प्रेस विज्ञप्ति

भारत की हिमाचल प्रदेश मध्य-हिमालयीन जल विभाजक क्षेत्र विकास परियोजना को 3.7 करोड डॉलर की अतिरिक्त आर्थिक मदद - 18000 किसान परिवारों को होगा फायदा

27 सितंबर, 2012




यह परियोजना जल विभाजक क्षेत्र विकास को 102 अतिरिक्त ग्राम पंचायतों तक ले जाएगी, जिससे हिमाचल प्रदेश के 10 जिलों की 700 से अधिक ग्राम पंचायतों में पानी की अधिकतम उपलब्धता सुनिश्चित होगी

वॉशिंगटन, सितंबर 27, 2012 - प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश में टिकाऊ जल विभाजक क्षेत्र विकास मॉडल बनाने के लिए राज्य सरकार की मदद हेतु आज विश्व बैंक ने पहले से चल रही हिमाचल प्रदेश मध्य-हिमालयीन जल विभाजक क्षेत्र विकास परियोजना के लिए 3.7 करोड डॉलर की अतिरिक्त आर्थिक मदद को मंजूरी दी.

6 करोड डॉलर लागत वाली मूल  मध्य-हिमालयीन जल विभाजक क्षेत्र विकास परियोजना का लक्ष्य था प्राकृतिक संसाधनों के भंडार में आ रही कमी को रोकना, उत्पादकता बढाना, और ग्रामीण परिवारों की आय बढाना. परियोजना के तहत अब तक 6151 जल संधारण तालाब, 1093 जलाशय/तालाब, 287 बांध, 263 उदंचन/गुरुत्व सिंचाई योजनाएँ, 43 छोटे भूमिगत तालाब - जो सिंचाई के काम आते हैं और जिन्हें माकोवाल संरचना भी कहा जाता है - और 203 कि.मी. सिंचाई नालियाँ बनाई जा चुकी हैं. इन निर्माणों के फायदे लगभग 100,000 परिवारों तक पहुँच चुके हैं.

इस जारी परियोजना ने जल विभाजक क्षेत्र प्रबंधन तकनीक के जरिए करीब 9,000 हेक्टेयर वर्षा-निर्भर भूमि को सिंचित भूमि में बदल दिया है. एक मध्यावधि सर्वेक्षण (नवंबर 9-18, 2009) में पाया गया कि चावल (236 प्रतिशत), मक्का (163 प्रतिशत) और गेहूँ (90 प्रतिशत) की पैदावार में बढोत्तरी हुई है, जो परियोजना के अंतिम लक्ष्य (50 प्रतिशत) से अधिक थी. दुग्ध उत्पादन में 11 प्रतिशत बढोत्तरी हुई.

मध्यावधि सर्वेक्षण में, कुल पारिवारिक आय में 13 प्रतिशत बढोत्तरी देखी गई. इसका प्रमुख कारण मानी जा रही हैं परियोजना की विस्तार सेवाएँ, खासकर उन्नत कृषि उत्पादन तकनीकें और बाज़ारों से जुडाव. सब्ज़ियाँ और मसालों जैसी उच्च-मूल्य फसलें लगाने और बेचने से करीब 10,000 किसानों को लाभ पहुँचा है. परियोजना ने 1,500 किसानों को दुग्ध संगठन से जोडा है और दुग्ध शीतक संयंत्रों से उनके संबंध जोडे हैं.

अतिरिक्त निधि वर्तमान 704 पंचायतों में समीप की 102 ग्राम पंचायतों को जोडकर मूल परियोजना के कुछ फायदों को मजबूत बनाएगी; ये पंचायतें उसी सूक्ष्म जलग्रहण क्षेत्र में स्थित हैं जहाँ परियोजना कार्यरत है, लेकिन वे जारी परियोजना में शामिल नहीं थीं; परियोजना उन क्षेत्रों में ड्रेनेज लाइन विकास को मजबूत करेगी जो पहले से विकसित हो रही ड्रेनेज लाइन के दायरे में आते हैं; कुछ ऐसे कृषि-व्यवसायों को मजबूती प्रदान करेगी जो अन्य परियोजनाओं में दोहराए जा सकते हैं; और कीमतें बढने की वजह से आई लागत वृद्धि को आर्थिक मदद देगी. एक ही नदी घाटी में स्थित पंचायतों के लिए ऐसे अतिरिक्त जल विभाजक क्षेत्र विकास से अधिक प्रभाव पडना और क्षेत्र में जल विद्युत का दीर्घकाल टिकाऊ बने रहना अपेक्षित है.

"वर्तमान परियोजना ने अपने वांछित लक्ष्यों की राह में कई मील के पत्थर पार कर लिए हैं. हमें उम्मीद है कि हिमाचल प्रदेश के लिए यह अतिरिक्त निधि राज्य के प्राकृतिक संसाधन भंडार के संवर्धन में मददगार साबित होगी और वर्षा-निर्भर क्षेत्रों के लोगों के निर्वाह में योगदान देगी," भारत में विश्व बैंक के राष्ट्रीय निर्देशक श्री ओन्नो रुहल ने कहा.

इस परियोजना में उत्पादक कंपनियाँ कृषि उत्पादों का महत्व बढाएँगीं और अपनी विपणन क्षमता में सुधार लाएँगीं. चक्रित निधियाँ छोटे किसानों और उनके समूहों को मशीनरी, उपकरण और निवेश पर नफा उत्पन्न करने वाले उपायों के लिए पूंजी उपलब्ध कराएँगीं, जिससे वे इन्हीं मदों में पुनः निवेश कर पुनः लाभ अर्जित कर सकें. क्षरण और पानी के व्यर्थ बह जाने में कमी हेतु छोटे बांध, वृक्षारोपण,, जल संधारण संरचनाओं का निर्माण, और संपूर्ण जल संतुलन प्रबंधन के लिए निगरानी सिस्टम की स्थापना, आदि उपाय पानी की उपलब्धता बढाएँगे, सिंचाई में तेजी लाएँगे, और इस प्रकार किसानों की आय में वृद्धि करेंगे. कृमि खाद और अन्य टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ मिट्टी में जैविक अंश बढाएँगीं और कृषि को लाभप्रद और उत्पादक बनाने की दृष्टि से मिट्टी की जलग्रहण क्षमता बढाएँगीं.

"हालाँकि यह परियोजना वर्तमान में जारी परियोजना के ही तरीके और कार्यनीतियाँ अपनाएगी, हमें आशा है कि नई गतिविधियों पर ध्यान केन्द्रित करने से आय में मजबूती आएगी और राज्य के लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढेंगे," प्रमुख ग्रामीण विकास विशेषज्ञ और परियोजना के कार्यदल प्रमुख नॉर्मन पिचिओनी ने कहा. "अतिरिक्त ग्राम पंचायतों को शामिल करने से हम समीपस्थ ग्राम पंचायतों और ड्रेनेज लाइनों का विकास भी कर सकेंगे, जिससे जल स्त्रोतों के किनारे पानी का सुयोग्य वितरण संभव हो सकेगा," उन्होंने आगे कहा.

परियोजना के लिए निधि अंतरराष्ट्रीय विकास संगठन (IDA)  से ऋण के जरिए आएगा. IDA विश्व बैंक की छूटयुक्त ऋण शाखा है जो 25 वर्ष की अवधि और पाँच वर्ष की ग्रेस अवधि सहित ब्याज-मुक्त ऋण उपलब्ध कराती है.

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में भारत
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प्रेस विज्ञप्ति नं:
2012/087/SAR

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