मुख्य कहानी3 सितंबर, 2025

झारखंड की महिलाओं में निवेश

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फ़ोटो क्रेडिट: एफ़एओ (FAO)

झारखंड 'वनों की भूमि' होने के अलावा विरोधाभासों की भी भूमि है। पूर्वी भारत के इस हिस्से की मिट्टी खनिज से समृद्ध है, खेती के लिए उपजाऊ है। लेकिन अस्थिर मानसून और सूखे की वजह से ये सारी संभावनाएं धरी की धरी रह जाती हैं।

राज्य में कई गांव दूरस्थ इलाकों में हैं, जहां किसान बेहद सीमित संसाधनों और पुराने कृषिगत औजारों के साथ छोटी सी खेतिहर ज़मीन पर महज़ निर्वाह लायक खेती करते हैं। गांव वाले सिर पर सब्ज़ियों और लकड़ियों का गट्ठर उठाए खेतों के बीच संकरी पगडंडियों पर चलते हैं, और ज़मीन से ही अपनी आजीविका कमाते हैं।

झारखंड के गुमला जिले में, एक छोटे से सामुदायिक केंद्र पर बड़ी चहल-पहल है। अंदर, सभी उम्र की औरतें, जिनमें से कुछ औरतों की गोद में बच्चे हैं, यहां एक उत्पादक समूह की बैठक के लिए इकट्ठा हुई हैं।

बाहर, चारों तरफ़ बैंगन, दालों और टमाटरों की हरी-भरी कतारों के खेत दिखाई देते हैं, जो इन महिलाओं की कड़ी मेहनत की गवाही देते हैं। ये महिलाएं अपनी सब्ज़ियों को बाज़ार तक पहुंचाने की रणनीतियों पर चर्चा कर रही हैं। ये फसलें योजनाबद्ध तरीके से लगाई गई हैं ताकि जब सोहराय आए तो भोज एवं अनुष्ठानों के लिए इनकी आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। सोहराय फसल कटाई का एक उत्सव है जिसे अक्टूबर-नवंबर के महीने में मनाया जाता है।

इन महिलाओं के लिए यह बैठक केवल फसल कटाई के लिए नहीं है, बल्कि एक सुरक्षित और मज़बूत भविष्य का सपना लिए वे यहां इकट्ठा हुई हैं।

राज्य भर के क़रीब 2 लाख परिवारों की तरह, ये औरतें 'जोहार' (झारखंड ऑपर्च्युनिटीज फॉर हार्नेसिंग रूरल ग्रोथ) कार्यक्रम के ज़रिए अपनी आजीविका में बदलाव ला रही हैं।

इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने से लेकर उसके कार्यान्वयन में सहयोग देने तक, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के इन्वेस्टमेंट सेंटर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस सहयोग के तहत कृषि प्रौद्योगिकी में निवेश किया गया और महिलाओं की बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित कर उन्हें सशक्त बनाया गया है।

झारखंड सरकार के ग्रामीण विभाग के नेतृत्व में झारखंड राज्य आजीविका संवर्धन समाज (जेएसएलपीएस) के तहत कार्यान्वित किए जा रहे जोहार कार्यक्रम की मदद से 1.5 लाख से ज्यादा परिवार निर्वाह लायक धान की खेती छोड़कर उच्च मूल्य वाली कृषि की ओर मुड़ चुके हैं। इस कार्यक्रम को विश्व बैंक का वित्तीय समर्थन प्राप्त है।

अब ये परिवार लाभदायक फसलें जैसे फल और सब्जियां उगाते हैं और साथ ही पशुपालन से भी आय अर्जित करते हैं। इनमें से कई परिवारों की आमदनी में 35 प्रतिशत से अधिक का इज़ाफ़ा हुआ है।

यह जोहार कार्यक्रम की ही बदौलत है कि सिर्फ़ चार सालों में महिला नेतृत्व वाले 21 किसान उत्पादक संगठनों ने लगभग 2.1 करोड़ डॉलर का कारोबार किया है, जिनसे क़रीब 4000 उत्पादक समूह से जुड़े हुए हैं। किसानों को इसका सीधा फायदा हुआ है। वे खुले बाज़ार से भी कम कीमत पर कृषि सामग्री खरीदते हैं और अपनी उपज किसान उत्पादक संगठनों को बेचकर बेहतर लाभ कमाते हैं।

