मुख्य कहानी

भारतः कर्नाटक के तीन कस्बों ने 24/7 जल आपूर्ति उपलब्ध कराने में अगुवाई की

8 नवंबर, 2013


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अठत्तर साल की बासावन्नेवा शेलावदी धुंधले शीशों से अस्थाई कमरे के सामने लगी पानी के नए नल को निहारती है। इस कमरे में वह अपने पोते के साथ रहती है। हालांकि वह करीब 48 साल पहले इस शहर में आई थी लेकिन इस कमजोर महिला ने पहली बार अपने घर के बाहर नल से साफ पानी निकलते देखा है और इसीलिए वह अपनी खुशी छुपा नहीं पा रही। वह कहती है, “पानी ने ही मुझे बहुत खुशी दी है।”

पांच साल पहले तक उत्तरी कर्नाटक के धारवाड कस्बे के इस बाहरी इलाके की इस गंदी बस्ती में अनेक निवासियों के लिए सिर्फ एक नल था। इस नल में आठ से दस घंटे में सिर्फ एक बार पानी आता था।

बासावन्नेवा की आयु सिर्फ आठ साल थी जब उसकी शादी हुई। वह सुबह चार बजे उठती और नल तक पहुंचने के लिए करीब दो किलोमीटर की दूरी तय करती। वहां छोटा सा बर्तन भरने के लिए घंटों लाइन में खड़ी रहती। कई बार जब तक वह पहुंचती पानी चला जाता था और पानी भरने के लिए झगड़े तो आम बात थी। किसी-किसी दिन उसके बर्तन में पानी भर जाता तो प्रायः उसमें जाने क्या-क्या तैरता रहता और वह अच्छी तरह उबालने पर भी पीने एवं खाना पकाने लायक नहीं हो पाता था।

अब विधवा, अकेली, और पानी के लिए अपने संबंधियों पर आश्रित है। दक्षिण भारत की झुलसाती हुई गर्मी में यह बूढ़ी औरत पंद्रह दिन में सिर्फ एक बार नहाती । उत्तरी कर्नाटक में सबसे अधिक पूजनीय देवी येल्लम्मा की इस भक्तिन के लिए तो यह और भी कठिन बात थी क्योंकि सुबह-सुबह पूजा करने से पहले नहाने तथा सच्ची पूजा के प्रतीक के रूप में अपने माथे पर लाल तिलक लगाने में असमर्थ थी।

फिर 2008 में चीजें बदलनी शुरू हुईं। यहां विश्व बैंक की एक परियोजना आई। इसका मकसद कर्नाटक के तीन प्रमुख कस्बों: हुबली-धारवाड, बेलगाम और गुलबर्गा के बाहरी इलाकों में विशिष्ट प्रदर्शन-क्षेत्रों में 24/7 पानी की आपूर्ति उपलब्ध कराना था। ऐसे भारतीय कस्बे में निर्बाध जल आपूर्ति कराने का यह पहला प्रयोग था जहां लंबे समय से पानी का प्रवाह अनियमित रहा है और नागरिकों को पानी की गंभीर कमी से निपटने के लिए अनेक रणनीतियां बनानी पड़ती थी।

बासावन्नेवा के लिए स्वच्छ पानी तक नियमित पहुंच जीवन बदलने वाली साबित हुई है। इरादे की पक्की उस बुजुर्ग महिला का कहना है, “आखिरकार मैं अब रोज नहा सकती हूं और अपने घर की सफाई अच्छी तरह कर सकती हूं।” उसकी दाग रहित नीली और सफेद साड़ी उस स्वच्छता का प्रमाण है जिसका अब वह आनंद लेती है। उसका विशाल विस्तारित परिवार मिलकर 200 रुपये का बिल देता है और समझता है कि यह राशि उस बदलाव की तुलना में बहुत छोटी सी है जो पानी ने उनके जीवन में किया है।

