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मुख्य कहानी21 नवंबर, 2024

महिला उद्यमी ऐसे बढ़ रही हैं आगे

The World Bank

साल में जब खेती का काम घट जाता है, तब बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर की आमना ख़ातून एक थोक के व्यापारी के लिए चूड़ियां बनाने का काम करती है।  यदि वह कच्चा माल ख़ुद से ख़रीद सकती, तो वह एक छोटी दुकान शुरू कर सकती थी। इसके साथ ही वह औरतों को अन्य सामान बेचकर बड़ा मुनाफ़ा कमाकर अपना कारोबार बढ़ा सकती थी। 

विश्व बैंक

मुख्य बातें

  • गावों में औरतों की मिलकियत वाले उद्यम 2.2 से 2.7 करोड़ लोगों को रोज़गार देते हैं। लेकिन महिला उद्यमियों को औपचारिक तौर पर कर्ज़ लेने यानी स्थापित वित्तीय संस्थानों से क़र्ज़ लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । उन्हें मध्यम स्तरीय विकास के लिए ज़रूरत के मुताबिक नीतिगत समर्थन के अभाव का सामना करना पड़ता है । उन्हें मार्कीटिंग, तकनीक और पेशेवर सलाह जैसे व्यवसाय के विकास के लिए अति महत्वपूर्ण सेवाएँ नहीं मिल पाती हैं ।
  • ग्रोथ ओरियंटिड विम्न एंटरप्राइज़ यानी महिलाओं के विकास उन्मुख उद्यमों को सशक्त बनाने और विकास के लिए समर्थ बनाने के लिए ज़रूरी हैं ज़रूरत-अनुसार बनाई गई वित्तीय प्रोडक्ट्स, अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े ख़ास कार्यक्रम और एकीकृत सहायक संरचना ।
  • महिलाओं के विकास उन्मुख उद्यमों (जीओडब्लयुई) को मान्यता और मदद देने से ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार पैदा करने को बढ़ावा मिल सकता है। इससे उद्यमिता में पुरुषों और औरतों के बीच अंतर को घटाया जा सकता है और दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है।

दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के ईरोड़ में, सुबीथा बानो सड़क के किनारे ठेला लगाती है। प्यार से भाई अम्मा के नाम से जानी जाती सुबीथा हर रोज़ समयानुसार सुबह 10 बजे दो कनस्तर बिरयानी लेकर काम पर पहुँच जाती है।  दिन अच्छा हो तो वो सारा सामान दोपहर बारह बजे तक बेच लेती है।

फिर वो अपने पड़ोस में स्थित शराब की दुकान में आने वाले पुरुषों के लिए बकरे या मुर्गे के मांस की मसालेदार करी बनाती है। फिर वह अंडे ले आती है और शाम में आने वाले ग्राहकों के लिए ऑमलेट बनाती है। रात साढ़े आठ बजे वो 700-800 रुपए मुनाफ़ा कमाकर अपने बेटे के साथ घर लौट जाती है और अगले दिन सबह फिर काम शुरु करती है।   

अच्छी समझ-बूझ वाली यह उद्यमी अब अपने ठेले का विस्तार करके, और लोगों को काम पर लगाकर और बिक्री का सामान बढाकर अपनी आमदनी को दोगुना करना चाहती है। इसके लिए उसे एक लाख रुपए का निवेश करना होगा।

आम तौर पर कर्ज़ की आवश्यकता पड़ने पर ऐसी परिस्थितियों में ग्रामीण महिलाएँ अपने स्थानीय स्वयम् सहायता समूह (एसएचजी) से मदद की गुहार लगाती हैं क्योंकि औपचारिक वित्तीय संस्थाओं से अभिलाषी महिला उद्यमियों को लोन मिलना आसान नहीं है।  भाई अम्मा को तो कर्ज़ लेने की सीमा की समस्या भी आएगी क्योंकि ये रकम उनके स्वयम् सहायता समूह के लिए बहुत बड़ी है।

भारत सरकार ने बदलाव और विकास को बढ़ावा देने में महिला उद्यमियों  के महत्व को मानते हुए 2018 में उनकी मदद के लिए कई प्रोग्राम शुरु किए। लेकिन ज़्यादातर नीतिगत पहल पहली पीढ़ी की महिला उद्यमियों को व्यवसाय स्थापित करने में मदद देने पर ध्यान केंद्रित करती हैं । या फिर, ये  नीतियां पांच करोड़ से ज़्यादा टर्नओवर यानी कुल बिक्री वाले माइक्रो, लघु या मीडियम उद्योगों को काम में विस्तार लाने के समर्थ बनाती हैं ।

भाई अम्मा जैसे उद्यम जिनका वार्षिक मुनाफ़ा तीन लाख और तीस लाख रुपए के बीच है, वो इन दोनों श्रेणीयों के बीच आते हैं। इसलिए महिलाओं के विकास उन्मुख उद्यम (जीओडब्ल्युई) के नाम से जाने जाते इस विशेष खंड का विस्तार कर, उसे विकसित करके, उसके ज़रिए और राज़गार पैदा किए जा सकते हैं। लेकिन ये मुख्यधारा के उद्यमों की श्रेणियों में नहीं पाया जाता और इस पर कोई ख़ास अध्ययन भी नहीं हुआ है।