इन उत्पादक समूहों की औरतों के लिए इसका मतलब है कि उनके बच्चे स्कूल जा सकते हैं और उनकी आजीविका और सुरक्षित हो गई है। उनकी सफलता हमें यह बताती है कि झारखंड के किसानों को अगर सही संसाधन मिलें तो वे कृषि में परिवर्तनकारी बदलाव की ताकत रखते हैं।

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आशा देवी इन्हीं महिलाओं में से एक है, जो अब कांके उत्पादक समूह की अध्यक्ष हैं।

फ़ोटो क्रेडिट: एफ़एओ (FAO)

आशा देवी बताती हैं, “मेरी शादी बहुत कम उम्र में हो गई थी और मैं घर पर ही रहती थी। हम पुराने तरीक़े से खेती करते थे और सिर्फ़ परिवार के गुज़ारे लायक थोड़ी बहुत उपज उगाते थे। बाज़ार में बेचने के लिए कुछ भी नहीं बचता था।”

लेकिन जब वे जोहार कार्यक्रम के तहत बने कांके उत्पादक समूह से जुड़ीं तो उन्हें दूसरे किसानों के साथ मिलकर खेती करने और उपज को सम्मिलित रूप से बेचने का अवसर दिखाई दिया। इससे बिखरी हुई छोटी-छोटी खेती की जमीनों और मशीनीकरण जैसी चुनौतियों का सामना करना संभव हुआ।

साथ ही, कांके उत्पादक समूह को जोहार से वित्तीय सहयोग एवं समर्थन मिला ताकि वे उच्च मूल्य वाली कृषि विकसित कर सकें। इसके ज़रिए उन्हें बेहतर उपकरण और आधुनिक तकनीकों तक पहुंच मिली।

छोटे किसान जोहार से जुड़े डिजिटल कृषि केंद्रों से कृषि उपकरण एवं मशीनें किफायती दामों पर किराए पर ले सकते हैं। साथ ही, इन 'वन स्टॉप शॉप' कृषि  बाज़ारों से उन्हें गुणवत्तापूर्ण बीज, खाद और दूसरे उपकरण भी मिल जाते हैं जिससे उन्हें उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है।

इस कार्यक्रम के तहत एक डिजिटल मोबाइल ऐप को भी विकसित किया गया जो किसानों को फसल की योजना बनाने, निगरानी करने और कीट-रोग संबंधी जानकारियां देने जैसी सुविधाएं देता है। साथ ही, कार्यक्रम के तहत एक कॉल सेंटर भी स्थापित किया गया है जो विशेषज्ञ सहायता, शिकायत निवारण एवं वित्तीय सहायता से जुड़ी जानकारियां समय पर उपलब्ध कराता है।

जैसे-जैसे कारोबार बढ़ा, आशा ने अपने उत्पादक समूह का नेतृत्व संभाल लिया। बेरो और मंदर ज़िलों की अन्य महिला नेताओं के साथ मिलकर उन्होंने किसानों की बाज़ार तक बेहतर पहुंच बढ़ाने और कृषि व्यापार में विकास की ज़रूरत को पहचाना।

किसान उत्पादक संगठन से जुड़ी अपनी विशेषज्ञता के आधार पर उत्साहित होकर उन्होंने झारखंड सरकार के सहयोग से सरहुल आजीविका फ़ार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड की स्थापना की, जिसमें विश्व बैंक ने भी वित्तीय योगदान दिया। यह एक सहकारी संस्था है, जहाँ उत्पादक समूह योजनाबद्ध तरीके से कृषि उत्पादन के लिए एकजुट होकर काम करते हैं, ताकि समय का सही उपयोग करते हुए अपने उत्पादों की बाज़ार तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित कर सकें।

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महिला नेताओं के नेतृत्व में सरहुल ने काफ़ी तरक्की की है। आज इस कंपनी में 14,000 से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई हैं, और हर महिला की इसमें वित्तीय हिस्सेदारी है।

