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राय11 जुलाई, 2023

गर्मी-उमस अटका सकती है भारत के व‍िकास की राह में रोड़ा- वर्ल्‍डबैंक ने चेताया, उपाय भी बताया

सन् 2023 की फरवरी को 120 साल में सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया और बढ़ती गर्मी में हीटवेव का देश के स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर विनाशकारी असर पड़ा है। इसके कारण मौतें, बीमारियां , फसलों को नुकसान, बिजली कटौती और पानी की कमी हुई है। इन सबके कारण जलवायु प्रदूषण भी बढ़ा है।

असहनीय गर्मी गरीब एवं वंचित मानव आबादी के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए बहुत गंभीर खतरा है। इन लोगों के पास पंखा-कुलरएसी, सर पर छत या पेड़ों की छांव तक का इंतजाम नहीं होता। व‍िश्‍व बैंक (world bank)के अनुसार, हीटवेव ने 2020 में भारत एवं पाकिस्तान में एक अरब से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया

भीषण गर्मी विशेष रूप से खुले स्थानों पर शारीरिक श्रम वाले पेशों में जुटे कामगारों की श्रम क्षमता एवं उत्पादकता को भी घटा सकती है। वर्ष 2030 तक बढ़ते तापमान और उमस से नष्ट होने वाले श्रम के कारण भारत को जीडीपी के 4.5 प्रतिशत यानी लगभग 15000-25000 करोड़ डॉलर तक का नुकसान हो सकता है।

एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि दक्षिण एशिया में ग्रामीण एवं शहरी निम्न आय परिवारों में समुचित आवासीय व्यवस्था की गुणवत्ता में कमी होने तथा हवा के आवागमन (वेंटिवें लेशन) के अभाव के कारण बाहरी तापमान के मुकाबले घरों के भीतर का तापमान ज्यादा हो गया है।असहनीय बढ़ती गर्मी गरीबी और असमानता को और अधिक बढ़ा कर विकास के प्रयासों को कमजोर कर सकती है।

शहरी इलाकों में गर्मी की समस्या विशेष रूप से चरम पर है, जहां ‘शहरी ऊष्मा द्वीप’ (यूएचआई) का प्रभाव शहरों को उसके आसपास के इलाकों से ज्यादा गर्म बना देता है। यूएचआई का प्रभाव प्राकृतिक वनस्पतियों के कंक्रीट एवं डामर से प्रभावित होने और वाहनों,नों उद्योगों एवं एयर कंडीशनरों से अपशिष्ट ऊष्मा के उत्सर्जन के कारण होता है। यूएचआई प्रभावित शहर के भीतर थर्मल असमानताएं भी उत्पन्न करता है। गरीब एवं वंचित तबका ज्यादा पीड़ित होता है।

विश्व बैंक ने हाल ही में इस बारे में एक अध्‍ययन जारी क‍िया है। इसमें भारत एवं इसके पड़ोसी देशों में बढ़ती शहरी ऊष्मा की चुनौती का व्यापक विश्लेषण क‍िया गया है। साथ ही, इस समस्‍या को लेकर मुख्‍य रूप से तीन सुझाव भी द‍िए गए हैं:

1. समस्‍या से सबसे ज्‍यादा प्रभावित आबादी पर और अधिक अनुसंधान कर डेटा एकत्र करना होगा।

2. योजना एवं विकास प्रक्रियाओं में सामाजिक एवं स्थानिक कारकों को एकीकृत करना होगा।

3. बिल्डिंग कोड, जोनिंग एवं भूमि उपयोग नियमों में शहरी ऊष्मा के प्रति सचेत रहते नियम निर्धारित करने होंगेहों गे।

भारत को बढ़ती शहरी ऊष्मा की चुनौती को न केवल जलवायु चुनौती के रूप में, बल्कि एक विकास चुनौती के रूप में भी देखते हुए नीत‍िबनानी होगी। यह देश के आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति एवं पर्यावरणीय स्थिरता के लिए खतरा उत्पन्न करने के साथ ही साथ हमारे शहरों में असमानताओं को बढ़ा रही है। हमारे शहरों को और ठंडा, हरा-भरा एवं सभी के रहने के लिए उपयुक्त बनाने हेतु तत्काल कार्रवाई किए जाने की जरूरत है।

