Skip to Main Navigation
राय 10 फ़रवरी, 2022

विकास गुणक के रूप में इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश

Image

World Bank

क्या इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मजबूत प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है? जवाब एक शानदार हां है – लेकिन शर्त यह है कि निवेश कैसे वित्तपोषित और खर्च किया जाएगा।

आकार बनाम लिवरेज

इंफ्रास्ट्रक्चर का वित्तपोषण कैसे करें, इसके बारे में नीतिगत चर्चा अनिवार्य रूप से संभावित राजकोषीय प्रोत्साहन के आकार पर केंद्रित है। यह इंफ्रास्ट्रक्चर के वित्तपोषण का एक महत्वपूर्ण पहलू है और यह केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न योजनाओं और  विभिन्न कोषों जैसे समेकित सड़क अवसंरचना कोष (सीआरआईएफ) , वित्त आयोगों के आवंटन द्वारा, और कई विकास वित्त संस्थान (डीएफआई) के माध्यम से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के राजकोषीय आवंटनों में अच्छी तरह से परिलक्षित होता है।

इन चैनलों के माध्यम से राजकोषीय आवंटन बढ़ाना हमेशा संभव होता है और इसे सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया जा रहा है। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर के घाटे - प्रति वर्ष सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 7-8% -  को वित्तपोषित करने के लिए आवश्यक संसाधनों की मात्रा का वित्त पोषण सीधे सरकार के वार्षिक वित्तीय आवंटन से करना एक चुनौती होगी।

इसके बजाय, वक्त की मांग यह है कि राजकोषीय प्रोत्साहन के आकार पर ध्यान  हटा कर लिवरेज पर जोर दिया जाए, यानी - सार्वजनिक संसाधन द्वारा वित्तीय बाजारों से कितना जुटाया जा सकता है। यह इंफ्रास्ट्रक्चर के वित्तपोषण के लिए अधिक कुशल और न्यायसंगत तरीके की अनुमति देता है। पहला, समय के साथ निवेश के वित्तपोषण की लागत को सुगम बनाकर, और दूसरा, आज किए गए निवेश के भावी लाभार्थियों के साथ लागत साझा करके।

लेकिन लिवरेजिंग सार्वजनिक बैंकिंग प्रणाली पर बोझ नहीं होनी चाहिए।

भारत में सार्वजनिक बैंक एक उभरती हुई सुधार प्रक्रिया से गुजर रहे हैं जिसे जारी रखने की आवश्यकता है। उनके पैसे की परिपक्वता लंबी अवधि के इंफ्रास्ट्रक्चर  के वित्तपोषण की आवश्यकता से मेल नहीं खाती। वित्तीय बाजारों में उतरने और निवेश उद्देश्यों के लिए आगे उधार सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक विकास वित्तीय संस्थानों (डीएफआई) को मजबूत करने का विकल्प पहले से ही सरकार के उपायों का हिस्सा है।

डीएफआई का और अधिक लाभ उठाया जा सकता है, लेकिन उनका ट्रैक रिकॉर्ड मिश्रित है, और सार्वजनिक बैंकों की तरह,  उनकी भूमिकाओं से लाभ उठाने के लिए उद्देश्य और परिचालन ढांचे के संदर्भ में पुनर्विचार करना होगा। इसके बजाय, राजस्व की शक्ति का सबसे अच्छा उपयोग इंफ्रास्ट्रक्चर  के वित्तपोषण के लिए पूंजी बाजार और संस्थागत निवेशकों - पेंशन फंड और जीवन बीमा एजेंसियों – तक पहुंच बनाने के उद्देश्य से विभिन्न तंत्रों की पेशकश करना है। दूसरी पीढ़ी की डीएफआई, जो ऋण वृद्धि और बांड बीमा की पेशकश करती हैं, आज की जरूरत है।