आशा और उनके जैसी अन्य महिला नेताओं के नेतृत्व में सरहुल ने उल्लेखनीय प्रगति की है। अब इस कंपनी में 14,000 से अधिक महिलाएं शामिल हैं, और प्रत्येक की इसमें वित्तीय हिस्सेदारी है।

आशा उत्साहित होकर कहती हैं, “आज हम अपने कारोबार की हर बात समझते हैं। चाहे मुनाफे से जुड़ी कोई बात हो या फिर ये कि इस समय स्थानीय बाज़ार में किन उत्पादों की मांग है। हमने बेहतर कीमतों के लिए सौदा करना सीख लिया है और हम जानते हैं कि हमें कम दामों पर समझौता करने की कोई ज़रूरत नहीं।”

इन सभी कौशलों के बूते आशा और दूसरी महिला किसान आर्थिक रूप से सक्षम बन पाई हैं। वह कहती हैं, “आज हमारे बच्चे कहते हैं कि उनकी मां उद्यमी हैं, और यही हमारे लिए सबसे बड़ा इनाम है।”

उत्पादन से बिक्री तक हर स्तर पर मौजूद सहायता

सरहुल के सीईओ संजीव कुमार व्यापार के विकास और उसकी संभावनाओं पर बात करते हैं। वे कहते हैं, “हम महिला-नेतृत्व वाले कारोबारों का समर्थन कर रहे हैं और बाज़ार पर नज़र रख रहे हैं। 2019 में हमारा सिर्फ़ 2 लाख रुपए (2300 डॉलर) का कारोबार था। 2023 में ये बढ़कर 2.5 करोड़ रुपए (2.9 लाख डॉलर) हो गया, और आज हमारा कारोबार जल्दी 3.5 करोड़ रुपए (4 लाख डॉलर) के पार चला जाएगा। आप समझिए कि ये 180 प्रतिशत से ज़्यादा की बढ़त है!”

झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के सचिव के श्रीनिवासन कहते हैं कि यह पूरी सफलता जोहार कार्यक्रम की एकीकृत मूल्य श्रृंखला पद्धति की वजह से संभव हुई है। इसका मतलब है कि जोहार ने कृषि से जुड़ी हर ज़रूरी चीज़, बीज, तकनीक, प्रशिक्षण, बाज़ार तक पहुंच, को एक साथ जोड़कर काम किया, और इसी वजह से इतना बड़ा बदलाव आया।

वे कहते हैं, “जोहार ने गांव की महिलाओं को आधुनिक कृषि तकनीकों और प्रसंस्करण तरीकों से परिचित कराया है। इनमें से कई आदिवासी महिलाएं हैं, और कुछ के पास ज़मीन भी नहीं थी। अब वे अपनी उपज सफलतापूर्वक बाज़ार तक ला रही हैं, जिससे उनके परिवार की आमदनी बढ़ रही है। हमने यहां पूरी मूल्य श्रृंखला में उल्लेखनीय नतीजे देखे हैं।”

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कारोबार निर्माण

रामगढ़ जिले के पतरातू शहर में एक भीड़-भाड़ वाले इलाके में बने एक एग्री मार्ट में काफ़ी चहल-पहल देखी जा सकती है। यहां मैनेजर दीपक कुमार अपने उत्पाद दिखाते हुए कहते हैं, “मैं सभी ब्लॉक में अपने कृषि उत्पादों की आपूर्ति करता हूं। किसान यहां किफ़ायती दामों में उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद लेने आते हैं, जिसमें केंचुए से बनी खाद और नए तरह के कीट नियंत्रण उपाय जैसे फेरोमोन ट्रैप, स्टिकी ट्रैप और लेमनग्रास स्प्रे शामिल हैं।”

जेएसएलपीएस के कार्यवाहक जोहार परियोजना निदेशक दीपक उपाध्याय कहते हैं, “जब हमने यहां उच्च मूल्य वाली कृषि की शुरुआत की तो हमें बेहतर कृषि सामग्री की ज़रूरत महसूस हुई। हमने यहां स्थानीय कृषि बाज़ार स्थापित किए, फिर उत्पादकता बढ़ाने के लिए पौधशालाएं बनाईं, साथ ही समय पर फसल कटाई के लिए बुनियादी सुविधाएं भी खड़ी कीं।”