गर्व की बात

18 साल की पूजा गली और उसके 20 वर्षीय भाई प्रवीण को अब भी याद है कि पानी भरने में माता-पिता की मदद करने पर उनकी कक्षा छूट जाती थी। दैनिक काम करने में जब बच्चों की कक्षा छूट जाती तो वह हर बार उनके पिता, जो कि एक प्लम्बर हैं और अपने बच्चों से बड़ी आशाएं रखते हैं, बहुत उदास हो जाते थे। आज सिर्फ 48 रुपये महीने की लागत पर इस परिवार को घर पर पानी की निरंतर आपूर्ति मिलती है और बच्चे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए स्वतंत्र हैं। उनके पिताजी गर्व से कहते हैं, “इस झुग्गी बस्ती में केवल मेरे बच्चों ने ही अपनी शिक्षा पूरी की है। यही नहीं वे अंग्रेजी में निपुण हो गए हैं।

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लगातार शहरी चुनौती

भारत में दिन प्रति दिन बढ़ती गरीबी और बेहतर जीवन की खोज में कस्बों एवं शहरों में बढ़ती आबादी के कारण शहरी क्षेत्रों में किफायती सेवाएं उपलब्ध कराना देश के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। हर वर्ष शहरों की आबादी में करीब एक करोड़ की वृद्धि होती जा रही है तथा प्रत्येक उपलब्ध स्थान पर लगातार मकान एवं दुकानें बनती जा रही हैं, लेकिन सेवा प्रदान करने वाले गति बनाए रखने में असमर्थ हैं। भारत के किसी भी शहर में 24/7 पानी की आपूर्ति नहीं होती तथा न तो पुराने और न ही नए निवासियों को खाना पकाने तथा सफाई, धुलाई और नहाने के लिए पर्याप्त पानी मिलता है। घोर निराशा उन्हें प्रायः अवैध रूप से पानी की मुख्य भूमिगत लाइन से पानी निकालने के लिए मजबूर कर देती है। लेकिन लाइनों में अव्यवस्थित जोड़ों की गड़बड़ीे के कारण इनमें गंदा पानी खिंच जाता है और ताजे पानी की आपूर्ति दूषित होती है जो बीमारियां फैलती है।

परियोजना के लिए विश्व बैंक के टीम लीडर बिल किंगडम कहते हैं, “ भारत में शहरी जल क्षेत्र के लिए यह परियोजना महत्वपूर्ण थी। इसने पहली बार यह दिखाया कि देश में निरंतर जल आपूर्ति उपलब्ध कराना तकनीकी रूप से व्यावहारिक है जिसे परियोजना शुरू होने से पहले व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया जाता था। इसने यह भी दिखाया कि झुग्गीवासियों सहित लोग इस्तेमाल किए गए पानी के लिए भुगतान करने के इच्छुक और समर्थ थे। आखिरकार, इसने दिखाया कि जनता और निजी क्षेत्र के बीच भागीदारी से हर किसी को फायदा होता है। ” किंगडम कहते हैं कि इस परियोजना की सफलता उन सभी लोगों के समर्पण में निहित है जिन्होंने इसके डिजाइन और कार्यान्वयन में भाग लिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नई व्यवस्था के वास्ते लोगों का समर्थन जुटाने के लिए लोगों को शिक्षित करना और उन तक पहुंचने पर ध्यान देना महत्वपूर्ण था।

नई आशा

इस परियोजना का असर प्रदर्शन क्षेत्रों (डेमो-जोन्स) में देखा जा सकता है जहां चैबीस घंटे जल आपूर्ति ने जीवन में उल्लेखनीय सुधार किया है। हुबली शहर के धारवाड कस्बे में, पेशे से नर्स, रूपा वेंकटेश माली गर्व से मुस्कुराती है क्योंकि वह अपने मकान के अंदर पानी के नल को चलाती है और पानी की स्वच्छ धारा उसे खुश कर देती है।

पांच वर्ष पहले माली और उसके पति को मामूली आपूर्ति के कारण बाल्टियों और ड्रम्स में पानी भरना पड़ता था। माली बहुधा पानी भरने के कारण काम पर नहीं जा पाती थी और प्रायः देर से आने या काम पर बिलकुल ही न जा पाने के कारण अपने बॉस के क्रोघ का सामना करना पड़ता था। वह उन दिनों को याद करते हुए कहती है, “मुझे समस्या थी, मेरे पति को समस्या थी और फिर भी पानी कभी काफी नहीं होता था।

