मुख्य कहानी

करोडों भारतीयों तक पहुँचते हुएः सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा

18 मार्च, 2010


मार्च 18, 2010 - भारत का सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम एक महत्वाकांक्षी उद्देश्य से शुरु किया गया था - स्कूलों में भर्ती बढाना, पढाई से वंचित बच्चों की संख्या कम करना और सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा के स्तर में सुधार लाना।


" किसी भी देश का भविष्य छोटे बच्चों की आँखों से चमकता है। "

जवाहरलाल नेहरू

भारत के प्रथम प्रधान मंत्री

2001 से अब तक भारत के सर्व शिक्षा अभियान में पढाई से वंचित 2 करोड बच्चे भर्ती किये गए हैं, खास कर लडकियाँ और सामाजिक रूप से पिछडे परिवारों के बच्चे। निम्न स्त्री-साक्षरता वाले क्षेत्रों में विशेष आवासीय स्कूलों ने लडकियों की शिक्षा को प्रोत्साहित किया है। कार्य आधारित शिक्षा जैसी नई पद्धतियों के ज़रिये तमिलनाडु राज्य ने शिक्षा में आश्चर्यजनक सुधार लाया है।

लडकियों की शिक्षा को संभव बनाते हुए

“मैं जानवर चराती थी, पानी भरती थी और मेरे 5 छोटे भाई-बहनों की देखभाल करती थी,” याद करती है भारत के रेगिस्तानी राज्य राजस्थान के जोधपुर जिले की 12 वर्षीय मधुबाला बिश्नोई। ग्यारह वर्ष की उम्र में शादी हो जाने के बाद अपने पति के घर भेजे जाने की उम्र होने तक मधुबाला अपने गरीब किसान माता-पिता के घर पर ही रहती।

लेकिन अब उसके गाँव से करीब आधे दिन की यात्रा के अंतर पर खुले आवासीय स्कूल ने मधुबाला और उसके माता-पिता को पुरानी राह से मुक्ति पाने का मौका दिया और इस बच्ची की जिंदगी पूरी तरह बदल दी। अब मधुबाला साफ-सुथरी रहती है और स्कूल में अपने खाली समय में उसे कंप्यूटर पर खेलना पसंद है।

स्कूल खास तौर पर उसके जैसी लडकियों के लिए है जिन्होंने या तो स्कूल बीच में ही छोड दिया था या जो कभी स्कूल गईं ही नहीं। यह भारत के महत्वाकांक्षी शिक्षा कार्यक्रम – सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत खोले गए 1200 स्कूलों में से एक है जो पालकों को उनकी बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करता है। यह स्कूल देश के उन सभी जिलों में खोले गए हैं जहाँ स्त्री-साक्षरता की दर कम है तथा स्त्री-पुरुष अनुपात में अधिक अंतर है।

ये स्कूल 11 से 16 वर्ष की बच्चियों को घर से दूर रहने की एक सुरक्षित जगह देकर उन्हें कम से कम 8वीं कक्षा तक पढाते हैं। शिक्षा की दृष्टी से भारत के सबसे पिछडे राज्यों में से एक, राजस्थान में ऐसे करीब 200 स्कूल हैं।

ग्रामीण लडकियों में परिवर्तन

मधुबाला के ग्रामीण जिले जोधपुर में स्थित स्कूल में, उसके गाँव के विपरीत, बिजली और पानी दोनों हैं। इसके अलावा, लडकियों के आधारभूत खर्चे - आवास और भोजन, डॉक्टरी खर्च, गणवेश, लेखन सामग्री और किताबें - एसएसए द्वारा किये जाते हैं, जिससे झिझकते पालक भी इसकी ओर आकर्षित होते हैं।

स्कूल में बच्चियाँ अपनी अधूरी पढाई पूरी करती हैं। उन्हें चित्रकारी, गायन, नृत्य और खेलों में हिस्सा लेने के लिए, साथ ही अधिक स्वतंत्रता के लिए साइकिल चलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। स्कूल उन्हें विभिन्न जगहों की सैर करा कर नए-नए विचारों से भी उनका परिचय करता है।