ये संस्थान इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदाताओं को अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय बाजारों से लंबी अवधि के वित्त को प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए ऋण (क्रेडिट) वृद्धि, पहली हानि और आंशिक गारंटी प्रदान  करेंगे। इस तरह के दृष्टिकोण को अतिरिक्त प्रोत्साहन मिलेगा यदि नियामक ढांचा भी घरेलू संस्थागत निवेशकों को इंफ्रास्ट्रक्चर  के लिए अपने वित्त पोषण में वृद्धि करने में सक्षम बनाता है।

पारंपरिक डीएफआई के मुकाबले ऋण बढ़ाने के दृष्टिकोण वाले डीएफआई के तीन भिन्न फायदे हैं। परियोजनाओं की ऋण योग्यता (साख) के बाजार आकलन पर भरोसा करते हुए सरकार निवेश के अधिक जोखिमों को बाजार के साथ साझा कर सकती है। दूसरा, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदाता अपने निवेश की अधिक साख स्थापित करने की कोशिश करेंगे, क्योंकि प्रोत्साहन को मुख्य रूप से बाजार वित्त पर निर्भर रहना है, जिसमें सरकारी आवंटन केवल अतिरिक्त सहायता प्रदान करते हैं। तीसरा, यद्यपि ऋण निर्णय में राजनीतिक हस्तक्षेप पूरी तरह से समाप्त करना मुश्किल है, परंतु इस तरह की ऋण वृद्धि प्रणाली में - जिसमें सार्वजनिक और निजी ऋणदाताओं के बीच स्पष्ट अलगाव होता है - यह कम हो जाता है।,

हार्डवेयर से सेवाओं तक : विश्वसनीय इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां

हालांकि, वित्त का लाभ उठाना समीकरण का केवल एक हिस्सा है। दूसरा हिस्सा व्यय है - वित्त को 'कैसे' खर्च करें,  इस पर ध्यान केंद्रित करना। परंपरागत रूप से, हार्डवेयर पर जोर दिया गया है, जैसे सड़क नेटवर्क का विस्तार; पानी एवं बिजली के लिए पाइप एवं तारों (वायर) पर निवेश करना; बंदरगाहों और हवाई अड्डों का निर्माण; और सार्वजनिक आवास का विस्तार। जैसा कि इन उदाहरणों से पता चलता है, हार्डवेयर के लिए पर्याप्त पूंजीगत व्यय सुनिश्चित करना परंपरागत रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर कार्यक्रमों का फोकस रहा है।

परंतु, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर व्यय को सफलतापूर्वक इंफ्रास्ट्रक्चर सेवाओं में परिवर्तित किया जाए। पानी के अधिकाधिक पाइपों के निर्माण से अपने-आप नियमित रूप से जलापूर्ति नहीं हो सकती। बसों की और अधिक संख्या स्वचालित रूप से एक कुशल शहरी परिवहन प्रणाली को जन्म नहीं देगी और हवाई जहाजों की ज्यादा संख्या आवश्यक रूप से बेहतर एयरलाइन सेवाओं में तब्दील नहीं होगी। भारत को जवाबदेह और प्रभावी जनसेवा उपक्रमों, कंपनियों और निगमित एजेंसियों की आवश्यकता है जो इंफ्रास्ट्रक्चर  के खर्च को, उदाहरण के लिए, बाधा रहित जलापूर्ति, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति, कुशल परिवहन सेवाओं, प्रभावी ठोस अपशिष्ट संग्रह और निपटान, और कुशल बंदरगाह जैसी सेवाओं में तब्दील कर सकें।

इसलिए मौजूदा सार्वजनिक क्षेत्र के विभागों और एजेंसियों को कुशल और जवाबदेह सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में बदलने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोत्साहन कार्यक्रम में एक ठोस और दीर्घकालिक बकाया प्रोत्साहन शामिल होना चाहिए।