आज, माली करीब 68-78 रुपये की मासिक लागत पर निरंतर साफ पानी की आपूर्ति हासिल करती है। इस लागत में मीटर की लागत के रूप में 30 रुपये का भुगतान शामिल है। वह मुस्कुराती हुई कहती है, “अब मैं अपने काम पर ध्यान दे सकती हूँ और अतिरिक्त समय काम भी करती हूँ।


" मैं अपने पूरे स्टाल को साफ करने के लिए सिर्फ एक छोटा जग पानी इस्तेमाल करता हूं। फिर भी, जब कभी खाना पकाने और अच्छी तरह सफाई करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं होता तो मेरी बिक्री घट जाती है। कुछ दिन तो मैं अपनी दुकान भी नहीं खोल पाता। "

श्रीनिवास डी. खामकर

बेलगाम में रेहड़ी पर भोजन बेचने वाला

आजीविका में सुधार

आजीविका के मामले में भी फायदा हुआ है। बेलगाम में, बुलबुले कि बोतल बेचने वाले 35 वर्षीय नूर अहमद को अपनी बोतलें साफ करने और बबल का घोल मिलाने के लिए एक दिन में 15-20 बर्तन पानी की जरूरत होती है। पड़ोस में नियमित जल आपूर्ति आने से पहले, अहमद को पास के समृद्ध घरों से दिन में दो-तीन बर्तन पानी उधार लेना पड़ता था। लेकिन अब परिवार के नल से ही उसकी पानी की सभी जरूरतें पूरी हो जाती हैं इसलिए अहमद के पास ज्यादा बोतलें भरने और बिक्री बढ़ाने के लिए काफी समय होता है।

भविष्य की ओर

क्षेत्र के ऐसे निवासी यह लाभ उठाने के लिए उत्सुक हैं जो अभी तक 24/7 जल आपूर्ति प्राप्त नहीं कर पाए हैं। हुबली में 55 वर्षीय शर्फुल निसा को 13 सदस्यों के अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। उसे अब उस दिन का इंतजार है जब उसके घर भी निर्बाध जल आपूर्ति पहुंचेगी।

बेलगाम में रेहड़ी पर खाना बेचने वाले 31 वर्षीय श्रीनिवास डी. खामकर का भी यही हाल था। खामकर को अपना घर और अपनी रेहड़ी को साफ रखने, बर्तन धोने और खाना पकाने के लिए दिनभर में कम से कम तीन बैरल पानी की जरूरत पड़ती है। वह कहता है, “मैं अपने पूरे स्टाल को साफ करने के लिए सिर्फ एक छोटा जग पानी इस्तेमाल करता हूं। फिर भी, जब कभी खाना पकाने और अच्छी तरह सफाई करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं होता तो मेरी बिक्री घट जाती है। कुछ दिन तो मैं अपनी दुकान भी नहीं खोल पाता।

विश्व बैंक के बिल किंगडम कहते हैं, “अध्ययनों ने दिखाया है कि प्रदर्शन क्षेत्रों (डेमो-जोन्स) में परिवारों को जब से अपनी दैनिक जल आपूर्ति के लिए पंक्ति में नहीं लगानी पड़ती तब से उनके हर महीने 30-40 घंटे बचते हैं। यह समय परिवार के साथ बिताया जाता है या उसमें सार्थक काम किया जाता है। कुल निवासियों में से करीब 70% ने बताया कि वे अब काम से कम अनुपस्थित होते हैं। यही नहीं बीमारी भी कम होती है।

परियोजना की सफलता के मद्देनज़र भारत सरकार ने विश्व बैंक से अनुरोध किया है इससे सीखे गए सबक के अनुसार अनुवर्ती परियोजना बनाई जाए। किंगडम कहते हैं, “हमारा लक्ष्य इन शहरों के सभी निवासियों को समान लाभ उपलब्ध कराना है। यह अर्थव्यवस्था और शहरों के कल्याण को कैसे प्रभावित करेगा ? इसका पता लगाने की हमें आशा है!


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