प्रेस विज्ञप्ति

परियोजना पर हस्ताक्षरः भारत सरकार और विश्व बैंक द्वारा उत्तर प्रदेश में जल क्षेत्र के सुदृढ़ीकरण और आधुनिकीकरण के लिए $36 करोड़ के समझौते पर हस्ताक्षर

24 अक्तूबर, 2013



परियोजना से लगभग दस लाख किसान परिवारों को लाभ पहुंचेगा

 

नई दिल्ली, 24 अक्टूबर, 2013 आज यहां भारत सरकार और विश्व बैंक ने उत्तर प्रदेश में कृषि-उत्पादकता बढ़ाने के लिए, जहां कृषि घोर ग़रीबी को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखेगी, आवश्यक संस्थागत क्षमता का गठन करने के लिए $36 करोड़ के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए।

उत्तर प्रदेश जल क्षेत्र पुनर्गठन परियोजना फ़ेस 2 (उत्तर प्रदेश वाटर सेक्टर रिस्ट्रक्चरिंग प्रोजेक्ट फ़ेस 2) के लिए ऋण-समझौते पर भारत सरकार की ओर से वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग में संयुक्त सचिव निलय मितेश; उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्रमुख सचिव (सिंचाई) दीपक सिंघल; और विश्व बैंक की ओर से इसके भारत-स्थित देश निदेशक ओन्नो रुह्ल ने हस्ताक्षर किए।

भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग में संयुक्त सचिव निलय मितेश ने कहा, भारत सरकार ने जलभृत प्रबंधन (एक्विफ़र-प्रबंधन), जल-उपभोक्ता समितियों के ज़रिये संचालन में सुधार करने और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में मौजूदा सिंचाई प्रणालियों के पुनर्वास और आधुनिकीकरण पर ध्यान देने के लिए एक सर्वांगीण रणनीति बनाने की ज़रूरत की पहचान की है। ऐसा करने से जल-संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और इनकी कार्यकुशलता को ही नहीं, बल्कि राज्य में कृषि की संवृद्धि बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।उन्होंने आगे कहा,उन अनेक अंशों (कंपोनेंट्स) और गतिविधियों से, जिनकी इस परियोजना में पहचान की गई है, उक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के सरकार के प्रयासों को सीधा समर्थन मिलेगा।

परियोजना से उत्तर प्रदेश सरकार के भागीदारी पर आधारित सिंचाई प्रबंधन अधिनियम (पार्टिसिपेटरी इर्रिगेशन मैनेजमेंट एक्ट - पीआईएम) जैसे संस्थागत सुधार करने से संबंधित विभिन्न प्रयासों को समेकित करने और गहन बनाने में मदद मिलेगी। परियोजना के पहले चरण में पीआईएम अधिनियम ने जल उपभोक्ता समितियों को अपने खेतों के लिए उपलब्ध जल के प्रबंधन में पहले से कहीं अधिक ज़िम्मेदारी देने में रूपांतरकारी भूमिका निभाई है। जल उपभोक्ता समितियां भी स्थानीय प्रणालियों के परिचालन और रखरखाव के प्रबंधन, प्रतिस्पर्धी उपभोक्ताओं के बीच विवादों को हल करने, तथा जल शुल्क का मूल्यांकन करने में भी पहले से अधिक सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

विश्व बैंक के भारत-स्थित कंट्री डाइरेक्टर ओन्नो रुह्ल ने कहा,कृषि में पूंजी लगाने से .प्र. में ग़रीबी दूर करने में मदद मिलेगी। जल का समझदारी से इस्तेमाल करने से कृषि क्षेत्र को ही मदद नहीं मिलेगी, जो भारत में जल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, बल्कि इससे जल की मांग तथा इसके इस्तेमाल के तरीकों के बीच बढ़ती हुई विषमताओं पर ध्यान देने में भी मदद मिलेगीजो ऐसी महत्त्वपूर्ण समस्या है, जो .प्र. में विकास-संबंधी अनेक चुनौतियों में और सामान्य तौर पर भारत में मौजूद है।” “विश्व बैक की भारत के लिए नई कंट्री पार्टनरशिप स्ट्रैटेजी के तहत क्रियान्वित की जा रही यह परियोजना .प्र. – ऐसा राज्य जहां ग़रीबों की संख्या भारत में सबसे ज़्यादा है – जैसे कम आय वाले राज्यों में चहुंमुखी संवृद्धि को सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने के लिए वचनबद्ध है।