ऑस्ट्रेलिया, ने नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में एक शीर्ष औद्योगिक देश के रूप में अपना स्थान खो दिया था। उसनेअपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए इसी तरह अपने इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में सुधार किया। इंग्लैंड ने लंबे समय से अपनी इंफ्रास्ट्रक्चर एजेंसियों को वित्तीय बाजारों से जोड़कर सुधार किया है। हालांकि, पावरग्रिड, ईईएसएल, कॉनकॉर्प, दिल्ली की बिजली कंपनियों, शिमला एवं बेलगाम-हुबली-धारवाड़ की जल कंपनियों और निगमीकृत हवाई अड्डों के उदाहरण बताते हैं कि भारत को इंफ्रास्ट्रक्चर सेवा वितरण में नवाचारों को खोजने के लिए अपनी सीमाओं से आगे जाने की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय, भारत को विश्वसनीय परियोजनाओं (अधिक हार्डवेयर) पर ध्यान केंद्रित करने के स्थान पर विश्वसनीय संस्थानों (इंफ्रास्ट्रक्चर  सेवाओं को बढ़ाने के लिए) का समर्थन करने की आवश्यकता है।

आर्थिक विकास पर इस तरह के बदलाव का बहुआयामी प्रभाव पड़ता है और यह जीवन की सुगमता पर प्रधानमंत्री की चुनौती को पूरा करने के लिए एक पूर्व आवश्यकता है।

विश्वसनीय संस्थान वित्तीय बाजारों का लाभ उठाने की रणनीति से सीधे जुड़े हुए हैं। ये संस्थान बाजारों से लंबी अवधि के वित्त का लाभ उठाने के लिए बांड जारी कर सकते हैं और सरकार के किसी भी ऋण वृद्धि कार्यक्रम का लाभ उठा सकते हैं। बदले में वे बांड बाजार को मजबूत करते हैं और वित्तीय बाजारों को गहराई देते हैं। विश्वसनीय कंपनियों द्वारा संचालन और रखरखाव के वित्तपोषण की मांग भी बैंकिंग क्षेत्र को इंफ्रास्ट्रक्चर  के वित्तपोषण में अधिक कुशलता से भाग लेने ka रास्ता खोलता है। इसके अलावा, यह मजबूत वित्तीय स्थिति वाले नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फण्ड  (एनआईआईएफ) को अपने इक्विटी निवेश को बढ़ाने में सक्षम बनाएगा।

एक महत्वपूर्ण बात यह है कि, विश्वसनीय संस्थान अधिक समावेशी संस्थान बनाने के लिए द्वार खोलते हैं। उचित रूप से संरचित, एक इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी अपने कर्मचारियों को शेयर वितरित कर सकती है या इससे भी अधिक महत्वाकांक्षी रूप से सरकार शेयरों का एक हिस्सा खरीद सकती है और इसे एक निश्चित आय सीमा से नीचे के घरों में वितरित कर सकती है।

भारत के प्रभावशाली आईटी प्लेटफॉर्म और डीबीटी के साथ बढ़ते अनुभव से पता चलता है कि यह दृष्टिकोण काफी व्यवहार्य है। यहां तक ​​​​कि भारत के संघीय ढांचे को भी फायदा होगा क्योंकि सरकार के सभी स्तर, एक इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी में शेयरों का सह-स्वामित्व कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई में एक वैश्विक स्तर की यात्री रेलवे कंपनी बनाने की संभावना को ही लें। मुंबई शहर, महाराष्ट्र राज्य और केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में भारतीय रेलवे सहकारी संघवाद की भावना के तहत ऐसी कंपनी में सह-निवेश और सह-स्वामित्व कर सकते हैं। इस तरह के दृष्टिकोण से राज्य सरकार और स्थानीय  शासन के बीच संयुक्त शेयरधारिता के साथ राज्य को शहर के शासन के लिए कुछ सेवा वितरण प्रणाली विकसित करने में भी मदद मिलेगी – जिसका एक उत्कृष्ट उदाहरण पानी है।  यह भारत के शहरी शासन को विकसित करने के लिए एक अलग दृष्टिकोण है।

