का निर्णय लिया है।”

असम की सीमा से सटे री भोई ज़िले के श्री एंडी वेलबॉर्न जिरवा ने याद किया, “प्रकृति को होने वाला नुकसान बहुत अधिक था ।  इस परियोजना ने हमें अपने  जंगलों को दोबारा पुरानी स्थिति में लाने में मदद की। वृक्षारोपण के बाद, हमने जल स्तर में वृद्धि देखी। “

पूर्वी खासी पहाड़ियों के मावतेबाह गांव में, समुदाय अब पानी के बारे में आत्मनिर्भर है । ऐसा इसके  141 परिवारों के सामूहिक प्रयासों के कारण संभव हुआ ।

अब आसानी से पानी की उपलब्ता के साथ ही निवासी शांति की भावना महसूस करते हैं ।   उमसारंग गांव की श्रीमती मेन्डोरिस सिंरेम बताती हैं, "पहले, हमारे बच्चों को कक्षा में जाने से पहले पानी लाना पड़ता था । अब वे समय पर स्कूल जाते हैं।"

The World Bank

World Bank

प्राकृतिक संतुलन दोबारा बनाना

तो इस परियोजना ने  क्या  किया ?  मेघालय की लंबी परंपराओं के मुताबकि जनजातीय समुदाय सामूहिक रूप से प्राकृतिक संसाधनों के मालिक होते हैं ।  इस परियोजना ने  नीचे से यानी ज़मीनी स्तर से, ऊपर काम करने का दृष्टिकोण अपनाया।  इसने 400 गांवों के समुदायों को अपनी भूमि, जल और जंगलों को पुनर्जीवित करने के लिए सक्षम किया । गांव के बुजुर्गों के पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल विज्ञान और डेटा समर्थित समाधानों के साथ किया गया।

मेघालय के जनजातीय समुदायों के बीच मौजूद गहरी एकता और समानता की  भावना के कारण, सभी, युवा और बुजुर्ग, एक साथ मिलकर अपनी भूमि को दोबारा पहले जैसा बनाने का काम करते हैं, वृक्षारोपण करते हैं और चेक डैम (बांध) बनाते हैं, जिससे उन्हें सामूहिक स्वामित्व की भावना का  एहसास होता  है।

महत्वपूर्ण है कि फ़ैसले करने में महिलाओं को एक अहम भूमिक दी गई । ये पुराने समय  के  मुकाबले में  महत्वपूर्ण  ढंग से भिन्न था। चाहे पारंपरिक तौर पर मेघालय  के समुदाय मातृवंशी हैं लेकिन महिलाओं की सामुदायिक मामलों में कभी-कभार ही बात सुनी जाती थी।

The World Bank

World Bank

प्रकृति पर आधारित  नई आजीविकाएँ शुरू करना

लेकिन इतना सब कुछ ही नहीं, इसके इलावा भी बहुत कुछ हुआ ।  लोगों की जंगलों पर निर्भरता को कम करने के लिए, इस परियोजना ने नई  प्रकृति पर आधारित आजीविकाएं बनाने में मदद की।

अपनी नवजात मुर्गियों के पास गर्व से खड़ी, पश्चिम जैंतिया हिल्स के मूडीम्मा गांव की श्रीमती बमुतलांग्की परियात बताती हैं कि अब उनके पास एक बेहतर आय का स्रोत है। उनका कहना है,  "इस परियोजना के तहत 25,000 रुपये से मैंने मुर्गियों का साथ साथ उन्हें पालने के लिए खाद्य सामग्री और अन्य सामान भी खरीदा है । अब मुझे काम की खोज में बाहर नहीं जाना पड़ता।"

अन्य लोगों ने भी नए उद्यम शुरू किए हैं ।  इनमें गाय के शेड, बकरियों के शेड और सूअर पालन से लेकर, कंपोस्ट पिट और संकट ग्रस्थ औषधीय पौधों की प्रजातियों की नर्सरियाँ  तक हैं ।

आज तक, परियोजना के अधीन आते 400 गांवों में कृषि-बागबानी, पौधों की नर्सरियां और कम्पोस्टिंग इकाइयों ने निवासियों को 1.30 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय दी  है।

The World Bank

World Bank

खनन से ख़राब हुई ज़मीनों का नवीनीकरण

इस परियोजना ने मेघालय की खनन से ख़राब हुई भूमि को भी दोबारा पहले जैसा बनाने में मदद की है । वर्ष  2014 से प्रतिबंधित 'रैट होल' कोयला खनन ने न केवल पर्यावरण को खराब किया, बल्कि कई स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा कर दीं ।

इन क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर सुगंधित घास के पौधारोपण से ठीक किया गया है। इन घास में से एक थी सिट्रोनैला।  बाज़ार में इस  जैसी घास की बहुत ऊँची कीमत है । इससे ये  सुनिश्चित होता है कि इसके पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ लंबे समय तक जारी रहेंगे ।

