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मुख्य कहानी22 मई, 2025

उत्तराखंड में पेयजल आपूर्ति सेवाओं में हुआ क्रांतिकारी बदलाव

मुख्य बिन्दु

  • उत्तराखंड के शहरों के बाहरी इलाकों में रहने वाले परिवार लंबे समय से पेयजल की समस्या से जूझते रहे हैं। यहां केवल 45 प्रतिशत घरों में पानी का कनेक्शन पहुंचा था, लेकिन उन्हें भी पानी के संग्रहण और शुद्धिकरण में भारी खर्च करना पड़ ता था।
  • आज, उत्तराखंड के 22 अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लगभग 95 प्रति शत परिवारों को (यानी 5,44,000 लोगों तक) हर दिन 16 से 24 घंटे स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। अब महिलाएं काम पर जा सकती हैं, और बच्चे भी समय पर स्कूल पहुंच सकते हैं।
  • महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी पानी के कनेक्शन मीटर से जुड़े हैं और इसके लिए उन्हें बिल भेजा जाता है। चूंकि यह नई व्यवस्था लोगों का समय और पैसा दोनों बचाती है, इसलिए वे पानी की आपूर्ति के लिए भुगतान करने को तैयार हैं। जल आपूर्ति कर रही एजेंसियां अपनी लागत वसूल कर पा रही हैं, जिससे यह प्रणाली टिकाऊ बन सकी है।

अनीता देवी का परिवार उत्तराखंड के देहरादून में ऐसे ही एक इलाके में रहता है। तीस साल पहले जब उनकी शादी हुई थी उसके बाद से ही अनीता रोजाना पानी इकट्ठा करने की तकलीफ़ से गुजरती रही हैं।  अनीता याद करते हुए कहती हैं, हमारे लिए पानी की समस्या कभी न ख़त्म होने वाली थी। हमें या तो पहाड़ की चोटी से पानी लाना पड़ता था या नीचे बहती नदी से।"  ज्यादातर बार उन्हें अपने बच्चों से मदद लेनी पड़ ती थी जिससे वे स्कूल देर से पहुंचते थे।

इसके बावजूद, उनके परिवार की जरूरतों या पालतू गाय के लिए ये पानी कभी भी पर्याप्त नहीं होता था।

उत्तराखंड के देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार और हल्द्वानी जैसे शहर, जो तीव्र शहरीकरण से गुजर रहे हैं, वहां भी सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोग भी  ऐसी ही स्थिति का सामना कर रहे थे। लोगों को हर दिन सरकारी टैंकरों के सामने पानी भरने के लिए लाइन में घंटों तक खड़ा  रहना पड़ ता था। जिनकी आर्थिक स्थिति थोड़ी  बेहतर थी, वे महंगे दामों पर पानी खरीदते थे या फिर खुद का बोरवेल खुदवाने में भारी खर्च करते थे। जिनके घरों में नगर निगम की पाइपलाइन से कनेक्शन था, उन्हें भी पानी को पंप करके उसके भंडारण और शुद्धि करण के लिए व्यवस्था करनी पड़ती थी। पानी की गुणवत्ता पर भरोसा नहीं किया जा सकता था और उसकी आपूर्ति भी अनियमत रहती थी।

अच्छी बात यह है कि अब हालात बदल रहे हैं। आज अनीता देवी के घर में पानी का कनेक्शन है, जो उन्हें हर दिन 16 से 24 घंटे तक साफ़ पानी उपलब्ध कराता है। उन्होंने खुश होकर बताया, "अब हमें न तो नदी तक जाना पड़ता है, न ही टैंकर का इंतज़ार करना पड़ता है, और न ही पानी भरने के लिए लाइन में खड़ा  होना पड़ता है।”

अब हमें न तो नदी तक जाना पड़ता है, न ही टैंकर का इंतज़ार करना है, और न ही पानी भरने के लिलिए लाइन में खड़ा होना है।
अनीता देवी
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अब जब उत्तराखंड के बड़े शहरों की सीमाओं पर रहने वाले परिवारों को घर पर नया जल कनेक्शन मिल गया है, तो उन्हें हर दिन 16 से 24 घंटे तक स्वच्छ पानी मिल रहा है। घर के लि ए पानी इकट्ठा करने की रोजाना की मशक्कत से छुटकारा मिलने के बाद महिलाओं के पास अब पहले से ज्यादा समय है। वे नौकरियां कर सकती हैं या परिवार की मदद के लिए आय संबंधी दूसरी गतिविधियों में लग सकती हैं।