महाराष्ट्र के वरधा ज़िले की खेत मज़दूर सोनाली झाडे अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए, कम काम वाले महीनों में एक दुकानदार के लिए फ़ूलों के हार बनाती थी। इस काम में कुशल हो जाने के बाद उसने 5000 रुपए का छोटा सा कर्ज़ लिया और अपना रास्ता ख़ुद बनाया। अब वो अपनी हार की दुकान शुरु करना चाहती है। लेकिन सफल होने के लिए उसे सही व्यावसायिक और मार्कीटिंग सलाह के अलावा औपचारिक कर्ज़ यानी वित्तीय संस्थाओं से लोन की ज़रूरत होगी ।

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महिलाओं की मिलकियत वाले ग्रामीण उद्यम 2.2 से 2.7 करोड़ लोगों को राज़गार देते हैं ।

 

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महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों का विकास कैसे हो सकता है?

विश्व बैंक ने छह भारतीय राज्यों में एक अध्ययन किया। मकसद यह था कि ऐसे उद्यमों के विकास की  पूरी संभावनाओं के लिए ज़रूरी कदमों को चिन्हित किया जा सके।

इस अध्ययन के मुताबिक जीओडब्ल्युई को आम एमएसएमई के मुकाबले में काफ़ी छोटा व्यवसाय माना गया। इस अध्ययन में उन जीओडब्ल्युई को शामिल किया गया जिनका कम से कम एक कर्मचारी हो, वार्षिक बिक्री दो लाख चालीस हज़ार रुपए या ज़्यादा हो और जिनका पिछले तीन साल में विकास हुआ हो । फिर विकास चाहे नई प्रोडक्ट्स या सेवाएँ देकर, ग्राहकों की संख्या बढ़ाकर या फिर तकनीकी नवीनीकरण को शुरू करके किया गया हो।  (WER)

इस अध्ययन से पता चला कि महिलाओं की मिलकियत वाले ग्रामीण, ग़ैर-कृषि उद्यमों में से 85 प्रतिशत पांच उप-क्षेत्रों में केंद्रित हैं - ये हैं खुदरा व्यापार, परिधान निर्माण, ख़ाद्य प्रोडक्ट्स, खाद्य सामग्री और  पेय सेवाएँ और हैंडलूम ।

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महिलाओं की मिलकियत वाले ग्रामीण, ग़ैर-कृषि उद्यमों में से अधिकांश पांच उप-क्षेत्रों में केंद्रित हैं।

 

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सबसे महत्वपूर्ण ये था कि इस अध्ययन ने विशेष तौर पर भारत के ग्रामीण क्षेत्र में जीओडब्ल्युई के ज़रिए नौकरियां पैदा करने की विशाल संभावनाओं को रेखांकित किया, जिनका अब तक इस्तेमाल नहीं किया गया था ।

भारत के लिए ये ख़ास महत्व की बात है कि पिछले एक दशक में लगभग 2.7 करोड़ भारतीय महिलाएँ कृषि क्षेत्र से बाहर निकली हैं ।  इनसमें से केवल 50 लाख  ग़ैर-कृषि क्षेत्र में गई हैं जबकि बाकी लेबर फ़ोर्स से पूरी तरह से बाहर निकल गई हैं (चांद, श्रीवास्तव और सिंह, 2017)।

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व्यापक मदद के लिए निशाना साध कर बनाई नीतियां

भाई अम्मा जैसे जीओडब्लुई भारत में और बाहर भी धीरे धीरे एक अलग विशिष्ट उद्यम श्रेणी के तौर पर पहचान पा रहे हैं । लेकिन समय की मांग ये है कि उन्हें संस्थागत और व्यापक सहायक संरचना के ज़रिए सशक्त किया जाए ताकि वे अपनी संभावनाओं को पूरा कर सकें ।

इसके लिए ऐसी नीतियां चाहिए होंगी जो उनकी ख़ास ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई हों और इसके साथ ही वो औपचारिक यानी संस्थागत, पर्याप्त और ग्राहक की ज़रूरत के मुताबिक पैसे तक उनकी पहुँच संभव बनाएँ।

इसके अतिरिक्त, इन उद्यमों को सलाहकार, उस्ताद और तंत्र के समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी । इन कदमों से भारत न केवल श्रम क्षेत्र में अपनी महिलाओं की भागीदारी की दर वर्तमान 37 प्रतिशत से बढ़ा सकेगा, बल्कि इससे देश उद्यमिता में पुरुष और महिला की भागीदारी में अंतर को भी घटा सकेगा । भारत इस मापदंड पर 77 देशों की सूची में 70वें स्थान पर हैं ।

ये अध्ययन ग्रामीण औरतों की उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए भारत को विश्व बैंक की ओर से मिलने वाले उस विस्तृत मदद का हिस्सा है ।

इसमें राष्ट्रीय और राजकीय स्तर के प्रोग्रामों के तहत मिलने वाली मदद शामिल है ।

इन प्रोग्रामों के ज़रिए महिलाओं की मिलकियत वाले उन उद्यमों को मदद दी जाती है जिन्होंने विकास की संभावना दिखाई हो । ये मदद व्यवसायिक योजना बनाने और व्यावसायिक बैंकों से फ़िक्सड और वर्किंग कैपिटल (यानी कर्ज़ लेने) के लिए संपर्क साधने में दी जाती है।

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