अब यहां 550 से ज़्यादा पौधशाला केंद्र और पॉली-हाउस नर्सरी (पॉलीथीन की चादरों से ढकी संरचना होती है, जो आंतरिक जलवायु को नियंत्रित करती है, जिससे बेमौसम फूल, सब्जियां और अन्य पौधे उगाए जा सकते हैं), जिन्हें महिला उद्यमी चला रही हैं। समूह के सदस्य एवं आस-पास गांवों के किसान यहां से पौधे लेकर अपने खेतों में लगाए हैं जिससे गांवों में कई छोटे-मोटे व्यवसायों को फलने फूलने में मदद मिली है।

साथ ही, पहली बार सिंचाई की सुविधा भी दी गई, जहां कई किसान सोलर पंप का इस्तेमाल कर रहे हैं। जल उपयोगकर्ता समूह बनाए गए, जिससे 60,000 से ज़्यादा परिवारों को फायदा हुआ। दीपक उपाध्याय ने कहा, “सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई पद्धति कृषि के लिहाज़ से क्रांतिकारी है। इसकी पहुँच सुनिश्चित करने के लिए हमने ट्राइसाइकिल पर लगे पंप बनाए, जिससे महिला किसान आसानी से अपने खेतों तक पानी ले जा सकती हैं।”

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कार्यक्रम ने मुर्गी और बकरी पालन करने वाले किसानों को भी विशेष मदद दी है। इसके तहत 1500 से अधिक पशु सखियों (गांवों में पशु-पालन से जुड़ी सेवाएं प्रदान करने के लिए तैनात की गई महिलाकर्मी) को प्रशिक्षण दिया गया है। ये महिला किसानों को पशु-पालन से जुड़ी तकनीकी जानकारी, कारोबार एवं बाज़ार संबंधी सलाहें देती हैं।

भारत के एग्रीकल्चर सेक्टर स्किल्स काउंसिल द्वारा प्रशिक्षित ये पशु सखियां किसानों को खेती और पशुपालन में मदद करती हैं। ये उन्हें बीजों के चयन, खाद, उत्पादन और बिक्री के तरीकों, बीमा और निगरानी जैसे मामलों में सलाह देती हैं। इन्हें पशुपालन, सब्ज़ी उगाने, मछली पालन और अन्य वन्य उत्पादों के बारे में अच्छी जानकारी है।

सचिव के श्रीनिवासन ने कहा, “कृषि समुदाय से जुड़े लोग महत्वपूर्ण ज्ञान और मदद देते हैं, जिससे फसल की उत्पादकता बढ़ती है और मूल्य श्रृंखलाएं मजबूत होती हैं।”

पशुपालन में निवेश

आशा के घर के पास कांके में मलसिरिंग नाम का आदिवासी गांव है, जहाँ धर्मी देवी रहती हैं। यह गांव छोटे किसानों का है और कई घर मिट्टी और खपरैल के बने हैं।धर्मी को आर्थिक मुश्किलों की वजह से अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन आज वह अपने घर के पिछवाड़े में मुर्गियां पाल रही हैं। उन्होंने आशा देवी के साथ मिलकर सरहुल की सह-निदेशक का पद संभाला है।

गांव वालों ने उन्हें ग्राम पंचायत का अध्यक्ष भी चुना है। धर्मी कहती हैं, “यह किसी सपने जैसा है, लेकिन यही हकीकत है।”

सरहुल के जरिए धर्मी और उनके जैसे अन्य उत्पादक समूहों को 30 मुर्गियां दी गईं। यह छोटी शुरुआत थी, जिसे मलसिरिंग की महिला किसानों ने एक सफल व्यवसाय में बदल दिया।

धर्मी बताती हैं, “हमने पहली खेप बेची और 10,000 रुपए (110 डॉलर) का मुनाफ़ा कमाया। इससे मुझे प्रेरणा मिली कि मैं और निवेश करूँ, 100 और मुर्गियां खरीदूं और मुनाफ़ा दोगुना करूँ। सरहुल बिक्री और बाज़ार तक ट्रांसपोर्ट का प्रबंध करता है।”