इस परियोजना में शामिल किए जाने वाले कुछ अन्य महत्तवपूर्ण कंपोनेंट्स में एक विशेषीकृत बाढ़-प्रबंधन सूचना प्रणाली (स्पेशलाइज़्ड फ़्लड मैनेजमेंट इन्फ़ार्मेशन सिस्टम - एफ़एमआईएस) भी शामिल है, क्योंकि उ.प्र. के 23 ज़िलों में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 30% से अधिक बाढ़-संभावित है। उपग्रह सुदूर संवेदन (सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग), भौगोलिक सूचना प्रणाली (जियोग्रैफ़िक इन्फ़ार्मेशन सिस्टम) (जीआईएस), और मोबाइल आधारित अनुप्रयोगों (एप्लिकेशंस) जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी का भी व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाएगा। परियोजना के अभिनव निगरानी और मूल्यांकन डिजाइन (इन्नोवेटिव मॉनिटरिंग और इवैल्यूएशन डिज़ाइन) के अंग के तौर पर उत्तर प्रदेश रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशन सेंटर उपग्रहों द्वारा खींचे गए चित्रों की मदद से परियोजना के कृषि क्षेत्रों के कामकाज का निरीक्षण करेगा।

परियोजना का राज्य जल-संसाधन एजेंसी (स्टेट वाटर रिसोर्सेज़ एजेंसी - स्वरा) द्वारा सुलभ कराई गई एकीकृत जल-संसाधन सूचना प्रणाली का विकास करने की योजना भी है, क्योंकि इन दिनों जल-संसाधन का नियोजन, विकास और प्रबंधन राज्य के विभिन्न विभागों द्वारा किया जा रहा है। स्वरा राज्य के 8 प्रमुख बेसिनों के लिए रिवर बेसिन योजनाओं का भी विकास करेगा और जलवायु-परिवर्तन के प्रभावों का विशेष अध्ययन करेगा।

जल की बचत करने वाली कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए परियोजना जल स्कूल भी स्थापित करेगी। इन स्कूलों से किसानों को पूरे बुआई अवधि के दौरान प्रबंधन-संबंधी अपनी कुशलताओं को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। इसमें प्रायोगिक पर्वतश्रेणी व कुंड सिंचाई, फसल-पानी के बजट व लेजर समतलन का प्रशिक्षण तथा उभरी क्यारी के प्रयोग शामिल हो सकते हैं। आशा है कि इन स्कूलों से प्रशिक्षकों तथा खेतों में काम करने वालों का एक नेटवर्क गठन होगा, जो आगे चलकर उक्त कार्यव्यवहार का स्थानीय समुदायों के बीच प्रसार कर सकते हैं।

“पिछली परियोजनाओं के अपने अनुभव के आधार पर हम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पहचाने गए इलाकों में राज्य की सिंचाई और जल-निकासी परियोजनाओं के पुनर्वास और आधुनिकीकरण में निवेश को लक्षित कृषि-संबंधी आधुनिक कामकाज और जल-उपभोक्ता समितियों की क्षमता के गठन के साथ जोड़ते हैं,” वरिष्ठ जल-संसाधन विशेषज्ञ तथा परियोजना के कार्य दल के नेता (टॉस्क टीम लीडर) विंस्टन यू ने कहा। “हमें आशा है कि इससे कृषि के कार्य-प्रदर्शन में ही नहीं, बल्कि जल का समझदारी के साथ इस्तेमाल करने की दिशा में भी सुधार होगा।”

परियोजना का वित्त-पोषण इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए) द्वारा दिए जाने वाले ऋण से किया जाएगा। आईडीए विश्व बैंक का ही अंग है, जो विश्व के सर्वाधिक ग़रीब देशों की मदद करता है और ब्याज-मुक्त ऋण सुलभ कराता है, जो 25 वर्षों में देय है तथा जिसका भुगतान पांच वर्ष बाद शुरू होता है।

उत्तर प्रदेश जल क्षेत्र पुनर्गठन परियोजना के पहले चरण के परिणाम

  • 3,43,000 हेक्टेयर सिंचाई और जल-निकासी प्रणालियों का पुनर्वास और आधुनिकीकरण।
  • 800 से अधिक जल-उपभोक्ता समितियों का गठन। उ.प्र. भागीदारी पर आधारित सिंचाई प्रबंधन अधिनियम (यू.पी. पार्टिसिपेटरी इर्रिगेशन मैनेजमेंट एक्ट - पीआईएम) पारित।
  • राज्य-स्तरीय जल-संसाधन संस्थाओं की स्थापना।
  • उ.प्र. सिंचाई विभाग के लिए प्रबंधन सूचना प्रणाली की शुरूआत।

मीडिया संपर्क
भारत
नंदिता रॉय
टेलिफ़ोन: 91-11-41479220
nroy@worldbank.org
वाशिंगटन
गैब्रिएला ऐगुइलर
gaguilar2@worldbank.org


प्रेस विज्ञप्ति नं:
10/24/2013/SAR

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