भविष्य को सुनिश्चित करना
यह सुनिश्चित करने के लिए कि समुदाय अपने प्रयासों को लंबे समय तक बनाए रखें, युवाओं – दोनों लड़के और लड़कियों को अपने झरनों और अन्य प्राकृतिक स्रोतों का मानचित्र बनाने और भू-टैगिंग करने का प्रशिक्षिण दिया गया।
ऐसी भूदृश्य प्रबंधन योजनाएं विकसित की गईं जो लोगों की ज़रूरतों और पर्यावरण की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाती हैं।
कुल 13,000 लोग, जिनमें से एक तिहाई महिलाएँ थीं, जीआईएस और अन्य प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ वित्तीय और खरीद प्रबंधन में प्रशिक्षित किए गए।
री भोई ज़िले के उमसारंग गांव के बंजोप जीरवा कहते हैं, "परियोजना ने हमें अपने पर्यावरण की देखभाल करने के बारे में बहुमूल्य जानकारियाँ दी है" श्री बंजारोप जीरवा ने जीआईएस प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण पाया था।
इस परियोजना की सफलता को देखते हुए, मेघालय सरकार इसका विस्तार पूरे राज्य में अपनी अनूठी 'ग्रीन मेघालय' पहल के माध्यम से कर रही है। पड़ोसी राज्य भी इसका अनुसरण कर रहे हैं।
परियोजना के निदेशक श्री पी. संपत कुमार ने कहा, "यह परियोजना भारत के प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन क्षेत्र में अपनी तरह की पहली है। यह दर्शाती है कि भूदृश्य प्रबंधन नज़रिए को अपनाने से बहुमूल्य प्राकृतिक पूंजी का संरक्षण करने में मदद मिल सकती है । इसका मकसद है कि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियाँ एक स्वस्थ पारिस्थितिकी प्रणाली के लाभों का आनंद उठा सकें।"
जैसे-जैसे दुनिया जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला रुख़ अपनाने के तरीके खोज रही है, मेघालय ने दिखाया है कि भूदृश्य की चुनौतियों का समग्र रूप से समाधान करने से समुदायों की परिवर्तनकारी शक्ति का उपयोग बिगड़े हुए पर्यावरण को पुनर्स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । ये समुदायों को सामाजिक और आर्थिक रूप से लाभान्वित करता है।