झारखंड में 65,000 से ज्यादा परिवारों ने पशुपालन और मूल्य श्रृंखला में निवेश का लाभ उठाया है, जिसमें वाणिज्यिक पोल्ट्री पालन भी शामिल है। धर्मी जैसे उत्पादकों की आय अब लगभग 800 रुपए (10 डॉलर) से बढ़कर 72,000 रुपए (840 डॉलर) हो गई है। यानी आमदनी में 84 गुना बढ़ोतरी हुई है।

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निवेश का विस्तार

धर्मी की मुर्गियां रांची के पास दिव्यांश एग्रो पोल्ट्री हैचरी में पैदा हुई थीं, जहां अंडों को सेने के लिए कई इनक्यूबेटर लगे हैं, जहां तापमान और नमी के स्तर को सावधानी से नियंत्रित किया गया है ताकि उन अंडों से स्वस्थ चूज़े बाहर आएं। हैचरी में चूज़ों के चहकने की आवाज़ आती रहती है और उन्हें सही पोषण देने के साथ-साथ टीके भी लगाए जाते हैं ताकि उन्हें स्वस्थ जीवन मिले।

यह हैचरी धर्मी जैसे घर के पीछे के आँगन  में मुर्गियां पालने वाले किसानों के लिए बहुत अहम है। धर्मी और आसपास के गाँवों के अन्य मुर्गी पालक यहां से चूजों के बॉक्स लेकर अपने घर  में पालते हैं, जब तक कि वे बाज़ार में बेचने लायक न हो जाएं।

दिव्यांश एग्रो पोल्ट्री हैचरी के सीईओ विकास कुमार चौधरी बताते हैं, “हमारा मिशन हमेशा से गांव के लोगों की मदद करना रहा है। जब हमने 2021 में अपना ये काम शुरू किया था तब हम हर हफ़्ते क़रीब 10,000 चूजे बेचा करते थे। लेकिन जोहार से जुड़ने के बाद मांग काफ़ी बढ़ गई और हमने अपनी क्षमता बढ़ाकर प्रति सप्ताह 1 लाख चूज़ों की कर ली। यानी कुछ ही सालों में चूज़ों की बिक्री में 10 गुना वृद्धि हुई है।"

इस हैचरी में घर के पीछे पाली जाने वाली मुर्गी की बेहतरीन नस्लें जैसे सोनाली और क्रॉइलर उपलब्ध हैं, जिनकी ग्रामीण महिला उत्पादकों (जैसे कि धर्मी के समूह में) के बीच अच्छी-ख़ासी मांग है।

विकास कहते हैं, “हमने प्रजनन के तरीकों में काफ़ी सुधार किया है, जिससे अब हम कम समय में ज्यादा से ज्यादा अंडे और मीट का उत्पादन करने में सक्षम हुए हैं।”

विकास को अपने व्यवसाय के लिए निवेश जुटाने में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वे याद करते हैं, “जब हमने शुरुआत की थी, तो कोई भी बैंक हमसे बात करने को तैयार नहीं था। लेकिन जोहार से जुड़ने और उत्पादन में बढ़ोतरी से मांग बढ़ी, और बैंकों ने हमारी तरफ़ ध्यान दिया और  ग्रामीण किसानों की मदद की भावना से प्रेरित होकर विकास ने सौर ऊर्जा आधारित हैचरी मशीन बनाई जो एक बार में 500 अंडों से चूज़े निकाल सकती थी। “मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं चुनौतियों का सामना कर रहा हूं तो ग्रामीण महिला किसान तो और भी बड़ी बाधाओं का सामना कर रही होंगी। यह मशीन किसानों को घर पर ही अंडे सेने और उद्यमी बनने की सुविधा देता है।”

विकास अपनी सफलता का श्रेय जोहार कार्यक्रम से मिले सहयोग को देते हैं। वे कहते हैं, “मुर्गी पालन केंद्र के प्रबंधन और चूजों की गुणवत्ता पर प्रशिक्षण ने हमारी बहुत मदद की। साथ ही, घर में मुर्गी पालन करने वाले उद्यमियों से जुड़ने का अवसर मिला, जिससे हम छोटे व्यवसाय से बड़े आपूर्तिकर्ता बन पाए। अब हमारा कारोबार झारखंड के अलावा दूसरे राज्यों में भी फैला है।”