भारत के टिकाऊ शीतलन समाधान से न केवल देशवासियों को वरन् दुनिया को लाभ होगा। देश के लिए व्यापक आर्थिक अवसर भी उत्पन्न होंगेहों गे। विश्व बैंक की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत हरित शीतलन प्रौद्योगिकियां एवं कार्य शैलियां अपनाकर 2040 तक 1.6 ट्रिलियन डॉलर का भारी निवेश जुटा सकता है। इसमें शीतलन उपकरणों की ऊर्जा क्षमता में सुधार करना, भवन डिजाइन एवं निर्माण को बेहतर करना, अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विस्तार करना और उच्च-जीडब्लूपी रेफ्रिजेरैंट को चरणबद्ध ढंग से हटाना शामिल है।

इन उपायों को लागू कर भारत सन् 2040 तक अपने वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 20 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर तक कम कर सकता है जो वैश्विक जलवायु लक्ष्यों में उल्लेखनीय योगदान होगा। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के किगाली संसोधन और पेरिस समझौते के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में भारत ने शीतलन की चुनौती को जलवायु अनुकूल तरीके से संबोधित करने का संकल्प दर्शाया है।

सन् 2019 में लॉन्च हुई भारत की शीतलन कार्य योजना (आईसीएपी) एक दूरदर्शी दस्तावेज है। यह सभी के लिए टिकाऊ एवं समान शीतलन हासिल करने के लिए पांच महत्वाकांक्षी लक्ष्य और 100 ठोस कार्रवाई निर्धारित करता है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते हुए भारत हीटवेव के जानलेवा असर से न केवल अपने लोगों को बचा सकता है बल्कि वैश्विक शीतलन बाजार में अपनी आर्थिक क्षमता एवं नेतृत्व की राह भी खोल सकता है।

इन शीतलन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, भारत को तीन प्रमुख क्षेत्रों:त्रों भवन निर्माण, कोल्ड चेन और रेफ्रीजेरेंट में निवेश करना होगा। इसके लिए किफायती आवासों में जलवायु आधारित शीतलन तकनीक, शहरी क्षेत्रों में जिला शीतलन प्रणाली, कोल्ड चेन में प्री कूलिंग एवं रेफ्रिजेरेटेड परिवहन और वैकल्पिक रेफ्रिजेरैंट जो ग्लोबल वार्मिंग क्षमता को कम करे, को अपनाने की आवश्यकता है। ये दुनियाभर की प्रमाणित टैकनोलजी और सर्वोत्तम कार्य शैलियां हैं।

भारत में इस क्षेत्र का वैश्विक नेता बनने और हरित शीतलन विनिर्माण एवं नवीनीकरण का केंद्र बनने की क्षमता है। हालांकि, इसके लिए सरकार, उद्योग, नागरिक समाज एवं उपभोक्ता समेत सभी हितधारकों की ओर से ठोस कार्रवाई की आवश्यकता होगी।

निजी क्षेत्र भी उद्योग अनुसंधान एवं विकास में निवेश कर सकता है, गुणवत्ता मानक एवं लेबल अपना सकता है, ऊर्जा-क्षम शीतलन उत्पादों एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण को बढ़ा सकता है।

गर्मी घटाने के प्रयासों का फायदा गरीबों और वंच‍ितों तक भी पहुंचे, यह सुन‍िश्‍च‍ित करना भी जरूरी है। इस संबंध में लंबे समय तक चलने वाले इंतजाम करके उपभोक्ता की मांग और उनकी आदतों में बदला व के प्रयास से भी सकारात्‍मक नतीजे हास‍िल क‍िए जा सकते हैं।

 

आभास झा विश्व बैंक के लिए अभ्यास प्रबंधक, जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम प्रबंधन, शहरी, लचीलापन और भूमि वैश्विक अभ्यास के भीतर दक्षिण एशिया क्षेत्र हैं।

यह ओपिनियन आलेख पहली बार 11 जुलाई, 2023 को जनसत्ता में प्रकाशित हुआ।

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