सार्वजनिक-निजी साझेदारी पर बहस भी विश्वसनीय इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां बनाने की चर्चा से जुड़ी है। सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी एक निजी ऑपरेटर के लिए अनुबंध कर सकती है। हालांकि, यह आवश्यक नहीं है। साओ पाउलो वाटर कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी जल सेवा कंपनी है। यह एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है जो पूंजी बाजार से संसाधन जुटाती है और समय के साथ अपने संचालन के कुछ हिस्सों के प्रबंधन में निजी क्षमताओं का लाभ उठाती है। भारत में डीएफसीएल सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी है, जिसके द्वारा निजी एवं सार्वजनिक फ्रेट ऑपरेटरों को पहुंच प्रदान करने वाले खुले नेटवर्क के रूप में फ्रेट कॉरिडोर चलाए जाने की उम्मीद है। इन उदाहरणों से पता चलता है कि पीपीपी एक दृष्टिकोण या साधन है जिसका लाभ एक क्रेडिट योग्य इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी द्वारा उठाया जा सकता है। लक्ष्य विश्वसनीय संस्थान बनाना होना चाहिए और पीपीपी एक ऐसा साधन है जिसका वे   लाभ उठा सकते हैं। पीपीपी को अपने-आप में एक उद्देश्य नहीं होना चाहिए।

इंफ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक सुरक्षा : एक महत्वपूर्ण कड़ी

वित्तीय बाजारों का उपयोग  करने में सक्षम इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां बनाने के बारे में उपयोगकर्ता शुल्क का मुद्दा एक संभावित चिंता है। उदाहरण के लिए, एक  डिस्कॉम को राजस्व स्रोत के रूप में उपयोगकर्ता शुल्क के एक स्तर की आवश्यकता होगी। यदि विश्वसनीयता के आधार पर बाजारों से वित्त जुटाना उद्देश्य था तो मुफ्त बिजली वितरित करने की संभावना मुश्किल होगी।

मुफ्त बिजली बनाए रखने के लिए, सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग प्रणाली, व्यापक सरकारी अंडरराइटिंग, या प्रत्यक्ष वित्तीय हस्तांतरण, इन सभी पर भरोसा करना राजनीतिक रूप से कहीं अधिक आसान है। इसमें समाधान के लिए एक पेचीदा गुत्थी अंतर्निहित है।

'मुफ्त बिजली' की कीमत सब जानते हैं : एक अक्षम डिस्कॉम प्रणाली; भारत के प्राकृतिक संसाधन  विशेष रूप से भूजल का स्तर कम होना; वित्तीय क्षेत्र पर बोझ और आर्थिक विकास पर इसके परिणाम; और प्रणाली की असमानता जो बेहतर स्थिति वालों को भी  सब्सिडी देती है।

उपाय भी ज्ञात हैं। मुख्य रूप से कुशल और विश्वसनीय इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों को प्रोत्साहन देने के स्थान पर पुनर्वितरण (जैसे मुफ्त पानी या बिजली) पर ध्यान को आंशिक रूप से हटाने की आवश्यकता है। लक्षित समूहों के लिए नकद हस्तांतरण – उदाहरण के लिए जैम (जन-धन-आधार-मोबाइल), किसानों के लिए नकद हस्तांतरण - की दिशा में अपनी पहलकदमियों के साथ भारत की विकसित हो रही सामाजिक सुरक्षा संरचना, सरकारों को महिला नीत परिवारों, किसानों और गरीबों की आय का विश्वसनीय एवं सीधे तौर पर समर्थन करने की अनुमति देती है। इस दृष्टिकोण को कुछ उपयोगकर्ता शुल्क सब्सिडी के साथ जोड़ने - लेकिन अब समानांतर सामाजिक सुरक्षा संरचना के कारण अधिक लक्षित होकर - और इसे सेवा वितरण सुधार से जोड़ने से पेचीदा गुत्थी को हल करने में मदद मिलती है। इस प्रकार एक सामाजिक सुरक्षा संरचना इंफ्रास्ट्रक्चर  की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इंफ्रास्ट्रक्चर और जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन और इंफ्रास्ट्रक्चर  के वित्तपोषण के बीच संबंध पर एक अलग चर्चा और विश्लेषण की आवश्यकता है। फिलहाल यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि आज के जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, इंफ्रास्ट्रक्चर  से जुड़े  मानक, प्रौद्योगिकी और नियम-कायदे तेजी से बदल रहे हैं और वित्त पोषण भी उसी के अनुसार बदलेगा। पूंजी बाजार लचीले इंफ्रास्ट्रक्चर  में निवेश की पैरवी करेंगे। सरकारें जलवायु अक्षम इंफ्रास्ट्रक्चर  पर कर लगा रही हैं, जिससे पुरानी शैली के इंफ्रास्ट्रक्चर  के लिए पूंजी बाजार तक पहुंचने के लिए पर्याप्त मार्जिन बनाए रखना कठिन हो गया है। परिणामस्वरूप, बुनियादी ढांचा, जो जलवायु के अनुकूल नहीं है, में निवेश के लिए वित्त प्राप्त करना महंगा होगा।

