इतिहास में देखा गया है की दुनिया भर में शहरों की स्थापना करते समय शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम पुरुषों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए की गई है। लेकिन, शहरों का अनुभव महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग है। शहरी परिवहन व्यवस्था और सार्वजनिक स्थल सुरक्षित और समावेशी न होने पर महिलाओं और लड़कियों को रोज़गार, शिक्षा, देखभाल सेवाएं और यहां तक कि आराम सुविधाओं तक पहुंच बनाने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है
अध्ययनों से पता चलता है कि भारतीय शहरों में देर शाम के वक्त या एक निश्चित दायरे से बाहर यात्रा को लेकर उठने वाली चिंताएं लड़कियों और महिलाओं के स्कूल, कॉलेज और काम पर जाने में आने वाली सबसे बड़ी बाधाओं में से हैं। उदाहरण के लिए, 2020 में बेंगलुरु में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, सर्वे में शामिल केवल 2 प्रतिशत महिलाएं रात 9 बजे के बाद यात्रा करती हुई पाई गईं। इस प्रकार गतिशीलता से जुड़ी बाधाएं महिलाओं की दीर्घकालिक महत्त्वाकांक्षाओं को विफल कर सकती हैं और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को छीन सकती हैं। यौन हमले के खतरे के कारण महिलाएं बाहर निकलने से डरती हैं। उदाहरण के लिए, 2017 में दिल्ली में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, महिलाएं हर रोज़ अतिरिक्त 27 मिनट की यात्रा करने को तैयार थीं क्योंकि कुछ ख़ास रास्ते उनके मुताबिक अधिक सुरक्षित थे। इसलिए ये ज़रूरी है कि सार्वजनिक स्थलों में यौन हमले को रोकने से जुड़ी रणनीतियां बनाई जाएं और ऐसी घटनाओं पर दंड प्रावधान बनाए जाने चाहिए।
आमतौर पर, कम भीड़भाड़ वाले समय के दौरान महिलाएं छोटी दूरी वाली यात्राएं करती हैं, और अपने काम के लिए अलग-अलग परिवहन साधनों का इस्तेमाल करती हैं, और इस तरह से वे अपनी घरेलू और रोज़गार संबंधी जिम्मेदारियों को पूरा करती हैं। इसलिए, व्यवस्था प्रणाली को महिलाओं की गतिशीलता से जुड़ी आदतों को समझने और उसके आधार पर सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं को व्यवस्थित करने के लिए लिंग के आधार पर आंकड़ों को इकट्ठा करने और विश्लेषित करने की आवश्यकता है ।
विश्व बैंक के साथ जुड़ने के बाद मुंबई रेल विकास निगम ने उपनगरीय क्षेत्रों में जाने वाली ट्रेनों में गतिशीलता से जुड़ी आदतों का विस्तृत अध्ययन किया । इसका परिणाम यह हुआ कि सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा को एक प्राथमिक मुद्दे के रूप में पहचाना गया और प्लेटफॉर्म, स्टेशनों और ट्रेनों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने के लिए समाधान पेश किए गए। ये गतिविधियां महिलाओं के लिए लेडीज स्पेशल ट्रेनों को चलाने तक ही सीमित नहीं रहीं और आगे जाते हुए महिला सुरक्षा के लिए आधारभूत ढांचे के मुद्दों को भी संबोधित किया।
ज्यादा से ज्यादा महिला कर्मियों की नियुक्ति से यात्राओं को अधिक सुरक्षित बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कोची मेट्रो में काम करने वाली 80 प्रतिशत कर्मी महिलाएं हैं, जो स्टेशन प्रबंधक, ट्रेन चालक, टिकट विक्रेता और सफाईकर्मी के तौर पर कार्यरत हैं। सुरक्षा बढ़ाने के लिए अन्य बसों और ट्रेनों में भी ऐसी पहलों को लागू किया जा सकता है।