उदाहरण के तौर पर पूर्वी जैंतिया हिल्स के मिंथलू गांव में,  जहाँ एक समय  बंजर कोयला डिपो हुआ करता था, अब लेमनग्रास और सिट्रोनेला के लहलहाते खेत हैं ।

एक निवासी सेम्युल लाटाम का कहना था, "मैंने देखा है कि इस पहल ने न केवल हमारी मिट्टी की उर्वरता को बहाल किया है,  बल्कि हमारे समुदाय को भी फिर से जीवंत किया है,"

वो आगे कहते हैं,  "यह मात्र भूमि की बहाली से आगे की बात है । इसने हमें आर्थिक अवसर दिए हैं और भविष्य में  हमारी  आशा  के  भरोसे को भी बहाल किया है ।

इस परियोजना ने वर्ष 2021 से  मेघालय की खनन से खराब हुई  भूमि के 672 हेक्टेयर को समृद्ध  खेतों में  बदल दिया है ।

The World Bank

World Bank

भविष्य को सुनिश्चित करना

यह सुनिश्चित करने के लिए कि समुदाय अपने प्रयासों को लंबे समय तक बनाए रखें, युवाओं – दोनों  लड़के और लड़कियों को अपने झरनों और अन्य प्राकृतिक स्रोतों का मानचित्र बनाने और भू-टैगिंग करने का प्रशिक्षिण दिया गया।  

ऐसी भूदृश्य प्रबंधन योजनाएं विकसित की गईं जो लोगों की ज़रूरतों और पर्यावरण की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाती हैं।

कुल 13,000 लोग, जिनमें से एक तिहाई महिलाएँ थीं, जीआईएस और अन्य प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ वित्तीय और खरीद प्रबंधन में प्रशिक्षित किए गए।

री भोई  ज़िले के उमसारंग गांव के बंजोप जीरवा कहते हैं,  "परियोजना ने हमें अपने  पर्यावरण की देखभाल करने के बारे में बहुमूल्य जानकारियाँ दी है"  श्री बंजारोप जीरवा ने जीआईएस प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण पाया था।

इस परियोजना की सफलता को देखते हुए, मेघालय सरकार इसका विस्तार पूरे राज्य में अपनी अनूठी  'ग्रीन मेघालय' पहल के माध्यम से कर रही है। पड़ोसी राज्य भी इसका अनुसरण कर रहे हैं।

परियोजना के निदेशक श्री पी. संपत कुमार ने कहा,  "यह परियोजना भारत के प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन क्षेत्र में अपनी तरह की पहली है।  यह दर्शाती है कि भूदृश्य प्रबंधन नज़रिए को अपनाने से बहुमूल्य प्राकृतिक पूंजी का संरक्षण करने में मदद मिल सकती है । इसका मकसद है कि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियाँ एक स्वस्थ पारिस्थितिकी प्रणाली के लाभों का आनंद उठा सकें।"

जैसे-जैसे दुनिया जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला रुख़  अपनाने के तरीके खोज रही है,  मेघालय ने दिखाया है कि भूदृश्य की चुनौतियों का समग्र रूप से समाधान करने से समुदायों की परिवर्तनकारी शक्ति का उपयोग बिगड़े हुए पर्यावरण को पुनर्स्थापित करने  में  महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । ये समुदायों को सामाजिक और आर्थिक रूप से लाभान्वित करता है।

  • The World Bank

    विश्व बैंक द्वारा समर्थित मेघालय कम्युनिटी-लेड लैंडस्केप मैनेजमेंट ने 400 ग्रामीण समुदायों को उनके भूमि, पानी और जंगलों को पुनर्जीवित करने के लिए सशक्त किया है, जिससे सामूहिक स्वामित्व और जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा मिल...

  • The World Bank

    15,000 हेक्टेयर से अधिक के लिए वन प्रबंधन योजनाएँ तैयार की गईं और लगभग 10,000 हेक्टेयर के जंगलों को पुनर्स्थापित किया गया ।

  • The World Bank

    9,000 से अधिक झरने मानचित्र पर दिखाए गए और उनकी भू-टैगिंग की गई । चार सौ गांवों में 3,000 झरनों को पुनर्जीवित किया गया ।

  • The World Bank

    मेघालय की 672 हेक्टेयर भूमि जो खनन के कारण ख़राब हुई थी, उसे दोबारा पहले जैसा कर दिया गया है । अब वहाँ सुगंधित पौधों के साथ फलदायी बागान लहलहाते हैं। ढलान-भूमि कृषि का उपयोग कर और स्थायी जल संसाधनों के निर्माण से ऐसा किय...

  • The World Bank

    मेघालय की 46,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि अब स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं का पालन करती है।

  • The World Bank

    लगभग 18,700 हेक्टेयर व्यक्तिगत स्वामित्व वाले जंगल और लगभग 23,500 हेक्टेयर सामुदायिक स्वामित्व वाले जंगल इस पहल के अंतर्गत लाए गए हैं।

  • The World Bank

    कुल 13,000 लोगों को - जिनमें से एक तिहाई से अधिक महिलाएं थीं - जीआईएस और अन्य प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ वित्तीय और खरीद प्रबंधन में प्रशिक्षण दिया गया, जिससे वे अपने समुदायों की मदद कर सकें और बेहतर नौकरियां प्राप्त कर ...