जोहार के कारण न केवल घर पर मुर्गियां पालने वाले उद्यमियों की संख्या बढ़ी है, बल्कि इसके कारण मुर्गी पालन उद्योग और संगठित हुआ है। औरतें स्वस्थ चूज़े ख़रीद सकती हैं और वाज़िब क़ीमतों पर अपने उत्पाद बेच सकती हैं, जहां कारोबार से हुआ मुनाफ़ा सब में बांटा जाता है।

मुर्गी पालन से जुड़ी सही जानकारी, उपकरण और समय पर टीकाकरण के चलते मुर्गियों की मृत्यु दर भी कम हो गई है। जिसके कारण किसान बड़े स्तर पर अंडे का उत्पादन कर रहे हैं। हर परिवार अब सालाना 90,000 अंडों का उत्पादन कर रहा है, जहां 300 परिवारों से रोज़ाना लगभग 80,000 अंडे इकट्ठा किए जाते हैं और सरहुल के माध्यम से बेचे जाते हैं। इससे उन्हें अपने अंडों के उचित दाम मिल जाते हैं और बाज़ार तक भी उनकी पहुंच आसान हो जाती है।

ये मुर्गी पालन योजनाएं अब सालाना तीस लाख अंडों का उत्पादन कर रही हैं, जो झारखंड के कुल अंडा उत्पादन का लगभग पांच प्रतिशत है। इससे राज्य की आयात पर निर्भरता कम हो रही है। इससे धर्मी जैसे किसानों को न केवल आमदनी के स्तर पर लाभ हुआ है, बल्कि इससे उन्हें बेहतर पोषण और खाद्य सुरक्षा हासिल करने में भी मदद मिली है।

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आदिवासी समुदायों के लिए रोज़गार के अवसर

रांची के पूर्व में स्थित बेरो शहर की जंगली पहाड़ियों में एक लेमनग्रास डिस्टिलेशन फैसिलिटी बहुत सारी गतिविधियों का केंद्र है। एक आदमी भट्टी की तेज़ आग संभाल रहा है, ताकि उसमें से तेल निकाला जा सके। पास में, सुगंधित सूखे लेमनग्रास (नींबू घास) एक ओर पड़े हैं जिन्हें बाद में प्रसंस्कृत किया जाएगा (यानी इनसे तेल निकाला जाएगा)। जबकि औरतें पास के खेतों से ताजी कटी हुई घास का गट्ठर लेकर आ रही हैं। हवा में धरती और नींबू की खुशबू फैली हुई है जहां इस केंद्र पर घास को प्रसंस्कृत कर एक मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित किया जा रहा है।

 सरहुल ने 250 से अधिक आदिवासी महिलाओं का लेमनग्रास उत्पादक समूह स्थापित किया है। ये महिलाएं पहले अनुपजाऊ मानी जाने वाली 70 एकड़ जमीन पर अब लेमनग्रास की खेती कर रही हैं।

जोहार के सहयोग से यहां एक डिस्टिलेशन फैसिलिटी स्थापित की गई, जहां 2023 में 350 लीटर उच्च गुणवत्ता वाले तेल का उत्पादन हुआ। जिसे अब पूरे राज्य में बेचा जा रहा है। झारखंड में जोहार कार्यक्रम के तहत ऐसे पांच केंद्र स्थापित किए गए हैं, जिनसे किसान अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

उत्पादक समूह की सदस्य मिथिला देवी गर्व से इस केंद्र को दिखाते हुए कहती हैं, “पहले हम लेमनग्रास की खेती और उसकी बिक्री का सही तरीका नहीं जानते थे। लेकिन जोहार से जुड़ने के बाद हमें समझ में आया कि इससे हमें अच्छा मुनाफ़ा होगा। यहां तक कि सूखे मौसम में भी। मैं बचपन से गरीबी में जी रही थी, लेकिन अब मुझे काम करने का अवसर मिला है और मैं अन्य महिलाओं को भी सफल होने में मदद कर सकती हूँ।”

