Results Briefs11 जुलाई, 2025

भारत के विद्युत वितरण की विश्वसनीयता, पहुंच और डिजिटलीकरण को पुनः सशक्त करना

The World Bank

Photo Credit: POWERGRID

परिणाम हाइलाइट

  • विश्व बैंक ने देश के तीन परियोजनाओं को वित्तपोषित करके भारत के विद्युत क्षेत्र की सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि विद्युत क्षेत्र अर्थव्यवस्था के लिए विकास का इंजन बनी रहे ।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना ने विद्युत संचरण और वितरण अवसंरचना को उन्नत किया है, जिससे वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2024 तक आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों और समुदायों के लिए बिजली की पहुंच में 51 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और 4.5 करोड़ से अधिक नागरिक लाभान्वित हुए हैं।
  • झारखंड विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना ने अत्याधुनिक मीटरिंग, बिलिंग और संग्रहण प्रणालियों के माध्यम से लगभग 50 लाख उपयोगकर्ताओं के लिए सेवाओं को बेहतर बनाया है, जिससे ग्राहकों की संतुष्टि में वृद्धि हुई है।

विश्व बैंक भारत की विद्युत वितरण प्रणालियों के आधुनिकीकरण की सहायता करता रहा है, जो विद्युत क्षेत्र में दक्षता और विश्वसनीयता में सुधार के लिए आवश्यक ह। साथ ही भारत को यह अपने जलवायु लक्ष्यों और प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भी मदद करता है। भारत का विद्युत क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े और सबसे जटिल क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र में बदलावों के बावजूद, विद्युत संचरण और वितरण इस क्षेत्र की सबसे कमज़ोर कड़ी है, जिससे देश की लगभग 1.4 अरब आबादी के लिए विश्वसनीय, टिकाऊ और किफायती बिजली सुनिश्चित करने की क्षमता को ख़तरा पैदा हो रहा है।
प्रीपेड मीटर प्रणाली के साथ, अब हम अपने राजस्व सृजन में सुधार करने में सक्षम हैं, जिसकी सहायता से हम बाजार से अधिक से अधिक खरीदारी करने में भी सक्षम हैं।
आर. सूडान
प्रबंध निदेशक, एमएसपीडीसीएल, उत्तर पूर्वी क्षेत्र विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना
मैं कह सकता हूं कि आज चौबीस घंटे बिजली उपलब्ध है। यदि बिजली आपूर्ति बेहतर हो जाए, तो विकास गतिविधियां पहले से कहीं बेहतर हो जाएंगी।
डॉ. ठा. धबली सिंह
प्रबंध निदेशक, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, बबीना हेल्थकेयर एंड हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड, इम्फाल, पूर्वोत्तर क्षेत्र विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना

चुनौती

जीवन की गुणवत्ता और आर्थिक विकास बिजली की उपलब्धता पर निर्भर करता है।  बिजली घरों को प्रकाशित करती है, घरेलू उपकरणों को ऊर्जा देती है, और बच्चों को सूर्यास्त के बाद भी पढ़ाई करने में सक्षम बनाती है, जिससे उनके शिक्षा के अवसर, नौकरी की संभावनाएं और अन्य संभावनाएं बढ़ जाती हैं। बिजली किसानों और व्यवसायों को उपकरण चलाने और रोज़गार के अवसर पैदा करने में सक्षम बनाती है; यह जन स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए टीकों और दवाओं के लिए कोल्ड स्टोरेज प्रदान करती है; और यह डिजिटल सेवाओं, परिवहन और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे सहित आवश्यक सेवाओं को शक्ति प्रदान करती है।

बढ़ती आय, यंत्रीकृत कृषि, औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण भारत की ऊर्जा मांग में उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है। साथ ही, भारत सरकार के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के तहत अल्पकालिक 2030 लक्ष्यों में वर्ष 2005 से 2030 तक कार्बन तीव्रता में 45 प्रतिशत की कमी; गैर-जीवाश्म ईंधन से 50 प्रतिशत बिजली उत्पादन क्षमता प्राप्त करना; और स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) उत्पादन क्षमता को 214 गीगावाट (जीडब्ल्यू) से 500 गीगावाट तक करके 135 प्रतिशत बढ़ाना शामिल है।

 