फोटो साभार: विश्व बैंक

आम जनता के जीवन-स्तर में आया सुधार

अनीता अकेली नहीं हैं जो विश्व बैंक के सहयोग से चलाए जा रही उत्तराखंड सरकार की इस योजना से बेहद खुश हैं। वे उन 5,44,000 लोगों में से एक हैं जो राज्य के 22 अर्ध शहरी क्षेत्रों में रहते हैं और घर-घर स्वच्छ पेयजल पहुंचाने से जुड़ी  इस योजना के लाभार्थी हैं।

इस पहल के कारण उन महिलाओं के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया है, जिनका ज्यादातर समय पानी इकट्ठा करने में खर्च होता था। अब जब उन्हें इस रोजमर्रा की समस्या से मुक्ति मिली है, तो अब उनके पास घर के बाहर जाकर काम करने या परिवार की मदद के लिए दूसरी आय संबंधी गतिविधि यों में शामिल होने के लिए भरपूर समय है।

पानी की गुणवत्ता भी अब बहुत बेहतर है। उत्तराखंड जल निगम (यूजेएन) के महाप्रबंधक डी.के. बंसल ने बताया, पहले इस क्षेत्र में जलजनित बीमारियों का प्रकोप बहुत ज्यादा था। लेकिन अब इन मामलों में काफी कमी आई है।”

हरिद्वार ज़िले की गृहिणी सविता यादव खास तौर पर इस बात के लिए आभार जताती हैं कि अब उन्हें अपने परिवार के लिए पानी उबालने की ज़रूरत नहीं पड़ती। वह सुकून भरी मुस्कुराहट के साथ कहती हैं,“अब हमारे बच्चे सीधे नल का पानी पीते हैं और उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती।”

दिलचस्प बात यह है कि जब से सभी घरों में नियमित रूप से स्वच्छ जल की आपूर्ति शुरू हुई हैतब से इस क्षेत्र की आबादी लगातार बढ़ी है क्योंकि लोग बेहतर जीवन की तलाश में यहां रहने आ रहे हैं।

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चूंकि नगरपालि के द्वारा स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति की जा रही है, इसलिए बच्चे अब सीधे नल से पानी पी सकते हैं। मांओं को अब पानी उबालने की ज़रूरत नहीं पड़ती। और इस कारण इस क्षेत्र में कभी आम रही जलजनित बीमारियों का प्रकोप भी अब काफी हद तक कम हो गया है।

फोटो साभार: विश्व बैंक

श्रम, पैसों और समय की बचत

इस कार्यर्यक्रम के तहत दूरदर्शिता दिखाते हुए यह सुनिश्चित किया गया कि सभी जल कनेक्शनों पर मीटर लगे हों और पानी के उपभोग के हिसाब से लोगों से शुल्क लिया जाए। हर व्यक्ति से 20,000 लीटर पानी के लिए न्यूनतम 220 रुपए का शुल्क लिया जाता है।  इससे अधिक पानी के इस्तेमाल पर प्रति 1000 लीटर 15 रुपए का अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है। महीने का औसत बिल क़रीब 350 रुपए होता है जबकि जो लोग ज्यादा पानी का इस्तेमाल करते हैं उन्हें हर महीने 600 से 800 रुपए तक चुकाना पड़ता है।

वर्ल्ड र्ल्ड बैंक टीम का नेतृत्व करने वाले मैथ्यूज मुलक्कल ने बताया, "लोग अब पानी के लिए भुगतान करने के प्रति पहले से ज्यादा सहज हैं क्योंकि उन्हें भी इस नई व्यवस्था से आर्थिक लाभ मिल रहा है। बल्कि, बिल भुगतान दर में भारी वृद्धि हुई है।   जो पहले 30-40 प्रति शत के आंकड़ों से बढ़कर अब अब पिछले एक साल में 70-90 प्रति शत तक हो गई है।"

जिनके पास पानी का कनेक्शन नहीं था, वे भी पानी के लिए भुगतान करने को तैयार हैं क्योंकि इससे उन्हें घंटों तक पानी के लिए लाइन में खड़े रहने की समस्या से मुक्ति मिल गई है। न ही अब उन्हें महंगा पानी खरीदना पड़ता है और न ही उन्हें बोरवेल खुदवाना पड़ता है। वहीं, जो लोग पहले नगरपालिका द्वारा की जारी पानी की अनियमित आपूर्ति से परेशान थे, वे भी खुश हैं क्योंकि उनके अन्य खर्च कम हुए हैं।

उदाहरण के लिए, अब पानी पर्याप्त दबाव के साथ आता है इसलिए लोगों को इन्हें ऊपरी मंजिलों तक पहुंचाने में ज्यादा बिजली नहीं खर्च करनी पड़ती। हरि द्वार की पूनम बिश्नोई कहती हैं, “बिजली की बचत से हमें काफ़ी फायदा हुआ है।”  पूनम हरि द्वार में अपने दो-मंजिला घर के सामने खड़ी होकर हमें बिजली की बचत से हुए फायदे के बारे में बता रही थीं।

इतना ही नहींअब लोगों को महंगे जल पंपों के रखरखाव या मरम्मत पर पैसे खर्च नहीं करना पड़ताजैसा कि पहले अक्सर होता था।

चूंकि अब पानी ज़्यादा स्वच्छ हैतो इसे शुद्ध करने के लि ए महंगी मशीनें लगवाने की ज़ रूरत नहीं पड़ती। पूनम के पडोसी उदय राम ने बताया"पहले मुझे एक आरओ (रि वर्स र्स ऑस्मोसि स) फ़िल्टर लगवाना पड़ा था जिसकी कीमत  18,000 रुपये थी।  उसकी सर्विसिग में हर साल 3,500 रुपये से 6,000 रुपये तक खर्च करने पड़ ते थे।”  उन्होंने राहत की सांस लेते हुए कहाअब मैंने वो फ़िल्टर हटा दिया है।” कुल मिलाकरयह नई व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो रही है।

 

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फोटो साभार: विश्व बैंक

पानी के इस्तेमाल में बढ़ती सावधानी

अब जबकि आम जनता को पानी के लिए भुगतान करना पड़ रहा है, इसलिए उन्होंने पानी का सोच-समझकर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। हरिद्वार ज़िले के भवदेश कुमार राजपूत बताते हैं, जब तक पानी मुफ़्त था, लोग खुलकर अपनी कारें धोते थे।  अब वे कार धोने में सिर्फ़ एक बाल्टी पानी का इस्तेमाल करते हैं।” उन्होंने हँसते हुए बताया कि कैसे उनके पड़ोसियों ने पानी की फ़िज़ूलख़र्ची करना अचानक से कम कर दिया।

सिर्फ़ इतना ही नहीं, शिकायतों का निपटारा भी अब समय पर होता है। हरिद्वार ज़िले की अनीता असवाल ने बताया, जब मुझे छोड़ कर सबको पानी मिल रहा था, तो मैंने एजेंसी को फोन किया। उन्होंने तुरंत किसी को भेजा और आधे घंटे के भीतर पानी आना शुरू हो गया।” सर्वेर्वेक्षणों के अनुसार, 97 प्रति शत शिकायतों का समाधान 48 घंटे के भीतर हो जाता है।

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फोटो साभार: विश्व बैंक

सेवा संचालन की लागत हुई कम

इस योजना से न सिर्फ़ नागरिकों को, बल्कि राज्य की जल एजेंसियों को भी लाभ हुआ है। कार्यक्रम से जुड़े कार्यकारी  अभियंता जसप्रीत सि ह ने बताया, जिन 22 क्षेत्रों में हमने इस कार्यक्रम को लागू किया, उनमें से 20 क्षेत्रों में कार्यक्रम के परिचालन और प्रशासन से जुड़े खर्च हम वसूल कर पा रहे हैं। इसके कारण यह कार्यक्रम टिकाऊ बन पा रहा है.”

