मुख्य कहानी

भविष्य की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्थाः भारत में तकनीकी शिक्षा का स्वरूप बदलते हुए

18 मार्च, 2010


मार्च 18, 2010 - भारत की तकनीकी संस्थाएं विश्व के सर्वोत्तम और होनहार छात्रों को आकर्षित करती हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान विश्व प्रसिद्ध हैं और उनके स्नातक दुनिया की अग्रणी कंपनियों में पदस्थ हैं। लेकिन ये सर्वोत्कृष्ट संस्थाएं केवल 1% से भी कम पात्र छात्रों को उपलब्ध हैं।

भारत के अन्य 25 लाख तकनीकी तथा इंजीनियरिंग छात्रों में से कई को समान दर्जे की पढाई हासिल नहीं हो पाती। उनके पास अक्सर अपेक्षापूर्ण वातावरण में सफल होने की कुशलता - जैसे रचनात्मकता, असल जिंदगी की समस्याएं सुलझाने की क्षमता, संवाद क्षमता, व्यक्तिशः और समूहगत कुशलताएं - नहीं होतीं।

सॉफ्टवेयर और आईटी सेवाओं में भारत द्वारा क्रांति के साथ विश्व स्तरीय इंजीनियर और तकनीशियनों के लिए मांग में भारी वृद्धि हुई है। भारत में आवश्यक कुशलता रखने वाले कर्मियों की कमी को देखते हुए अपनी तकनीकी और इंजीनियरिंग शिक्षा को विश्व स्तर पर और प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए अद्यतन कर अपनी अर्थव्यवस्था को आधुनिक कर लेने की असीम संभावनाएं हैं।

बेहतर नौकरियों के लिए बेहतर कुशलता

विश्व बैंक द्वारा मदद प्राप्त तकनीकी तथा इंजीनियरिंग शिक्षा गुणवत्ता सुधार परियोजना (टीईक्यूआईपी) की संकल्पना भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत की गई थी जिसका उद्देश्य है एक तेजी से बदलते आर्थिक एवं तकनीकी वातावरण के परिप्रेक्ष्य में तकनीकी शिक्षा का दर्जा सुधारना और शिक्षण संस्थाओं की क्षमता बढाना।

टीईक्यूआईपी भारत में उच्च शिक्षा में मजबूती लाने का विश्व बैंक का पहला प्रयास है। ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूती से आगे बढाने के लिए विश्वस्तरीय पेशेवरों का समूह तैयार करने के भारत सरकार के उद्देश्य के दृष्टिगत बनाई गई यह परियोजना आशातीत रूप से सफल रही है। 127 तकनीकी शिक्षा संस्थाओं - निजी तथा सरकारी दोनों - ने शैक्षणिक स्वायत्तता और उत्तरदायित्व को बढावा देने वाले सुधार लागू कर कार्यक्रम में शामिल होने की पात्रता अर्जित की।

परियोजना ने दोहरा मार्ग अपनायाः (1) शैक्षणिक उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करना और (2) तकनीकी शिक्षा प्रणाली में एक आधुनिक प्रबंधन शैली को बढावा देना।

शैक्षणिक उत्कृष्टता

2009 में परियोजना के अंत तक मदद प्राप्त संस्थाओं में से 60% से अधिक ने खासी शैक्षणिक स्वायत्तता पा ली थी। इस नए अधिकार की सहायता से ये संस्थाएं शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल करने की ओर लंबे कदम बढा सकेंगी, खास तौर परः

  • विशेष योग्यता सहित स्नातक छात्रों में 15% वृद्धि।
  • संबंधित नौकरी पाने वाले स्नातकों में 50% वृद्धि।
  • प्रकाशन, पेटेंट तथा संशोधन एवं विकास सहित व्यावसायिक कार्यों में आश्चर्यजनक वृद्धि।
  • 30000 से अधिक शिक्षकों को शिक्षण कुशलता बढाने के लिए व्यावसायिक विकास प्राप्त करने का मौका मिला।
  • कई नए पाठ्यक्रम लाए गए और वर्तमान पाठ्यक्रमों का आधुनिकीकरण किया गया ताकि वे उद्योगों की बदलती ज़रूरतों के मुताबिक चल कर संबंधित कुशलता प्राप्त छात्र तैयार कर सकें।
  • संस्थाओं तथा व्यापक तकनीकी समुदाय के संबंधों का पुनरुज्जीवन किया गया।
  • 20000 से अधिक सुविधा-वंचित छात्रों की मदद की गई।

भविष्य के लिए इंजीनिरिंग

इन 127 तकनीकी संस्थाओँ में से कई ने अपनी पुरानी कठोर विचार-पद्धती से नाता तोड दिया है। प्रभावी प्रशिक्षण एवं विकास से जुडी स्वायत्तता ने इन संस्थाओं में तेजी से और टिकाऊ सुधार किये हैं।

फिर भी, बहुत कुछ बाकी है। भारत की अनुमानित 2400 तकनीकी और इंजीनियरिंग संस्थाओं में से केवल 4% स्व्यत्त हैं। टीईक्यूआईपी के अगले चरण में परियोजना का पैमाना बडा किया जाएगा जिससे आर्थिक रूप से पिछडे राज्य भी इसमें शामिल हो सकेंगे और शिक्षकों के विकास, स्नातकोत्तर शिक्षा तथा आविष्कार पर ज़ोर दिया जाता रहेगा।

विश्व बैंक की भूमिका

विश्व बैंक ने टीईक्यूआईपी के पहले चरण में 25 अरब डॉलर का निवेश किया था। परियोजना अवधी के पश्चात वित्त व्यवस्था जारी रखने के लिए अधिकांश संस्थाओं ने चार महत्वपूर्ण कोष स्थापित किएः संस्थागत, कर्मचारी विकास, अवमूल्यन तथा रखरखाव। विश्व बैंक ने केन्द्र तथा राज्य सरकारों को विकेन्द्रीकरण, सुधार कार्यान्वयन तथा कार्यप्रदर्शन पर देखरेख तथा मूल्यांकन पर सलाह दी है।

विश्व बैंक द्वारा दी गई 30 अरब डॉलर की अतिरिक्त मदद देशभर में तकनीकी शिक्षा का स्तर सुधारने में योगदान देगी। यह दो क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करेगीः योग्यता-प्राप्त शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए स्नातकोत्तर छात्रों की संख्या में वृद्धि, तथा उद्योगों की मदद से संशोधन तथा विकास को बढावा।


Api
Api

Welcome