शिक्षा पूरी होने पर मौकों से भरी नई दुनिया के बारे में उत्सुकता जगाने के लिए उनका परिचय सभी क्षेत्रों की सफल महिलाओं से कराया जाता है।

बकरियाँ चराने से इंजीनियरिंग तक

13 वर्षीय ममता ने हाल ही में राजस्थान के दूर-दराज क्षेत्र शेरगढ स्थित आवासीय स्कूल से 8वीं उत्तीर्ण की है। ममता ने अपनी जिंदगी के शुरुआती साल अपने परिवार की बकरियाँ चराते हुए गुज़ारे थे।

स्कूल में आने पर, ममता एक अच्छी विद्यार्थी साबित हुई। अब उसके पिता को अपनी होनहार बेटी से बडी उम्मीदें हैं। “मैं चाहता हूँ कि वह विज्ञान पढकर इंजीनियर बने,” वे गर्व से कहते हैं।

तमाम बाधाओं के बावजूद सफलता

पप्पू देवी, एक अनपढ माँ, अपनी किशोर बेटी को देख खुशी से फूली नहीं समाती। “उसका पूरा रूप और व्यवहार ही बदल गया है। अब तो उसका बात करने का तरीका भी पहले से बेहतर हो गया है,” वह खुशी-खुशी कहती हैं।

बेशक, लडकियों की पढाई के बारे में रवैया बदल रहा है। बच्चियों के बदलाव से पालक अब खुश हैं।

हालाँकि लडकियों को स्कूल तक लाने के लिए अभी काफी काम करना बाकी है, लेकिन एक अच्छी शुरुआत निःसंदेह हो चुकी है।

तथ्य

  • 98% से अधिक बच्चों को अब अपने घर से 1 किमी के दायरे में प्राथमिक स्कूल उपलब्ध है।
  • स्त्री-पुरुष अनुपात कम हो रहा है। 2008 में प्राथमिक स्कूलों में प्रत्येक 100 लडकों पर 93 लडकियाँ हैं, जबकि दशक 2000 के शुरुआती वर्षें में यह संख्या केवल 90 थी।
  • लंबे समय से अभाव में जी रहे और हाशिये पर पडे समुदायों के बच्चों की सरकारी स्कूलों में भर्ती जनसंख्या में उनके हिस्से से अधिक रही।
  • विशेष जरूरतों की आवश्यकता की पहचान किये गए 27 लाख बच्चों में से 26 लाख बच्चे 2009 तक भर्ती किये जा चुके थे।
  • प्राथमिक से उच्चतर प्राथमिक स्कूल में अंतरण का प्रतिशत 2002 के 75% से बढकर 2009 में 83% हो गया।
  • स्कूल छोडने की वार्षिक दर 2004 के 10% से घट कर 2008 में 8.6% रह गई।
  • कई राज्यों में प्राथमिक स्कूलों में भर्ती सार्वत्रिक हो चुकी है अथवा जल्द ही होने वाली है।

विश्व बैंक की भूमिका

इस कार्यक्रम को विश्व बैंक, यूरोपियन कमीशन तथा युनाइटेड किंगडम के डीएफआईडी की मदद प्राप्त है। विश्व बैंक इसका सबसे बडा एकल मददगार हे।

मदद के पहले चरण में (एसएसए1: 2004-2007) कार्यक्रम की कुल लागत 3.5 अरब डॉलर में से 50 करोड डॉलर का योगदान दिया। दूसरे चरण में (एसएसए2: 2008-2010) विश्व बैंक 1.35 अरब डॉलर उपलब्ध करा रही है। भारत सरकार द्वारा हाल ही में मंजूरी दिये गए ऐतिहासिक शिक्षा का हक (आरटीई) कानून, 2009 के मद्देनज़र इस कार्यक्रम के लिए बैंक की मदद का महत्व और भी बढ जाता है।

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