  • The World Bank

    6,000 से अधिक गांवों के लिए प्राकृतिक संसाधन मानचित्र बनाए गए। गांवों के प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में 65,000 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया।

  • The World Bank

    कृषि-बागबानी, नर्सरी के ज़रिए और खाद बनाने की इकाइयों ने परियोजना के 400 गांवों के निवासियों के लिए 1.30 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय अर्जित की है।

  • The World Bank

    समुदायों ने 131 पंजीकृत जिंगकिएं जरी (जीवित जड़ पुल) को संरक्षित किया है।

The World Bank

World Bank

जीवित जड़ पुल

मेघालय की खासी और जैंतिया जनजातियाँ सदियों से स्वदेशी फ़ायकस इलास्टिका पेड़ों की जड़ों को बुनकर नदियों पर पुल बनाती रही  हैं।

ये अद्वितीय 'जीवित जड़ पुल' हैं  जिन्हें स्थानीय भाषा में  'जिंगकिएंग ज्री' कहा  जाता है - ये पुल  साढ़े चार मीटर से लेकर  40 मीटर तक  लंबे हो सकते हैं और इन्हें  पूरी तरह बनने में  40 साल तक का समय लग सकता है।

ये पुल आज इस क्षेत्र के प्राकृतिक आधारभूत ढांचे का एक चर्चित उदाहरण हैं जो स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति-आधारित समाधान का इस्तेमाल करता है ।

इस परियोजना ने समुदायों के बीच  उनकी इस 2000 से ज़्यादा साल पुरानी सांस्कृतिक धरोहर की ख़ासीयत के बारे में जागरूकता बढ़ाई ।  इनमें से कई पुल तेज बाढ़ और क्षेत्र की भारी बारिश से हुए भूस्खलन  से  क्षतिग्रस्त हो गए थे।

फिर उन्हें गाँव के बुजुर्गों के पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल  करके अपने पुलों को दोबारा बनाने में  मदद की गई ।  तब से, इस परियोजना ने अनुसंधान आधारित संरक्षण को बढ़ावा दिया है, सामुदायिक नर्सरियां स्थापित की हैं और पारंपरिक प्राकृतिक आवास  बनाए हैं जिन्हें  'लिंग मारियांग' कहते हैं । 

इस परियोजना के तहत सामुदायिक अध्ययन स्थल भी बनाए गए हैं, जिन्हें 'श्लेम जिंगटिप' कहते हैं,   जहाँ  बुज़ुर्ग अपना ज्ञान युवा पीढ़ी के साथ बाँटते हैं ।  इस परियोजना के तहत अब व्यापक स्थल अनुसंधान और विस्तृत विश्लेषण किया जा रहा है । 

इसका मकसद  यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में लिविंग ब्रिज के नामांकन के लिए दस्तावेज़ तैयार करना है ।  ये  पूरी दुनिया के दर्शकों के लिए प्रकृति और संस्कृति के बीच गूढ़  संबंधों को उजागर करता है।

इस  परियोजना ने वर्ष 2024 तक समुदायों को 131 पंजीकृत 'जिंगकियेंग जरी' (लिविंग रूट ब्रिज) का संरक्षण करने में मदद की थी । 

The World Bank

World Bank

पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भुगतान

मौजूदा वनों के संरक्षण के लिए भुगतान करना लुप्त हो चुके वनों को फिर से उगाने की तुलना में कहीं अधिक किफ़ायती है।

इसलिए परियोजना ने पारिस्थिति की तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान कार्यक्रम शुरू किया  है । इसके ज़रिए  समुदायों को अपने प्राकृतिक वनों को संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

मेघालय भारत का पहला राज्य है जिसने इस कार्यक्रम को लागू किया है ।  यह देश में इस तरह की सबसे बड़ी पहल भी है।

जो ज़मीन के मालिक इस कार्यक्रम के तहत अपने जंगलों का संरक्षण करते हैं, वो  प्रति हेक्टेयर वार्षिक पुरस्कार राशि पाने के योग्य हो जाते हैं ।  जहाँ  जहाँ  भूमि पर  पवित्र उपवन, जीवित जड़ पुल  या हाथी गलियारे शामिल हैं, या फिर वह  पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र है,  वहाँ अधिक धनराशि दी जाती है ।

इस पहल को मेघालय के सबसे बड़े शहरों - शिलांग और तुरा को पानी देने वाले दो महत्वपूर्ण जलग्रहण क्षेत्रों में शुरू किया गया था।  अब  ये पहल  व्यक्तिगत  तौर पर मिलकियत  वाले लगभग  18,700 हेक्टेयर के जंगल और  सामुदायिक स्वामित्व वाले 23,500  हेक्टेयर जंगल पर चल रही है ।

ब्लॉग

    loader image

नई खबरें

    loader image