झारखंड के ग्रामीण इलाकों में जंगल ही लोगों की आजीविका, ख़ासकर आदिवासी समुदायों के जीवन का बुनियादी आधार हैं। इसलिए सुगंधित पौधों एवं गैर-लकड़ी वन उत्पादों को लगातार इकट्ठा करने से उन्हें अपनी आय को बढ़ाने और जीवन को सुरक्षित बनाने में मदद मिली।

रायडीह के पास एक आदिवासी गांव में महिलाएं लाख की खेती करती हैं। इस  प्राकृतिक रेजिन को लाख जैसे कीड़े पेड़ों पर बनाते हैं। लाख की खेती झारखंड में महिलाएं पीढ़ियों से करती आ रही हैं। जंगल में महिलाएं पेड़ों की रेसिन से ढंकी हुई शाखाओं का निरीक्षण करती हैं। वे कुछ शाखाओं से कीड़े हटाती हैं, तो कुछ में नए कीड़ों को पनपने में मदद करती हैं। जब पेड़ों पर लाख की परत सख़्त हो जाती है तो महिलाएं उसे इकट्ठा करती हैं।

प्रसाधन और औषधि उद्योग में लाख का इस्तेमाल बहुत महत्वपूर्ण है। यह इन दूरदराज के गाँवों के लोगों को स्थिर आमदनी देता है। लाख बदलते मौसम के हिसाब से खुद को ढाल लेता है, जिससे किसानों की आमदनी सुरक्षित रहती है। ख़ासकर सूखे के समय, जब धान जैसी मुख्य फ़सलें खराब हो सकती हैं।

परंपरागत रूप से, यहां के लोग साल के उन महीनों में जंगल उत्पादों पर निर्भर रहते थे जब खेती कमज़ोर होती थी। लेकिन तब उनके पास आधुनिक तकनीक या सुविधाएं नहीं थीं, जिससे वे उसका पूरी तरह लाभ नहीं उठा पाते थे। झारखंड में इन निवेशों की मदद से जंगली संसाधनों, जैसे लाख और लेमनग्रास जैसे वन्य उत्पादों को उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पादों में परिवर्तित किया जा रहा है ताकि इन्हें बाज़ार में बेचकर मुनाफ़ा कमाया जा सके। इसलिए प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किए गए हैं, उत्पादक समूहों को समर्थन दिया गया है और समुदायों को खरीदारों से जोड़ा गया है।

जोहार ने न सिर्फ़ उत्पादकता को बढ़ाने और दूरदराज के इलाकों में उत्तम गुणवत्ता वाले उत्पादों को न केवल तैयार करने में मदद की है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि उत्पादक समूह बाज़ार तक पहुंच सकें। इसके लिए उन्हें बाज़ार की जानकारी और उत्पादन की योजना बनाने में मदद दी जाती है।

अब किसान इस योजना के साथ उत्पादन कर सकते हैं कि किस उत्पाद को कब तैयार करना है, किस बाज़ार में बेचना और किस उत्पाद से उन्हें ज्यादा मुनाफ़ा हो सकता है।

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अवसरों की भूमि

आशा, धर्मी, मिथिला और हज़ारों अन्य महिलाओं की कहानियां इस बात का सबूत हैं कि महिलाओं के कौशल को बढ़ावा देना, उत्पादक समूह बनाना और स्थानीय मूल्य श्रृंखलाओं में निवेश करना किस तरह उनके जीवन और आजीविका में असली बदलाव ला सकता है।

झारखंड में जेएसएलपीएस, खाद्य एवं कृषि संगठन और विश्व बैंक के सहयोग से हजारों महिलाओं ने न केवल अपनी आजीविका में सुधार किया है, बल्कि वे एक ऐसी कृषि-खाद्य प्रणाली विकसित करने में सफ़ल हुई हैं, जो उनके समुदाय के लिए आने वाली पीढ़ियों तक लाभकारी बनी रहेगी।

 

यह कहानी मूल रूप से 25 जून 2025 को एफ़एओ वेबसाइट पर प्रकाशित हुई थी |

This story was originally published on the FAO website on 25 June 2025. 

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