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विश्वसनीय और सस्ती बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करते हुए सशक्त ऊर्जा लक्ष्यों को समर्थन देने के लिए एक मजबूत बिजली संचरण और वितरण प्रणाली आवश्यक है। भारत की सरकारी स्वामित्व वाली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) इस प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालांकि, डिस्कॉम की खराब वित्तीय व्यवहार्यता ऊर्जा लक्ष्यों और नवीकरणीय ऊर्जा परिनियोजन के लिए अत्यधिक जोखिम पैदा करती है, जिससे उनका संयुक्त वार्षिक घाटा  678 अरब रुपये (8.1 अरब डालर) और संचयी ऋण बढ़कर 83.5 अरब डॉलर हो गया है। डिस्कॉम के परिचालन और वित्तीय व्यवस्था में सुधार के उद्देश्य से 1990 के दशक से लागू की गई कई पहलों के बावजूद यह समस्या बनी हुई है। हाल ही में, बढते हुए विविध परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, वितरित नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि, "प्रोस्यूमर" (जो ऊर्जा का उत्पादन और उपभोग दोनों करते हैं) के उद्भव और इलेक्ट्रिक वाहनों की अप्रत्याशित मांग से जटिलताएं उभरी हैं।

डिस्कॉम के लिए आवश्यक प्रमुख सुधारों में : (1) पुराने ग्रिडों का आधुनिकीकरण और नेटवर्क की प्रतिरोढ क्षमता बढ़ाने के लिए बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना, (2) बेहतर टैरिफ़ संरचनाओं और कम घाटे के माध्यम से वित्तीय स्थिरता स्थापित करना, (3) निर्णय लेने के लिए मज़बूत डेटा सिस्टम विकसित करना, (4) कृषि क्षेत्र में बिजली आपूर्ति में दक्षता बढ़ाने के लिए नवीन रणनीतियाँ बनाना, (5) कॉर्पोरेट प्रशासन को मज़बूत करना, (6) उपभोक्ता-केंद्रित सेवा सुधारों का विकास करना, और (7) वितरण नेटवर्क में नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करना शामिल हैं। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए ग्रिड सुरक्षा को मज़बूत करने और उपभोक्ताओं को विश्वसनीय और कार्यक्षम बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु आधुनिक डिजिटल तकनीकों को अपनाना आवश्यक है।

दृष्टिकोण 

चूंकि भारत में बिजली वितरण प्रत्येक राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए विश्व बैंक ने डिस्कॉम्स की दक्षता, विश्वसनीयता और वित्तीय स्थिरता बढ़ाने के लिए न केवल भारत सरकार के साथ, बल्कि राज्यों और क्षेत्रों के साथ भी सहयोग किया है। यह सहयोग नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण को बढ़ावा देता है, बुनियादी ढांचे को मज़बूत करता है, और एक स्वच्छ एवं अधिक उन्नतशील बिजली क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए हरित हाइड्रोजन पहल को आगे बढ़ाता है। डिस्कॉम्स नवीकरणीय ऊर्जा सहित सभी प्रकार की ऊर्जा की खरीद करती हैं और वितरण से राजस्व अर्जित करती हैं; हालांकि, अधिकांश डिस्कॉम को भारी वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ता है। चूंकि बिजली वितरण राज्यों के अधिकार क्षेत्र में है और राज्य सुधार के विभिन्न रास्ते अपनाते हैं, इसलिए पूरे भारत में बिजली वितरण में स्थायी सुधार लाने के लिए राज्य-विशिष्ट चुनौतियों, आवश्यकताओं और परिपक्वता स्तरों को ध्यान में रखते हुए अनुकूलित समाधान आवश्यक हैं।

विश्व बैंक वर्ष 2014 से आंध्र प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर क्षेत्र के छह राज्यों में राज्य-स्तरीय ग्रिडों के आधुनिकीकरण में राज्य सरकारों और उपयोगिताओं की सहायता पर केंद्रित रहा है। इसका उद्देश्य विश्वसनीय, उच्च-गुणवत्ता वाली बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना, उपयोगिताओं की परिचालन और वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाना, नई तकनीकों को अपनाने में सहायता करना और संस्थागत क्षमता को मज़बूत करना है। विश्व बैंक निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करने वाले नवोन्मेषी व्यावसायिक मॉडल बनाने के लिए निवेश वित्तपोषण, नीति विकास और तकनीकी सहायता को एकीकृत कर रहा है।

 

परिणाम: प्रारंभ वर्ष – समापन वर्ष

विश्व बैंक ने 2016 से भारत को अपनी बिजली वितरण प्रणाली की वित्तीय और परिचालन स्थिति को बढ़ाने में सहायता की है ताकि देश के सभी क्षेत्रों में विश्वसनीय बिजली आपूर्ति, नौकरियों और सशक्त जीवन के साथ एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित किया जा सके। जिन तीन उल्लेखनीय परियोजनाओं को विश्व बैंक ने ऋण प्रदान किया है, उनमें उत्तर पूर्वी क्षेत्र विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना, झारखंड विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना, और पश्चिम बंगाल विद्युत वितरण ग्रिड आधुनिकीकरण परियोजना शामिल हैं।