 "हरित वित्तपोषण" के संदर्भ में उभर रहे विभिन्न तंत्रों के अनुकूल बनने एवं परिवर्तन करने और लाभ प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की इंफ्रास्ट्रक्चर एजेंसियों को दायरा बढ़ाने और लचीला बनने की अनुमति देना आवश्यक है। इसलिए इस नोट में परिभाषित विश्वसनीय  इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां आज की जलवायु परिवर्तन की स्थिति में और भी महत्वपूर्ण हैं। भारत में, उदाहरण के लिए, सरकार के 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए कुशल एवं व्यवहार्य डिस्कॉम आवश्यक हैं। इसलिए एक ऐसी दुनिया, जहां सतत, आर्थिक विकास के लिए हरित इंफ्रास्ट्रक्चर अब महत्वपूर्ण है, के लिए प्रभावी और ऋण योग्य इंफ्रास्ट्रक्चर संस्थान एक पूर्व योग्यता है।

निष्कर्ष

तो  हां, इंफ्रास्ट्रक्चर  पर खर्च विकास को कई गुना बढ़ावा देगा । यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इन निवेशों को वित्तीय बाजारों का लाभ उठाकर वित्तपोषित किया जाता है और इसे ऋण योग्य इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों द्वारा किया जाता है।

यह जहां तकनीकी रूप से संभव है, वहीं इस दृष्टिकोण के कार्यान्वयन के लिए सक्रिय राजनीतिक निगहबानी की आवश्यकता होगी। कीमतों का पुनर्गठन करना होगा; सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच भूमिकाओं और जिम्मेदारियों की फिर से कल्पना करनी होगी; और सार्वजनिक नीतियों को बाजार का लाभ उठाने के दृष्टि से बनाना होगा।

एक नई सामाजिक सुरक्षा संरचना की उपलब्धता, एक वैश्विक स्तर की आईटी प्रणाली, और इंफ्रास्ट्रक्चर  के प्रबंधन में भारत का अतीत और वर्तमान अनुभव भारत को इस बात पर पुनर्विचार करने की क्षमता प्रदान करता है कि कैसे इंफ्रास्ट्रक्चर  का लाभ बड़े पैमाने पर दिया जा सकता है। जलवायु संबंधी विचार इस अनिवार्यता को और बढ़ाते हैं। अंतत:, भारत को कंपनी कानून के तहत आधुनिक सेवा उपक्रमों के रूप में तैयार की गई इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों की एक नई श्रेणी की जरूरत है, जो सरकार से मिलने वाले किसी भी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोत्साहन के साथ ही वित्तीय बाजारों तक पहुंचने में सक्षम हों। इस संदर्भ में डीएफआई की अगली पीढ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

लेख मूल रूप से ndtv.com पर 5 फरवरी, 2022 को प्रकाशित हुआ था।

Api
Api