चूंकि सामाजिक परंपराओं की जड़ें काफ़ी गहरी हैं, इसलिए इससे भी महिलाओं का घर से बाहर निकलना काफ़ी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में स्थानीय समुदायों को सामाजिक अभिकर्ताओं के रूप में नियुक्त करने की आवश्यकता है ताकि वे महिलाओं की गतिशीलता से जुड़ी पारंपरिक मान्यताओं में बदलाव ला सकें। दिल्ली, गुरुग्राम और पुणे में कई संस्थाएं ऐसी हैं, जो समुदायों को संवेदनशील बनाने की दिशा में काम करती हैं। इसके अलावा, वे सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था से जुड़े फ्रंटलाइन कर्मचारियों के लिए लैंगिक संवेदनशीलता से जुड़े प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाते हैं।
निर्भया फंड के तहत, केंद्र सरकार राज्यों और केंद्रीय मंत्रालयों को आवश्यक संसाधन मुहैया कराती है ताकि महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम लागू किए जा सकें। 2015 से, भारत के 8 शहरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद और लखनऊ) ने इस फंड की मदद से प्रमुख अपराध स्थलों की पहचान करने और पुलिस को महिलाओं के खिलाफ़ अपराधों की जांच के लिए प्रशिक्षित किया और हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए ऐसे मंच स्थापित किए जहां हर स्तर से जुड़े समाधान उपलब्ध हों।
ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन ने एक जेंडर एंड पॉलिसी लैब को स्थापित किया है जो निर्भया फंड के तहत विभिन्न परियोजनाओं में तमिलनाडु सरकार की सहायता करेगी ताकि शहर के सार्वजनिक स्थलों को सुरक्षित बनाया जा सके। उत्तरी चेन्नई में टोंडियारपेट में गतिशीलता से जुड़े लैंगिक अंतरालों को समझने के लिए एक सर्वे किया गया, और साथ ही सुरक्षा की मौजूदा स्थिति समझने के लिए भी अलग से एक अध्ययन किया गया। शहरी बसों में सीसीटीवी कैमरा लगाने और आपातकालीन बटन की सुविधाओं पर भी काम जारी है, और चेन्नई का महानगर परिवहन निगम शोषण की घटनाओं पर नज़र रखने के लिए कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर भी स्थापित किए जा रहे हैं।
विश्व के विभिन्न शहरों समेत चेन्नई और मुंबई में अनुभवों से पाया गया है कि सार्वजनिक गतिशीलता और सार्वजनिक स्थलों से जुड़ी लैंगिक मुद्दों के समाधान के लिए कई हितधारकों के साथ मिलकर लंबे समय तक काम करने की ज़रूरत है, और समाज में गहरी जड़ों वाले मुद्दों और समस्याओं के निवारण पर काम करना होगा।
भारत में विभिन्न परियोजनाओं से जुड़े अनुभवों और दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों से सीख लेते हुए विश्व बैंक ने भारतीय संदर्भ में एक टूलकिट का निर्माण किया है, जो सरकार और निजी संस्थानों को शहरों को महिलाओं के लिए सुरक्षित और समावेशी बनाने की दिशा में सहयोग कर सकता है।
टूलकिट इस काम को चार चरणों में विभाजित करता है:
१) लैंगिक आधार पर गतिशीलता पैटर्न को समझने के लिए ज़मीनी स्तर पर आंकड़े जुटाना और सुरक्षा का जायज़ा लेना ।
२) यौन शोषण से जुड़ी शिकायतों के समाधान पर काम करना और उस पर विशेष ध्यान देते हुए मौजूदा नीतियों को और मज़बूत बनाना ।
३) सरकार और समुदाय-आधारित संस्थानों के भीतर और बाहर (उनके सहयोग से) क्षमता वर्धन और जागरूकता बढ़ाने की दिशा में काम करना।
४) महिलाओं की सुरक्षा और समावेशिता पर विशेष ध्यान देते हुए मूलभूत अवसंरचना और सुविधाओं को और बेहतर बनाना ।
शहरों को सुरक्षित बनाकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि महिलाओं और लड़कियों के पास चुनाव करने की सुविधा हो जैसे दफ़्तरों में देर तक रुकने, बेहतर शैक्षणिक संस्थानों में जाने और यहां तक कि बेहतर स्वरोज़गार विकल्पों जैसी सुविधाएं । इससे भारतीय महिलाओं की श्रम बाज़ार में भागीदारी को बढ़ाने और उसके परिणामस्वरूप देश के आर्थिक प्रदर्शन को बेहतर करने में मदद मिलेगी।
अगस्टे तानो कौमे विश्व बैंक कंट्री डायरेक्टर और जेराल्ड पॉल ओलिवियर लीड ट्रांसपोर्ट स्पेशलिस्ट हैं।
यह ओपिनियन पीस पहली बार 8 मार्च, 2023 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ।