Skip to Main Navigation
मुख्य कहानी

कन्ट्री प्रोग्राम स्ट्रेटेजी (सीपीएस) सलाह, नागरिक सामाजिक संगठनों के साथ: बंगलौर, कर्णाटक

14 सितंबर, 2012



प्रतिक्रिया और सलाह को निम्न ईमेल पते पर भेजा जा सकता है:consultationsindia@worldbank-org
स्थानः बंगलौर, कर्णाटक
दिनांकः 31 मई 2012
प्रतिभागीः सूची
चर्चा के प्रमुख बिन्दुः

विभिन्न सेक्टरों और मैनुफ़ेक्चरिंग में अधोसंरचना(इन्फ्रास्ट्रक्चर) सहयोग को कर्णाटक के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया।
कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा को भी काफी बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है, खासतौर पर तकनीकी सहायता और प्रबंधन क्षेत्रों में
अनौपचारिक क्षेत्र खासतौर पर रोज+गार-सृजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था, इसकी पहचान और सहायता की जानी चाहिए
परियोजना लाभों की निगरानी और स्थिरता मुख्य मुद्दा थी तथा उसे बैंक की नयी रणनीति में खास जगह दी जानी है।
प्रतिभागियों ने अनुभव किया कि वर्ल्ड बैंक को अपने कार्यक्रमों में एक सक्रिय साझेदार के रूप में सिविल सोसायटी बनानी चाहिए
चर्चा का विस्तार

अधोसंरचना (इन्फ्र+ास्ट्रक्चर)

ऐसा देखा गया कि उद्यमों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए छोटे और मझोले उद्यमों के क्षेत्र में कर्णाटक को मैनुफ़ेक्चरिंग पर जोर दिये जाने की आवश्यकता है तथा उन्हें देशभर में बाजारों से जोड़ना है। अनेक प्रतिभागियों को अनुभव हुआ कि निर्माण क्षेत्र को पूरी सम्भावना में विकसित होने देने के लिए पानी, बिजली, रोड और रैल जैसे क्षेत्रों में सहयोग की आवश्यकता है। अनेक प्रतिभागियों ने अनौपचारिक क्षेत्र के महत्त्व की ओर ध्यानाकर्षित किया जो कि वर्तमान में सबसे बड़ा प्रगति-प्रेरक है और औपचारिक क्षेत्र से तुलना में बहुत अधिक रोजगार पैदा कर रहा है। अनौपचारिक क्षेत्र की सम्भावना पर अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है  ऐसा दर्शाया गया कि स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्र भी खाराब अधोसंरचनात्मक सहयोग से जूझ रहे हैं। बिजली के क्षेत्र में प्रतिभागी ने बताया कि पानी की कमी से थर्मल पॉवर प्लाण्ट्स पर प्रभाव पड़ रहा है। पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था भी अनेक क्षेत्रों में एक समस्या है।  एक दूसरे प्रतिभागी ने दर्शाया कि स्वास्थ्य जैसे दूसरे क्षेत्रों के बजाय बिजली के क्षेत्र में बहुत अधिक अनुदान दिया जा रहा है।


एक प्रतिभागी ने देखा कि अक्षमों, बुजुर्गों और बीमारों जैसे विशेष समूहों के लिए अधोसंरचना वाले भवन न के बराबर थे। शिक्षा में विशेष सुविधाओं की आवश्यकता वाले बच्चों की भी अनदेखी की गयी। वक्ता ने बताया कि ‘समावेशी प्रगति' का वाक्यांश इन समूहों के लिए प्रभावी बाधारहित वातावरण तैयार किये बिना सार्थक नहीं हो सकता। ऐसा करने के लिए सिविल इंजीनियर्स और आर्किटेक्ट्स के पाठ्यक्रम में इस पहलू का समावेश करना महत्त्वपूर्ण था।


एक प्रतिभागी ने पाया कि शरत में शहरी प्रगति अनिवार्य थी। तेजी से शहरी हो रही जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अगले दो दशकों में शहरी विकास के लिए ट्रिलियन यूएस डॉलर्स आवश्यक होंगे। वैसे ऐसा सुझाव दिया गया कि आवंटनों(विनियोजन) में स्थानीय सरकारों को प्राथमिकता में रखा जाये और सार्वजनिक व्यय में पारदर्शिता पर जोर दिया जाये।


स्वास्थ्य

शहरी स्वास्थ्य सुविधाएँ बहुत खाराब स्थिति में थीं और इलाज में बहुत खर्चा आने के कारण परिवार और दरिद्र (ग़रीब) हो जाया करते हैं। यह दर्शाया गया कि एक औसत परिवार का आज शिक्षा की अपेक्षा स्वास्थ्य पर अधिक खर्चा हो जाता है। एक प्रतिभागी इस तथ्य को ध्यान में लाया कि यदि दो विकल्प दिये जायें तो वर्ल्ड बैंक द्वारा शिक्षा की अपेक्षा स्वास्थ्य अधोसंरचना का सहयोग किया जाना चाहिए। इस बात को भी सामने रखा गया कि स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञ एवं कर्मचारी चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों में जाना और बसना नहीं चाहते, इसलिए यह आवश्यक हो गया था कि स्थानीय लोगों को चिकित्सा की प्राथमिक जानकारी रखने वालों, पॅरामेडिक्स के रूप में प्रशिक्षित किया जाये ताकि गाँवों की तात्कालिक आवश्यकताएँ पूरी हो सकें।


2013-2016 के लिए वर्ल्ड बैंक के इस देश सम्बन्धी कार्यक्रम का हवाला देते हुए एक प्रतिभागी ने यह बताकर चकित कर दिया कि ‘स्वास्थ्य एवं पोषण' के विषय में कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया था तथा उस प्रतिभागी ने यह जानना चाहा कि बैंक इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में आगे बढ़ रहा था या नहीं।

इस बात को ध्यान में लाया गया कि आधुनिक स्वास्थ्य सेवाएँ कॉर्पोरेटाइज्ड हो चुकी थीं। ऐसा देखा गया कि स्वास्थ्य क्षेत्र में पीपीपी मॉडल को बढ़ावा दिया जा सकता था किन्तु निर्धनों की सुरक्षा के लिए लचित अनुदान आवश्यक था। ऐसा सुझाया गया था कि बैंक की भावी योजना में सहायक स्वास्थ्य सेवाओं में सुरक्षात्मक औषधि (उपचारात्मक औषधि के अतिरिक्त) और आयुर्वेद व होम्योपैथी जैसी वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा देना शामिल हो।


कृषि एवं सम्बन्धित मुद्दे

कृषि क्षेत्र में भण्डारण सुविधाओं और फसल बीमा योजनाओं को सुधारने की दिशाओं में किसानों को आगे सहयोग प्रदान किये जाने की आवश्यकता थी। किसानों को क्रेडिट (ऋण) लेने के लिए साख बनाने में तकनीकी सहायता करना भी कृषि में महत्त्वपूर्ण था (खासतौर पर वर्षा-आधारित क्षेत्रों में, जिसे कि बैंकरों द्वारा जोखिमपूर्ण व्यवसाय माना जाता है)। यह दर्शाया गया था कि राज्य में टिकाऊ कृषि पद्धतियों के अनेक मामले हैं तथा इनका प्रचार-प्रसार किये जाने की आवश्यकता है। यह देखा गया कि चूँकि हरित क्रांति से कृषि के क्षेत्र में कुछ नवाचार (नया) नहीं किया गया था इसलिए यह क्षेत्र कम उत्पादकता होने, साख सुविधाओं और बाजार तक पहुँच न होने एवं अपर्याप्त सिंचाई सुविधाओं जैसी समस्याओं से जूझ रहा था।


एक प्रतिभागी ने देखा कि कृषि क्षेत्र में किसानों को उत्पादकता, लाभप्रदता और आत्मसम्मान की आवश्यकता थी। इन सबसे उपजी समस्याओं के कारण ग्रामीण युवा शहरों में कम वेतन की नौकरियों के लिए पलायन करने लगेंगे।


शिक्षा


एक प्रतिभागी ने ध्यानाकर्षण किया कि निजी क्षेत्र ने राज्य की शिक्षा को पूरी तरह अपने कब्जे में कर लिया था। राज्य सरकार ने नागरिकों, खासकर सामाजिक-आर्थिक रूप में कमजोर वर्गों को शिक्षित करने के अपने दायित्व को नहीं निभाया। निजी क्षेत्र के स्कूलों में इंग्लिश, गणित और कम्प्यूटर पर ध्यान केन्द्रित कराया जा रहा था और ऐसा पाया गया कि कम आमदनी के परिवारों के बच्चों को भी निजी स्कूलों में भर्ती कराने को प्राथमिकता में रखा जा रहा था। सरकारी स्कूलों में भवन तो थे किन्तु पर्याप्त शिक्षार्थी नहीं थे; उनके पास पर्याप्त कमरे भी नहीं थे। ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक स्कूलों में बालिकाओं के लिए शौचालय नहीं थे, इसलिए तीसरी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ने वाली छात्राओं की संख्या बहुत थी। राज्य की शिक्षा नीति में भी सरकारी स्कूलों पर 100 प्रतिशत्‌ उत्तीर्ण परिणाम दर्शाने का दबाव रहता था।


एक प्रतिभागी ने एक अध्ययन का उल्लेख करते हुए बताया कि सर्व शिक्षा अभियान कुछ विषयों में सफल रहा है, जैसे- अक्षम(विकलांग इत्यादि) व्यक्तियों के अनुकूल अधोसंरचना उपलब्ध कराने में और उपचारात्मक शिक्षण में। वैसे अनेक दूसरे मामलों में भी प्रगति हुई थी। इस बात को ध्यान में रखा गया कि स्कूलों के शिक्षार्थियों की संख्या बढ़ाने तक सीमित मानसिकता होने के कारण सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा पर गलत छाप पड़ती है। पहली कक्षा में सर्वशिक्षा अभियान के नामांकन आकलन और आठवीं कक्षा में पुनः ऐसे आकलन से पता चलता है कि शिक्षार्थियों की संख्या घटी है, खासतौर पर तीसरी अथवा चौथी कक्षा के बाद अनेक कारणों से स्कूल छोड़ने वाली छात्राओं की संख्या बहुत बढ़ी है।


एक अन्य प्रतिभागी ने कर्णाटक में शिक्षा की खाराब गुणवत्ता का जिक्र करते हुए कहा कि प्राथमिक से माध्यमिक स्कूल तक पहुँचने वाले शिक्षार्थियों का प्रतिशत्‌ बोर्ड स्तरों (दसवीं और बारहवीं कक्षाओं) 90 से 57 प्रतिशत्‌ पर आ गया क्योंकि कमजोर एकॅड्मिक आधार के कारण शिक्षार्थी ऊँची कक्षाओं तक नहीं पहुँच पाते।


व्यावसायिक शिक्षा की दिशा में एक प्रतिभागी ने दर्शाया कि संसाधनों को दोगुना करने और अपनी-अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें ढाले जाने की आवश्यकता है। अनेक सरकारी खैरातों और अनुदानों के कारण युवा उतने प्रेरित नहीं हुए। यह भी कहा गया था कि एक प्रकार का उपयोगकर्ता शुल्क ऐसे निजी उद्योग पर थोपा जाना चाहिए जोकि सरकारी संस्थानों एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों से तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं को नौकरी देते हैं और इस प्रकार उन्हें प्रशिक्षित जनशक्ति पर निवेश नहीं करना पड़ता।


वर्ल्ड बैंक द्वारा निधि (राशि) प्राप्त परियोजनाओं की स्थिरता (टिकाऊपन)


अनेक प्रतिभागियों ने बैंक परियोजनाओं में टिकाऊपन के अभाव की बात कही। उन्होंने ऐसे विभिन्न क्षेत्रों के उदाहरण बताये जहाँ परियोजना का समाप्ति के बाद स्थितियाँ पहले वाली अवस्था में जा चुकीं थीं। परियोजना प्रबंधन के लिए बनाये गये विशेष रणनीतिक नियोजन प्रकोष्ठ परियोजना के बंद होने के बाद ओझल हो गये और दक्षतापूर्वक चलाये जा रहे अनेक संस्थान सरकारी विभागों में मिला लिये गये, जिससे पारदर्शिता और दक्षता वाली पहले की प्रणालियाँ समाप्त हो गयीं। कर्णाटक में भारत जनसंख्या परियोजना एवं जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के उदाहरण बताये गये जहाँ इन परियोजनाओं के तहत तैयार किये गये पूरे व्यवस्थापन सम्बन्धित परियोजना के समापन के बाद उस रूप में जारी नहीं रह सके।


कुछ वक्ताओं ने बैंक की निर्गम(एक्जिट) प्रक्रिया के बेहतर नियोजन (योजना-निर्माण) के अतिरिक्त सामुदायिक सहभागिता एवं मजबूत विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता सुझायी। वैसे एक प्रतिभागी ने सचेत किया कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए विकेन्द्रीकरण स्वयं कोई रामबाण नहीं होता क्योंकि भ्रष्टाचार सरलता से दूसरे स्तर पर पहुँच सकता है। कर्णाटक में भूमि परियोजना का उदाहरण है जहाँ कियोस्क मालिकों ने प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए धन लेना शुरु कर दिया था।

एक प्रतिभागी ने समझाया कि कर्णाटक के पास स्वयं का कोई विकास कार्यक्रम नहीं दिखता और वह कार्यक्रमों व परियोजनाओं को बनाने के लिए फ़ंडिंग एजेन्सियों पर निर्भर है, परियोजना के बाद जिनका खत्म हो जाना पहले से ही निर्धारित रहता है। इससे बिल्कुल विपरीत केरल की नीतियों में कुछ प्रमुख कार्यक्रम (जैसे कमजोर वर्गों के लिए आवास-निर्माण) न तो बाहरी एजेन्सियों, यहाँ न ही केन्द्र सरकार से वित्त (फ़ंडिंग) पर निर्भर थे क्योंकि राज्य सरकार इन कार्यक्रमों में बहुत प्रतिबद्ध थी।

सरकारी मुद्दे और सामुदायिक सशक्तिकरण

सरकार के विषय में बहुत चर्चा की गयी। कुछ प्रतिभागियों ने अनुभव किया कि वर्ल्ड बैंक तो राष्ट्रीय सरकारी मुद्दों के मामलों में पहले के वर्षों की तुलना में अब कम चिंतित लगा तथा स्थानीय सरकार से अधिक जुड़ा लगा। यह भी पता चला कि बैंक के बारे में बहुत सी जानकारियाँ जनता को देखे जाने के लिए सरलता से उपलब्ध अथवा पारदर्शी नहीं थीं। एक प्रतिभागी समझ नहीं पा रहा था कि बैंक अपनी परियोजनाओं में ईमानदार प्रतिक्रियाओं के प्रति सहज और तैयार भी है अथवा नहीं। ऐसा इसलिए था क्योंकि बैंक-फ़ंडेड परियोजनाओं ऐड मेमोरीज और कम्प्लीशन रिपोर्ट्स की छानबीन से दिखायी देता है कि मूल्यांकन व प्रभाव आकलन में भागीदार विभिन्न पक्षों के निहित (छुपे) स्वार्थों के कारण अधिकांशतः खुलकर आलोचना नहीं की गयी और प्रतिक्रियाओं में ईमानदारी नहीं बरती गयी।


एक प्रतिभागी ने अनुभव किया कि विचार-विमर्श सत्र के दौरान प्रस्तुतिकरण(प्रजटेशन) इतना पर्याप्त सूचनाप्रद/जानकारीवर्द्धक नहीं था क्योंकि उसमें पहले वाले देश के सहायता कार्यक्रम (2009-2012) के परिणामों व सीखों के सम्बन्ध में बैंक का अपना कोई आकलन नहीं दिखा। एक अन्य प्रतिभागी ने बताया कि आगामी परियोजनाओं से चाहे गये परिणाम प्राप्त करने के लिए अधिक लचीलापन और नवाचार निश्चित रूप से आवश्यक था क्योंकि स्पष्ट था कि पहले वाली रणनीति में चाहे गये परिणाम नहीं आये। वर्ष 2013-2016 के लिए प्रस्तावित कार्यक्रम में स्वास्थ्य एवं पोषण जैसे कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्र प्राथमिकता में नहीं रहे, जो कि चिंता का एक कारण था। एक प्रतिभागी ने नये कार्यक्रम (2013-2016) के लिए ऋण देने की दरों के बारे में जानना चाहा, इसे भी प्रस्तुतिकरण में नहीं बताया गया था।


एक प्रतिभागी ने परियोजना लाभों के टिकाऊपन और लोक-सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय समुदायों के सशक्तिकरण की आवश्यकता पर बल दिया। ऐसा देखा गया कि देश में समुदायों द्वारा चलायी जाने वाली परियोजनाओं के अनेक सफल उदाहरण रहे हैं तथा ऐसे समुदायों में ज्ञान के आदान-प्रदान की सम्भावना बढ़िया रहती है जो सशक्तिकरण प्रक्रिया को अपनाते हैं। सन्दर्भ (हवाले) के रूप में मंगलौर शहर की एक परियोजना बतायी गयी, जहाँ 25 स्कूलों में स्थानीय समुदाय द्वारा अपने-अपने क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान किये गये थे। एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी से मिली निधि (फ़ण्ड) के मामलों में ऐसा अनुभव किया गया कि इस परियोजना में बेहतर गुणवत्ता के पेयजल के लिए समुदायों से माँग उठ सकती है और जिससे आखिर में पानी में उत्पन्न होने वाले रोग कम हो जाते हैं।


एक प्रतिभागी ने बताया कि अध्ययनों में पाया गया है कि तब हितग्राही समुदाय ने खुद सड़क एवं विनिर्माण कार्यों जैसी परियोजनाओं का कार्यान्वयन किया तो राज्य की एजेन्सियों से कराये जाने की तुलना में 30 प्रतिशत्‌ तक लागतें घट गयीं।


अनेक प्रतिभागियों ने कहा कि सिविल सोसायटी एवं सामुदायिक संगठनों को सार्वजनिक निवेशों व समाधानों के बारे में सरकार से बात करनी चाहिए। उन्हें केवल हितधारक या ‘ठेकेदार' के बजाय अंशधारक जैसा अधिक मान दिया जाना चाहिए। ऐसा अनुभव हुआ कि वर्ल्ड बैंक को अपने आपको नयी आर्थिक वास्तविकताओं के अनुसार फिर से संगठित करने की आवश्यकता है तथा तब शायद देश के राजनैतिक परिदृश्य के पुनर्निर्माण में भूमिका निभायी जा सकती है। एक प्रतिभागी को अनुभव हुआ कि बैंक लम्बे समय के कामों के लिए तकनीकी सहायता एवं वित्त (फ़ण्ड) उपलब्ध करा रहा था किन्तु देश के सामने आये तात्कालिक आर्थिक संकट से सम्बन्धित मुद्दों का पता नहीं लगाया गया। ऐसा कहा गया था कि आगामी दो वर्ष देश के लिए कठिन रहने वाले थे तथा इस बात को तत्काल ध्यान में लिये जाने की आवश्यकता थी। यह भी देखा गया था कि नये देश वाले कार्यक्रम के लिए वर्ल्ड बैंक को, नीति, सरकार पर और अनौपचारिक क्षेत्र को मजबूत बनाने एवं वर्तमान आर्थिक संकट पर जोर देना चाहिए।

डेटाबेस और सामुदायिक निगरानी

अनेक प्रतिभागियों ने पुराने पड़ चुके और निरर्थक आँकड़ों की बात बतायी जो परियोजनाओं के नियोजन व संसाधनों के आवंटन में पूरी तरह व्यर्थ हो चुके थे। इसी प्रकार परिणामों सम्बन्धी आँकड़े भी ठीक न थे और उन्हें ढंग से सामने रखा भी नहीं गया था। अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं ने बेहतर आँकड़ों व प्रकटीकरण के लिए दबाव डाले। उदाहरण के लिए हर वर्ष अपने-अपने वित्तीय विवरण जनता को बताने के लिए नगर निगमों पर सिविल सोसायटी द्वारा दबाव बनाया गया था। यह भी आगे दर्शाया गया कि सार्वजनिक परिसम्पत्तियों से सम्बन्धित व्यय को जनता में सार्वजनिक करने के वित्तीय अधिनियम को कभी अधिसूचित नहीं किया गया था। बीएमसी को विशेषज्ञों के विषय में मानव-संसाधन बढ़ाने की आवश्यकता थी किन्तु निगम में खाली पड़े लगभग 40 प्रतिशत्‌ पदों को नहीं भरा जा रहा था। सामांय प्रशासन कैडर के अधिकारियों द्वारा विशेषज्ञ पदों पर काबिज होने की समस्या भी  महसूस की गई।


यह बताया गया कि अनेक राज्यों ने बाहरी एजेन्सियों से ऋण लेने के लिए खुद को सक्षम बनाने के लिए राजकोषीय दायित्व और सार्वजनिक प्रकटीकरण (राजकोषीय दायित्व सम्बन्धी केन्द्रीय कानून-निर्माण) अधिनियम बनाया है किन्तु अधिकांश राज्यों ने क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए कानूनों को अधिसूचित नहीं किया हुआ था।