जलरिसाव की समस्या में भी भारी कमी आई है। यूजेएन के अधीक्षण अभियंता नमित रमोला ने बताया, पहले तो 40 प्रतिशत से ज्यादा पानी बर्बाद हो जाता था।”  लेकिन जब इस कार्यक्रम ने रिसाव की समस्या का पता लगाने और उस पर नियंत्रण से जुडी  नई तकनीक लागू की तो यह समस्या घटकर 25 प्रतिशत रह गई है, जो भारी जल संकट का सामना कर रहे देश के लिए एक बडी बात है। भारत में इस तरह की तकनीक का यह पहली बार व्यापक उपयोग था।

यूजेएन में ही उनके सहयोगी जि तेन्द्र सिंह  ने बताया, हम अब ऊर्जा की भी बचत कर रहे हैं। नई प्रणाली अपेक्षाकृत रूप से अधिक कुशल है, जिससे पाइपों के माध्यम से पानी पंप करने में बहुत कम बिजली लगती है।” सिर्फ़ यही वजह है कि जल एजेंसियां अब हर साल 22.5 करोड़ रुपए (लगभग 27 लाख डॉलर) की बचत कर पा रही हैं। इसके साथ ही कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आई है, जो 4,500 पेड़ लगाने के बराबर है।

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फोटो साभार: विश्व बैंक

आम जनता को केंद्र में रखकर बनाई गई योजना

तो उत्तराखंड इतना बड़ा बदलाव लाने में कैसे सफ़ल हुआ?

वर्ल्ड र्ल्ड बैंक के मैथ्यूज़ मुलक्कल बताते हैं, जब पेयजल सुविधा प्रदान करने वाली एजेंसियों ने अपना ध्यान सिर्फ़ बुनियादी ढांचे के निर्माण से हटाकर सेवा की गुणवत्ता, स्थिरता और दक्षता पर केंद्रित किया तो यह बदलाव संभव हुआ।”

यूजेएन की कार्यर्यकारी अभियंता भारती रावत ने माना कि वर्ल्ड र्ल्ड बैंक कार्यर्यक्रम ने उनकी सोच को बदलने में मदद की, पहले मैं सिर्फ़ निर्माण पर ध्यान देती थी। जब निर्माण पूरा हो जाता था, तो मुझे लगता था मेरा काम ख़त्म हो गया।”

उनके सहयोगी जसप्रीत सिंह  ने कहा, अब हम योजना के संचालन पर ध्यान केंद्रित करते हैं और उसी के आधार पर योजना की सफलता या असफलता का आकलन करते हैं।”

आने वाले वर्षों में, राज्य की जल एजेंसियों के लिए यह ज़रूरी होगा कि वे इन्हीं मानकों का पालन करें और सेवा की उच्च गुणवत्ता को बनाए रखें।

फिलहाल, यूजेएन के महाप्रबंधक डी.के. बंसल वर्तमान उपलब्धियों पर गर्व जताते हुए कहते हैं, मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि जो जल आपूर्ति प्रणाली हमने विकसित की है, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर की है।”

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इस बीच, अनीता देवी के पास अब खेतों में काम करने, अपनी गाय के लिए चारा इकट्ठा करने, आस-पास के निर्माण कार्यों में काम करने, और घर-परिवार की देखभाल करने के लिए पर्याप्त समय है। उनके बच्चे भी अब पढाई  पर ध्यान दे पा रहे हैं, जो उनके बेहतर भविष्य की दिशा में ज़रूरी कदम है।

इस पहल की सफलता को देखते हुए उत्तराखंड सरकार का लक्ष्य है कि साल 2030 तक राज्य सभी घरों में स्वच्छ पेयजल की अबाधित आपूर्ति सुनिश्चित करेगा और कम से कम 60 प्रति शत कनेक्शन मीटर से जुड़े होंगे ताकि उन्हें शुल्क के दायरे में लाया जा सके।

उत्तराखंड सरकार की ये पहल अन्य भारतीय राज्यों के लिए एक नजीर है, जो ये सबक देती है कि केवल बुनियादी ढांचा बना देने से विकास नहीं होता, बल्कि जनता को बेहतर सेवाएं देने से असल बदलाव संभव होता है।

यही सभी राज्यों में लागू किया जाए तो देश में पानी से जुड़ी समस्या हल हो सकती है।  लोगों का जीवन स्तर तो सुधरेगा ही, साथ ही उनके पास नौकरी करने, अन्य आर्थिक गतिविधियों में शामिल होने का पर्याप्त समय होगा।

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