विश्व बैंक के 470 मिलियन डॉर के ऋण की सहायता से, पूर्वोत्तर क्षेत्र विद्युत प्रणाली परियोजना से असम, मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड में 450 लाख से ज़्यादा नागरिक लाभान्वित हुए हैं, और उनके जीवन में बदलाव आया है।  इस विद्युत प्रणाली परियोजना ने स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को गति दी है और दुर्गम भूभाग और सीमित संस्थागत क्षमता से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करके आय के नए अवसर पैदा किए हैं। इस परियोजना ने छोटे व्यवसायों, कृषि गतिविधियों और उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया है और निर्माण, रखरखाव, सेवा प्रावधान और उद्यमिता में रोज़गार सृजित किए हैं।  इससे आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र को आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत मिला है। इस परियोजना ने श्रमिकों के कौशल को बढ़ाया है, स्थानीय ठेकेदारों की क्षमता में सुधार किया है और यह सुनिश्चित किया है कि उनके पास बुनियादी ढांचे के विकास में प्रभावी योगदान देने के लिए आवश्यक कौशल और संसाधन मौजूद हैं। इस परियोजना ने वर्ष 2015 से 2024 तक आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों और समुदायों तक बिजली की पहुंच में 51 प्रतिशत की वृद्धि की है, जिसमें 31 ट्रांसमिशन और 102 वितरण सबस्टेशनों को उन्नत किया गया है, जबकि 32 ट्रांसमिशन और 83 वितरण सबस्टेशनों को जोड़ा गया है, साथ ही 1,077 किलोमीटर (किमी) ट्रांसमिशन लाइनें, 1,256 किलोमीटर वितरण लाइनें और 5,560,550 किलोवोल्ट-एम्पीयर की परिवर्तन क्षमता भी जोड़ी गई है।

विश्व बैंक के 251 मिलियन डॉलर के ऋण से झारखंड विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना ने अत्याधुनिक मीटर प्रणाली, बिलिंग और संग्रहण प्रणालियों के माध्यम से लगभग 50 लाख उपयोगकर्ताओं के लिए उपभोक्ता सेवाओं में सुधार किया है, जिससे ग्राहकों की संतुष्टि में वृद्धि हुई। राज्य भर में बिजली वितरण को बेहतर बनाने के लिए, इस परियोजना के माध्यम से 2,000 किलोमीटर से अधिक लंबी ट्रांसमिशन लाइनें और पच्चीस 132/33 किलोवोल्ट ग्रिड सबस्टेशन बनाए जा रहे हैं।

 

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विश्व बैंक से 135 मिलियन डॉलर के ऋण की सहायता से पश्चिम बंगाल विद्युत वितरण ग्रिड आधुनिकीकरण परियोजना के माध्यम से पश्चिम बंगाल राज्य के 14 ज़िलों में लगभग 9 करोड़ की आबादी के लिए बिजली वितरण के बुनियादी ढांचे में सुधार किया गया है। इस परियोजना में स्मार्ट मीटर और एससीएडीए तथा ईआरपी जैसी उन्नत डिजिटल प्रणालियों का उपयोग किया गया हैजिससे सितंबर 2024 तक 60,000 से अधिक उपभोक्ताओं को बेहतर दक्षताविश्वसनीयता और कम ऊर्जा खपत प्राप्त हुई। इस परियोजना का लक्ष्य इन लाभों का नवंबर 2026 तक 400,000 से अधिक आवासीय उपभोक्ताओं तक पहुँचाना है।

विश्व बैंक समूह का योगदान

पूर्वोत्तर क्षेत्र विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना की कुल लागत 952.20 मिलियन डॉलर थी, जिसमें विश्व बैंक  (आईबीआरडी) से 470 मिलियन डॉलर का वित्तपोषण शामिल था। झारखंड विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना की कुल लागत 465.2 मिलियन डॉलर थी, जिसमें आईबीआरडी से 310 मिलियन डॉलर का वित्तपोषण प्राप्त हुआ, जिसे बाद में आंशिक निधि रद्द होने के बाद घटाकर 251.05 मिलियन डॉलर कर दिया गया। पश्चिम बंगाल विद्युत वितरण ग्रिड आधुनिकीकरण परियोजना की कुल लागत 385.7 मिलियन डॉलर थी, जिसमें आईबीआरडी से 135 मिलियन डॉलर का वित्तपोषण और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एआईआईबी) से समतुल्य सह-वित्तपोषण शामिल था।