बेहतर निर्णय करने के लिए सरकारी विभागों में आँकड़ों के आदान-प्रदान की आवश्यकता पर बल दिया गया। आगे यह भी कहा गया कि परिणामों एवं आँकड़ों को नियमित रूप से अपडेट किया जाना चाहिए और किसी कार्यक्रम में उन्हें प्रकट किया जाना चाहिए ताकि जनता की निधियों का प्रयोग जनता के सामने आ सके तथा वर्ल्ड बैंक को अधिक स्पष्ट सार्वजनिक प्रकटन प्रणाली पर जोर देना चाहिए।


विश्व बैंक की प्रतिक्रिया


वर्ल्ड बैंक की टीम ने स्पष्टीकरण किया कि भारत मध्यम आमदनी के देश की स्थिति में उभर रहा है और शीघ्र ही वह आईडीऐ के रियायती ऋण के लिए जल्दी ही अपात्र हो सकता है। उसी समय निधियों(फ़ण्ड्स) की कमी थी और नवाचार, आर्थिक विकास और प्रबंधनात्मक सहायता के सम्बन्ध में इन्पुट्स बढ़ाने के लिए बैंक योजना बना रहा था। इस अनुसार बैंक सहायक परियोजनाओं से सहायक कार्यक्रमों की ओर आया, जिनमें भारत के मुख्य कार्यक्रम शामिल हैं। उदाहरण के लिए यह दर्शाया गया था कि बैंक पुनःमरम्म्त किए जाने वाले आईसीडीएस कार्यक्रम का अंग होगा जहां यह प्रबंधकीय एवं तकनीकी इनपुट को मुख्यतौर पर प्रदान करेगा। विशेष प्रावधान भी यह सुनिश्चित करने के लिए बनाये जाने थे कि परियोजना के लाभ टिकाऊ रहें।


सरकार एवं भ्रष्टाचार के बारे में वर्ल्ड बैंक के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि बैंक तो एक विकास एजेन्सी था और उसे देश की कार्यपालिका-एजेन्सियों के भ्रष्टाचार से लड़ना पड़ा। पूरी सरकार में बैंक नीति को पहले से स्थापित संस्थाओं की कार्य-प्रणाली में सीधे हस्तक्षेप न करते हुए प्रणालियों पर कार्य करना था। बैंक ने इस बात को बताया कि विकेन्द्रीकरण कर देने से ही भ्रष्टाचार की समस्या नहीं सुलझने वाली; समुदाय का सशक्तिकरण और ज+मीनी स्तर पर मजबूत निगरानी से अधिक प्रभाव पड़ेगा।


बैंक में प्रतिक्रियाओं के विषय में इसका पता लगाया गया था कि प्रोजेक्ट कम्प्लीशन रिपोर्ट एक ऐसा विस्तृत दस्तावेज थी जिसमें परियोजना के क्रियान्वयन व प्रभाव की भली-भाँति छानबीन की गयी थी। आगे यह दर्शाया गया कि वर्ल्ड बैंक का स्वतंत्र मूल्यांकन समूह एक ऐसा स्वतंत्र प्राधिकरण था जिसने विभिन्न आंतरिक आकलनों और बैंक रिकॉर्डों को अपने सन्दर्भों में परखा। उनकी मूल्यांकन रिपोर्टों में अधिकांशतः बैंक परियोजनाओं की संचालनात्मक विधियों या दूसरे पहलुओं की निन्दा होती थी।


बैंक अधिकारियों ने परिचर्चा के स्तर पर संतोष जताया और इस तथ्य की सराहना की कि परियोजनाओं के लिए निधि (फ़ंड) प्रदान करने तक सीमित न रहते हुए बैंक की रणनीति में तकनीकी सहायता, आर्थिक विकस और प्रबंधनात्मक इन्पुट्स पर अधिक जोर दिया गया। प्रतिभागियों को आश्वस्त किया गया था कि उनकी टिप्पणियों व सुझावों को देश के कार्यक्रम रणनीति दस्तावेज के साथ में सटीकता से प्रदर्शित किया जायेगा। वे 2013-2016 के रणनीति दस्तावेज के अंतिम रूप में आने से पहले अपनी टिप्पणियों को ओनलाइन भी भेज सकते थे।


बैंक टीम ने प्रतिभागियों को आश्वस्त किया कि सिविल सोसायटी के साथ काम करने की प्रवृत्ति पिछले कुछ सालों में बढ़ी है और बैंक भविष्य में प्रगति जारी रखेगा।



लखनऊ, उत्तरप्रदेश- 13 जून 2012


Api
Api

Welcome