 

 

भागीदारी

ग्रिड आधुनिकीकरण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न तकनीकों, व्यावसायिक मॉडलों और उपयोगिताओं के वर्तमान परिपक्वता स्तर का आकलन और अनुकूलित समाधानों की सिफ़ारिश करना शामिल है। इन परियोजनाओं के डिज़ाइन और प्रभावशीलता को बेहतर बनाने के लिए, विश्व बैंक ने ऑस्ट्रेलियन एड, यूनाइटेड किंगडम के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (एफसीडीओ), सार्वजनिक-निजी अवसंरचना सलाहकार सुविधा (पीपीआईएएफ) और ऊर्जा क्षेत्र प्रबंधन सहायता कार्यक्रम (ईएसएमएपी) जैसे भागीदारों के साथ मिलकर परियोजना की तैयारी और कार्यान्वयन के दौरान पर्याप्त तकनीकी सहायता प्रदान की। इन परियोजनाओं में किए गए निवेश का अधिकतम लाभ उठाने के लिए इन संगठनों से अनुदान राशि जुटाई गई। इसके अतिरिक्त, विश्व बैंक ने विकास के उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु पश्चिम बंगाल विद्युत वितरण ग्रिड आधुनिकीकरण परियोजना के सह-वित्तपोषण हेतु एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एआईआईबी) के साथ भागीदारी की।

भावी परिदृश्य

भारत ने बिजली क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, ग्रिड व्यवधानों को कम करते हुए और किफायती टैरिफ बनाए रखते हुए सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण हासिल किया है। विश्व स्तर पर चौथे सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) बाजार के रूप में भारत ने प्रभावशाली प्रगति की है, जिसमें वार्षिक क्षमता वृद्धि में आरई का 75 प्रतिशत योगदान है। भारत ने वर्ष 2024 में 24.5 गीगावाट सौर और 3.4 गीगावाट पवन क्षमता के साथ पहले से कहीं अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल की। इससे दिसंबर 2024 तक भारत भर में कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 209.44 गीगावाट हो जाएगी। हालांकि, भारत के कोयला और लिग्नाइट के शुद्ध उत्पादन में वर्ष  2024 में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप कोयले से उत्पादित बिजली का रिकॉर्ड उच्च स्तर रहा, हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण कुल स्थापित क्षमता में कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 2018 में 58 प्रतिशत से घटकर 2024 में 47 प्रतिशत हो गई है।

नवीकरणीय ऊर्जा को ग्रिड में एकीकृत करने में चुनौतियां बनी हुई हैं। ट्रांसमिशन नेटवर्क का विस्तार आवश्यक है, और भारत के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने एक ट्रांसमिशन मास्टर प्लान जारी किया है जिसके तहत वर्ष 2030 तक अंतर-राज्यीय विद्युत ट्रांसमिशन नेटवर्क को बढ़ाने के लिए 30 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता है। डिस्कॉम को लागत वसूली-आधारित टैरिफ-निर्धारण, विलंबित सब्सिडी प्रतिपूर्ति, लक्षित सब्सिडी वितरण, और अकुशल बिलिंग एवं संग्रह सहित निरंतर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जब तक डिस्कॉम की वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं होता, तब तक उनके वित्तीय स्थिति के जोखिम ऊर्जा परिवर्तन में बाधा बनते रहेंगे और इस क्षेत्र की निजी निवेश को आकर्षित करने की क्षमता को सीमित करते रहेंगे।

भविष्य में, विश्व बैंक अपनी सहायता निम्नलिखित पर केंद्रित करेगा:

  • निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करने के लिए नवीन व्यावसायिक मॉडलों का उपयोग करके संचरण और वितरण नेटवर्क के विस्तार का वित्तपोषण करना
  • नेटवर्क उपयोग को अनुकूलित करने, नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण को बढ़ाने और वितरण क्षेत्र की वित्तीय स्थिति और परिचालन दक्षता में सुधार करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना।
  • कार्यबल प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण, तथा नीतिगत एवं नियामक बाधाओं के समाधान के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करना।
  • संसाधन पर्याप्तता नियोजन, तथा सुरक्षा एवं उत्सर्जन-प्रतिबंधित आर्थिक प्रेषण जैसी राज्य-स्तरीय पहलों का समर्थन करना।

ये प्रयास भारत के लिए एक स्थायी, उन्नतशील और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण होंगे।